बॉलीवुड ने खोजा नोटबंदी का उपाय

  • सुशांत मोहन
  • बीबीसी संवाददाता, मुंबई
अमित बहल

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अमित बहल

नोटबंदी के बाद देशभर में कैश पर आधारित काम करने वाले लोगों की दिक्कतें और उनका काम ठप हो जाने जैसी कुछ घटनाएं सुनने में आ रही थीं. हालांकि नोटों की कमी के चलते होने वाली परेशानियों के बावजूद शो बिज़नेस या मायानगरी पर नोटबंदी का असर बहुत ज़्यादा दिखाई नहीं दिया.

नोटबंदी के चलते कुछ फ़िल्मों की शूटिंग रुकने कि ख़बरों के बाद बीबीसी ने टीवी और फ़िल्मों से जुड़े दर्जनभर कलाकारों, जूनियर आर्टिस्टों, निर्माताओं और अधिकारियों से बात की. हमने पता लगाया कि नोटबंदी के बाद से फ़िल्म और टेलीविज़न की शूटिंग के लिए पैसा कहां से आ रहा है, और क्या वाकई नोटबंदी के बाद से मायानगरी की कमर टूट गई है?

टीवी, फ़िल्मों या शूटिंग लोकेशन से जुड़े ज़्यादातर लोगों ने बताया कि नोटबंदी के बाद दो से तीन दिनों तक तकलीफ़ हुई थी लेकिन शूटिंग कैंसल होने या किसी कलाकार को पैसा नहीं मिलने की घटनाएं बहुत ही कम देखने में आई.

मुंबई में मौजूद सभी स्टूडियो, फ़िल्म और टीवी धारावाहिक निर्माता अपने सारे स्टाफ़ या क्रू को पैसा चेक के माध्यम से ही देते आए हैं और यह काफ़ी पुराना नियम है. इसके चलते सभी लोगों को पैसे समय पर मिलते हैं, लेकिन मुंबई से बाहर शूट करने वाली यूनिट्स को कुछ समस्याओं से दो चार होना पड़ा है.

प्राची पंड्या

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प्राची पंड्या

सिनेमा ऐंड टेलिविज़न ऐक्टर्स असोसिएशन के जॉइंट सेक्रेटरी और अभिनेता अमित बहल ने कहा, "मुंबई में फ़िल्मों या टीवी में काम करना अब पहले जैसा नहीं है. यह अब काफ़ी व्यवस्थित है और आप चाहे एक अभिनेता हों या स्पॉट बॉय आप किसी एजेंसी या किसी कार्ड के ज़रिए ही यहां काम कर सकते हैं. एक बार आपका कार्ड बना या रजिस्ट्रेशन हुआ तो आप जहां भी काम करेंगे, भुगतान चेक या अकाउंट के माध्यम से ही होगा. ऐसे में मुंबई में हम में से किसी को भी पैसे न मिलने की शिकायत नहीं हुई."

उन्होंने आगे कहा, "लेकिन यह बात सही है कि मुंबई से बाहर काम करने वाले निर्माताओं को परेशानियां हुईं और कुछ दिहाड़ी पर काम करने वाले स्टाफ़ को भी अपने पैसे मिलने के लिए एक से दो दिन का इंतज़ार करना पड़ा."

मुंबई से बाहर कि शूटिंग का उदाहरण देते हुए अभिनेत्री प्राची पंड्या कहती हैं, "हम कलर्स के नए शो 'स्वाभिमान' के लिए राजस्थान के एक देहाती इलाके में शूट कर रहे थे. धीरे धीरे यूनिट के पास कैश ख़त्म हो गया. पैसा ख़त्म होने के साथ ही जिस लोकेशन पर शूट हो रहा था उन्होनें अपनी जगह पर काम करने की इजाज़त देने से मना कर दिया क्योंकि उनके पास ई-बैंकिंग जैसी सुविधा नहीं थी."

