नरगिस के बालों में लगा बेसन देख फ़िदा हो गए थे राज कपूर
- रेहान फ़ज़ल
- बीबीसी संवाददाता

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जब 1948 में राज कपूर की नरगिस से पहली मुलाकात हुई तब वो बीस साल की थीं और तब तक वो आठ फ़िल्मों में काम कर चुकी थीं.
राज कपूर की उम्र उस समय बाइस साल थी और अभी तक उन्हें कोई फ़िल्म निर्देशित करने का मौका नहीं मिला था. उस मुलाकात की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है.
राज कपूर को अपनी पहली फ़िल्म के लिए एक स्टूडियो की तलाश थी.
उन्हें पता लगा कि नरगिस की माँ जद्दन बाई फ़ेमस स्टूडियो में रोमियो एंड जूलिएट की शूटिंग कर रही हैं. वो जानना चाहते थे कि वहाँ किस तरह की सुविधाएं हैं?
जब राज कपूर उनके घर पहुंचे तो नरगिस ने खुद दरवाज़ा खोला. वो रसोई से दौड़ती हुई आईं थीं, जहाँ वो पकौड़े तल रही थीं.
बेख़्याली में उनका हाथ उनके बालों से छुल गया और उसमें लगा बेसन उनके बालों में लग गया. नरगिस की इस अदा पर राज कपूर उन पर मर मिटे.
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'आग' की शूटिंग
बाद में उन्होंने इस सीन को हूबहू 'बॉबी' फ़िल्म में श्रषि कपूर और डिंपल कपाड़िया पर फ़िल्माया.
लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि नरगिस ने इस मुलाकात को किस तरह से लिया?
टीजेएस जॉर्ज अपनी किताब 'द लाइफ़ एंड टाइम्स ऑफ़ नरगिस' में लिखते हैं, 'अपनी सबसे करीबी दोस्त नीलम को वो घटना बताते हुए नरगिस ने कहा कि एक मोटा, नीली आँखों वाला लड़का हमारे घर आया था. उन्होंने नीलम को ये भी बताया कि 'आग' की शूटिंग के दौरान उस लड़के ने मुझ पर लाइन मारनी शुरू कर दी.'
जब नरगिस राज कपूर की पहली फ़िल्म 'आग' में काम करने के लिए राज़ी हुई तो उनकी माँ ने ज़ोर दिया कि पोस्टर में उनका नाम कामिनी कौशल और निगार सुल्ताना से ऊपर रखा जाए.
पृथ्वीराज कपूर के अनुरोध पर जद्दन बाई अपनी बेटी के लिए सिर्फ़ दस हज़ार रुपए की फ़ीस लेने पर राज़ी हो गईं.
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एक ही फ्रेम में कपूर खानदान. बाएं से राज कपूर की पत्नी, राज कपूर, शम्मी कपूर, पृथ्वीराज कपूर, ऋषि कपूर और रणधीर कपूर
कपूर खानदान
हालांकि बाद में नरगिस के भाई अख़्तर हुसैन ने ज़ोर दिया कि उनकी बहन का मेहनताना बढ़ा कर चालीस हज़ार रुपये कर दिया जाए, जो कि किया गया.
'आग' की शूटिंग खंडाला में हुई थी और नरगिस की शक्की माँ जद्दन बाई भी उनके साथ वहाँ गई थीं.
जब राज कपूर ने अपनी फ़िल्म 'बरसात' की शूटिंग कश्मीर में करनी चाही तो जद्दन बाई ने साफ़ इंकार कर दिया.
बाद में महाबलेश्वर को ही कश्मीर बना कर फ़िल्म की शूटिंग हुई. उधर कपूर ख़ानदान में भी इस रोमांस को ले कर काफ़ी तनाव था.
पृथ्वीराज कपूर ने अपने बेटे को समझाने की कोशिश की, लेकिन राज कपूर का इस पर कोई असर नहीं हुआ.
