ग़ज़ल का दौर कभी ख़त्म नहीं होगा: तलत अज़ीज़
- संजय मिश्रा
- मुंबई से बीबीसी हिंदी हिंदी डॉट कॉम के लिए

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संगीत में बदलती दिलचस्पी की वजह से ग़ज़ल फ़िल्मों से कम दिख रही हो, लेकिन गायक तलत अज़ीज़ मानते हैं कि वो ग़ायब कभी भी न होगी.
वे कहते हैं, "ग़ज़ल का क्रेज़ बरक़रार है, भले ही इसकी रफ़्तार थोड़ी धीमी पड़ गई हो."
रेडियो प्रोग्राम 'कारवां-ए-ग़ज़ल' के ज़रिए ग़ज़लों को ट्रेंड में लाने वाले तलत ने कहा, "जब इस प्रोग्राम की शुरुआत हुई थी तो हमारा टारगेट ऑडियंस 45 साल के ऊपर के लोग थे, लेकिन बाद में पता चला हमारे प्रोग्राम को 25 साल तक के युवाओं ने ज़्यादा पसंद किया. इससे यही साबित होता है कि ग़ज़ल का दौर आज भी क़ायम है."
मेंहदी हसन और जगजीत सिंह को बेहतरीन ग़ज़ल सिंगर मानने वाले तलत कहते हैं कि, "मेंहदी हसन या जगजीत सिंह बनने के लिए कई साल तक संगीत की तपस्या करनी पड़ती है."

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मेंहदी हसन साहब ने अपनी शुरुआत क्लासिकल से की थी, लेकिन जब ग़ज़ल गाना शुरू किया तो 50 साल से भी ज्यादा समय तक ग़ज़लें गाते रहे.
जगजीत साहब ने ग़ज़लों को महफ़िल से निकालकर आम आदमी के बीच पहुंचा दिया.
इसके पीछे उनकी कड़ी मेहनत रही है.
आजकल की नौजवान पीढ़ी में भी कई लोग हैं, जो अच्छी ग़ज़लें गा रहे हैं.
संगीत में तकनीक के बढ़ते इस्तेमाल को लेकर तलत अज़ीज़ ने कहा, "आपके गाने पुराने स्टाइल से बनाए गए हो या नई तकनीक का इस्तेमाल किया गया हो, बस इस बात का ध्यान रखें कि संगीत या किसी भी फ़न को ऐसे सजाएं कि उसकी रूह बरक़रार रहे."

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उमराव जान की ग़ज़लों को बेहतरीन फ़िल्मी ग़ज़ल मानने वाले तलत अज़ीज़ ने भी इस फ़िल्म में एक ग़ज़ल गाकर खूब लोकप्रियता बटोरी थी.
इसके अनुभवों पर वो कहते हैं, "उमराव जान के संगीत निर्देशक ख़य्याम साहब से मेरी मुलाक़ात एक महफ़िल में हुई थी. जहां मेरा गाना सुनकर उन्होंने मेरी तारीफ़ करते हुए मुझसे वादा किया था कि वक़्त आने पर वे मुझसे गाना ज़रूर गवाएंगे. तीन साल बाद उनका फ़ोन आया."
वो कहते हैं, "उस ज़माने में लाइव रिकार्डिंग होती थी, ध्यान रखना पड़ता था कि कहीं कोई ग़लती ना हो जाए, नहीं तो पूरा गाना दोबारा शुरू करना पड़ता था. इस गाने को हमने पूरे एक दिन में रिकॉर्ड किया था. लेकिन आजकल गानों को लेकर ऐसी शिद्दत नहीं दिखती."