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प्राची के मुताबिक़ शो की शूटिंग एक से दो दिन के लिए प्रभावित हुई लेकिन उसके बाद कैश उपलब्ध करवाया गया वर्ना शूटिंग पूरी करना असंभव लग रहा था. अभिनेत्री सुचित्रा पिल्लई ने भी कैशलेस हो जाने के दुष्प्रभाव सामने रखते हुए बताया, "बतौर अभिनेता हमें कई बार कुछ घंटो के लिए मेकअप आर्टिस्ट या हेयर आर्टिस्ट को हायर करने की ज़रूरत पड़ती है और यह पेमेंट आपको कैश ही करना होता है क्योंकि एक घंटे के लिए आने वाले किसी स्टाफ़ को आप अगले दिन तो पैसे नहीं देंगे, और कुछ नहीं तो आने जाने के पैसे तो देंगे, ऐसे में काम प्रभावित होना लाज़िमी है."

वो कहती हैं, "चलिए आर्टिस्ट को तो मैं एक दिन बाद भी पैसा दे दूंगी लेकिन मुझे लाने वाला ऑटो, या मेरी काम वाली बाई या मुझे आज के लिए खाना देने वाला पास के ढाबे का लड़का, इन्हें अकाउंट पे कैसे करें?" यह समस्याएं तो सिर्फ़ कलाकारों की हैं लेकिन हर दिन होने वाली शूटिंग, शूटिंग पर आने वाले स्टाफ़, एक दिन की शूटिंग के लिए टेंट या जानवर या क्रू के लिए ख़ाना उपलब्ध करवाने वाले लोगों को भी थोड़ी दिक्क़तों का सामना करना पड़ा.

चारुशीला चौहान
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फ़िल्मसिटी में सह-निर्देशक चारुशीला चौहान

मुंबई में मौजूद फ़िल्मसिटी (गोरेगाँव) में एक दिन में औसतन 60 से 70 सेट पर शूटिंग होती है और यहां लाखों लोगों को दैनिक रोज़गार मिलता है लेकिन नोटबंदी के लिए यह जगह पूरी तरह से तैयार थी. बालाजी फ़िल्म के लिए दिहाड़ी मज़दूरों, कलाकारों को मैनेज करने वाले इक़बाल कहते हैं, "परेशानी तो बहुत है, बालाजी के यहां 10 से ज़्यादा लोकेशन पर शूट चल रहे हैं और हर जगह पर दिन में सफ़ाई, ख़ाना या शूटिंग के लिए ज़रूरी सामान जैसे सुई, तलवार, घोड़ा या कुछ भी पैसे से ही लाया जा सकता है. पाँच रुपये की सेलोटेप के लिए 2000 का नोट या अकाउंट ट्रांसफ़र तो नहीं कर सकते."

टीवी कलाकार

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टीवी कलाकार

इक़बाल कहते हैं, "नोटबंदी के दिन से आजतक हम क्रेडिट पर काम कर रहे हैं, यहां पुराने होने के कारण लोग हमें पहचानते हैं और कुछ दिन उधारी पर काम कर लेते हैं, फिर जैसे ही 2000 का आंकड़ा आता है हम उन्हें पैसा दे देते हैं. इस तरीके से हमने एक दिन भी शूटिंग रुकने नहीं दी है."

ज़ी टीवी पर आने वाले धारावाहिक काला टीका के प्रोडक्शन मैनेजर ललित ने बीबीसी को बताया, "नोटबंदी वाले हफ़्ते काफ़ी दिक्क़त हुई थी लेकिन फिर हमने रास्ता निकाल लिया था. अब हम दिहाड़ी मज़दूरों को भी कुछ दिनों की पेमेंट एक साथ करते हैं, जिससे हमें खुल्ले पैसे लाने की दिक्कत नहीं होती और हमारा काम भी नहीं रुकता."

धारावाहिको के सेट पर कपड़ा और बिजली के उपकरण उपलब्ध करवाने वाले सतीश कहते हैं, "पहले हम दिन के हिसाब से पैसा लिया करते थे लेकिन अब हम सभी वेंडर लोग नियम बना लिए हैं कि जब 2000 का सामान हो जाएगा तो कैश ले लेंगे. इससे खुल्ला पैसा देने या बैंक की लाइन में लगने की समस्या ख़त्म हो जाती है."

फ़िल्मसिटी में सह-निर्देशक चारुशीला चौहान भी कहती हैं, "फ़िल्मसिटी में काम कर रहे सभी निर्माता अपने सभी भुगतान चेक या ई-बैंकिंग के माध्यम से ही करते हैं, यही यहां का नियम है और इसलिए 8 नवंबर से लेकर अभी तक एक बार भी नोटबंदी के चलते शूटिंग रुकने जैसी घटना घटित नहीं हुई है."

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