'आवारा' के फ़्लोर पर जाते जाते नरगिस की माँ का निधन हो गया. उसके बाद उनपर रोकटोक लगाने वाला कोई नहीं रहा.
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रूस में नरगिस के साथ राज कपूर, तस्वीर 1954 की है
आरके फ़िल्म्स की जान
'बरसात' फ़िल्म बनते बनते नरगिस राज कपूर के लिए पूरी तरह से कमिट हो गईं थीं.
मधु जैन अपनी किताब, 'फ़र्स्ट फ़ैमिली ऑफ़ इंडियन सिनेमा- द कपूर्स' में लिखती हैं, "नरगिस ने अपना दिल, अपनी आत्मा और यहाँ तक कि अपना पैसा भी राज कपूर की फ़िल्मों में लगाना शुरू कर दिया. जब आर के स्टूडियो के पास पैसों की कमी हुई तो नरगिस ने अपने सोने के कड़े तक बेच डाले. उन्होंने आरके फ़िल्म्स के कम होते ख़ज़ाने को भरने के लिए बाहरी प्रोड्यूसरों की फ़िल्मों जैसे अदालत, घर संसार और लाजवंती में काम किया.' बाद में राज कपूर ने उनके बारे में एक मशहूर लेकिन संवेदनहीन वकतव्य दिया, 'मेरी बीबी मेरे बच्चों की माँ है, लेकिन मेरी फ़िल्मों का माँ तो नरगिस ही हैं."
राज कपूर के छोटे भाई शशि कपूर बताते हैं, 'नरगिस आरके फ़िल्म्स की जान थीं. उनका कोई सीन न होने पर भी वो सेट्स पर मौजूद रहती थीं.'
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'राज कपूर स्पीक्स'
जब राज कपूर नासिक के पास एक झील पर 'आह' फ़िल्म की शूटिंग कर रहे थे तो उन्होंने अपने चचेरे भाई कर्नल राज खन्ना को शूटिंग देखने के लिए बुलाया.
राज कपूर की बेटी रितु नंदा अपनी किताब 'राज कपूर स्पीक्स' में लिखती हैं, 'कर्नल राज खन्ना ने मुझे बताया कि उन दिनों शूटिंग के बाद हम लोग रोज़ शिकार खेलने जाते थे. नरगिस हमारे पीछे जीप में बैठी होतीं थीं और हम लोगों को सैंडविचेस और ड्रिंक्स पकड़ाती रहती थीं. हम लोग रात को तीन या चार बजे वापस लौटते थे. इसके बाद नरगिस मैदान में लगे तंबुओं के चारों ओर घूमती थीं और उन में सो रहे लोगों को डांटती थीं कि अब तक जेनरेटर क्यों चल रहे हैं. नरगिस किसी भी तरह की बरबादी के सख़्त ख़िलाफ़ थीं.'
राज कपूर के जीवन की ये विडंबना थी कि वो नरगिस से उनकी पहली मुलाकात उनकी शादी होने के सिर्फ़ चार महीने बाद हुई. उनके धर्म भी अलग अलग थे.
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देव और राज
हालांकि नरगिस के पिता डॉक्टर मोहन बाबू, हिंदू थे, लेकिन उनका पालन पोषण एक मुस्लिम की तरह हुआ था. नरगिस राज कपूर से ज़्यादा पढ़ी लिखी थीं.
उन्होंने क्वींस मेरी कॉन्वेंट से बीए पास किया था. राज कपूर ने कभी स्कूल की अपनी पढ़ाई पूरी नहीं की और हमेशा कॉमिक्स ही पढ़ते रहे.
राज कपूर जिस भी फ़िल्म समारोह में जाते नरगिस को अपने साथ ले जाते.
देवानंद अपनी आत्मकथा, 'रोमांसिंग विद लाइफ़' में लिखते हैं, 'मैंने राज कपूर को अच्छी तरह तब जाना जब हम रूस में छह हफ़्तों तक एक साथ रहे. हम लोग पार्टियों में साथ साथ जाते. नरगिस और वो एक ही कमरे में रहते थे. जहाँ भी हम जाते रूसी प्यानो पर 'आवारा हूँ' की धुन बजाते. कभी कभी राज कपूर इतनी शराब पी लेते कि बिस्तर से उतरने का नाम ही नहीं लेते. हम लोग नीचे उनका इंतेज़ार कर रहे होते और तब नरगिस उन्हें नीचे लाने की कोशिश करतीं.'
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राज कपूर से शादी?
लेकिन कुछ समय बाद जैसा कि स्वाभाविक था, नरगिस पत्नी, माँ और श्रीमती राज कपूर बनने के ख़्वाब देखने लगीं.
मधु जैन लिखती हैं, 'नरगिस की ये इच्छा इतनी बलवती हुई कि कि उन्होंने बंबई के तत्कालीन गृह मंत्री मोरारजी देसाई तक से इस बारे में सलाह ले डाली कि वो किस तरह कानूनी रूप से राज कपूर से शादी कर सकती हैं?'
नरगिस की दोस्त नीलम ने बाद में बनी रयूबेन को बताया कि राज कपूर नरगिस से हमेशा कहा करते थे कि एक दिन वो उनसे शादी ज़रूर करेंगे. लेकिन उनका धैर्य तब जवाब दे गया जब उन्हें महसूस हुआ कि राज कपूर अपनी पत्नी को कभी नहीं छोड़ेंगे.
राज कपूर के जीवन से नरगिस का प्रस्थान शाँतिपूर्ण और 'अंतिम' था.
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मदर इंडिया फ़िल्म के एक दृश्य में नरगिस, सुनील दत्त और राजेंद्र कुमार
मदर इंडिया
सामान्यत: वो आरके बैनर के बाहर की कोई फ़िल्म साइन करने से पहले राज कपूर से सलाह ज़रूर करती थीं.
लेकिन जब उन्होंने 'मदर इंडिया' साइन की तो सब को अंदाज़ा हो गया कि दोनों की प्रेम कहानी अपने अंतिम चरण में है.
1986 में सुरेश कोहली को दिए गए इंटरव्यू में राज कपूर ने बताया था, 'नरगिस ने मुझे एक बार फिर धोखा दिया जब उसने एक बूढ़ी औरत का रोल करने से इंकार कर दिया. वो स्क्रिप्ट मैंने राजिंदर सिंह बेदी से ख़रीदी थी. उसने कहा कि इससे उसकी इमेज ख़राब होगी. लेकिन अगले ही दिन उसने 'मदर इंडिया' साइन कर ली जिसमें उसका बूढ़ी औरत का रोल था.'
1958 में नरगिस ने सुनील दत्त से शादी कर ली.
ये शादी तब तक गुप्त रखी गई जब तक 'मदर इंडिया' रिलीज़ नहीं हुई, क्योंकि इस फ़िल्म में सुनील दत्त नरगिस के बेटे का रोल निभा रहे थे.
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नरगिस और सुनील दत्त की शादी
अगर इस बात का लोगों को पता चल जाता तो शायद फ़िल्म उतनी नहीं चलती. राज कपूर को इस बात का बिल्कुल अंदाज़ा नहीं था कि नरगिस उन्हें छोड़ने जा रही हैं.
मधु जैन लिखती हैं, 'जब उन्हें पता चला कि नरगिस ने सुनील दत्त से शादी कर ली है तो राज कपूर अपने दोस्तों और साथियों के सामने फूट फूट कर रोए. कहा तो यहाँ तक जाता है कि राज कपूर अपनेआप को सिगरेट बटों से जलाते, ये देखने के लिए कि कहीं वो सपना तो नहीं देख रहे.'
नरगिस के जीवनीकार टीजेएस जॉर्ज लिखते हैं, 'इसके बाद से ही राज कपूर ने बेइंतहा शराब पीनी शुरू कर दी. उन्हें जो भी कंधा मिलता, उस पर सिर रख कर वो बच्चों की तरह रोते.'
स्टर्लिंग पब्लिशर्स के प्रमुख सुरेश कोहली जब एक बार उनका इंटरव्यू लेने गए तो उन्होंने बातों बातों में ज़िक्र कर दिया कि देवयानी चौबल उनकी जीवनी लिखना चाहती है.
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संगम फ़िल्म में राज कपूर ने अपनी निजी के कुछ दृश्य फ़िल्माए थे
'संगम' फिल्म
ये सुनना था कि राज कपूर के मन का ग़ुबार टूट गया. राज कपूर बोले, 'वो मेरे बारे में क्या जानती है?'
सुरेश कोहली बताते हैं, "फिर उन्होंने अपनी ड्राअर से एक फ़्रेम किया हुआ पत्र निकाला. राज कपूर बोले, दुनिया कहती है कि मैंने नरगिस का साथ नहीं दिया. असल में उसने मुझे धोखा दिया. एक बार हम दोनों एक पार्टी में जा रहे थे. उसके हाथ में एक काग़ज़ था. मैंने उससे पूछा, 'ये क्या है?' उसने जवाब दिया, 'कुछ नहीं, कुछ नहीं.' फिर उसने वो कागज़ फाड़ दिया. जब हम कार के पास पहुंचे तो मैंने कहा कि मैं अपना रुमाल भूल आया हूँ तब तक नौकरानी ने उन फटे हुए कागज़ों को झाड़ कर वेस्ट पेपर बास्केट में डाल दिया था. मैंने उसे अपनी अलमारी में रख दिया. अगले दिन मैंने उन फटे हुए कागज़ों को एक एक कर जोड़ा. तब मुझे पता चला कि उसमें एक प्रोड्यूसर ने नरगिस को शादी का प्रस्ताव दिया था. उसने मुझे उसके बारे में कुछ भी नहीं बताया. मैंने इस पूरे पत्र को फ़्रेम करा कर अपने पास रख लिया. मैंने ये पूरी घटना 'संगम' फिल्म के एक सीन में फ़िल्माई."
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जागते रहो बॉक्स ऑफिस पर नाकाम रही और इसके बाद नरगिस और राज कपूर ने एक साथ काम नहीं किया
आख़िरी फ़िल्म 'जागते रहो'
सुरेश कोहली के अनुसार ये शादी का प्रस्ताव निर्माता- निर्देशक शाहिद लतीफ़ की तरफ़ से आया था जो उस समय लेखिका इस्मत चुग़ताई के पति थे.
राज कपूर और नरगिस की आख़िरी फ़िल्म 'जागते रहो' थी. पूरी ज़िंदगी उनकी लीड लेडी का रोल करने वाली नरगिस इस फ़िल्म में जोगन का रोल कर रही थीं.
फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर बुरी तरह से फ़्लाप हुई. लोगों ने राज कपूर और नरगिस के बीच रहने वाली कैमिस्ट्री को उस फ़िल्म में बिल्कुल नहीं पाया.
सालों बाद जब नरगिस दत्त का अंतिम संस्कार हुआ तो राज कपूर उनके जनाज़े में आम लोगों के साथ सबसे पीछे चल रहे थे.
हर कोई उन्हें आगे उनके पार्थिव शरीर के पास जाने के लिए कह रहा था. लेकिन उन्होंने उनकी बात नहीं मानी. उनकी आँखों पर धूप का चश्मा लगा हुआ था.
वो धीमे से बुदबुदाए थे, 'एक-एक करके मेरे सारे दोस्त मुझे छोड़ कर जा रहे हैं.'
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