'ठाकरे' के ट्रेलर में बाल ठाकरे का कितना सच, कितना झूठ?
- सूर्यांशी पांडे
- बीबीसी संवाददाता

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25 जनवरी को बाल ठाकरे बनकर आ रहे हैं नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी
'नफ़रत बेचना बंद करो!' - दक्षिण भारत के नामी अभिनेता सिद्धार्थ ने 'ठाकरे' के ट्रेलर में दक्षिण भारतीयों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल हुए एक डायलॉग को लेकर अपनी आपत्ति ट्विटर पर कुछ इस तरह दर्ज कराई.
फ़िल्म 'ठाकरे' के ट्रेलर में बाल ठाकरे के क़िरदार में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी बोलते हैं - 'लुंगी उठाओ, पुंगी बजाओ!' - जिसके ज़रिए फ़िल्म में ये दर्शाने की कोशिश की गई है कि बाल ठाकरे दक्षिण भारतीयों के ख़िलाफ़ किस तरह खुलकर बोलते थे. ये डायलॉग फ़िल्म के मराठी ट्रेलर में है लेकिन हिंदी ट्रेलर में नहीं है.
इस बात में कोई दो राय नहीं कि बाल ठाकरे दक्षिण भारतीयों को पसंद नहीं करते थे लेकिन क्या ट्रेलर में दिखाई गई हर बात इतनी ही सच्ची है?
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फ़िल्म के ट्रेलर में बाल ठाकरे की ज़िंदगी से जुड़े कुछ राजनैतिक पहलुओं की झलक है.
फ़िल्म के ट्रेलर में बाल ठाकरे की ज़िंदगी से जुड़े कुछ राजनीतिक पहलुओं की झलक है. अब जब फ़िल्म के ट्रेलर के ज़रिए इतिहास के कुछ पन्नों को पलटा ही गया है तो इसकी पुष्टि भी कर ली जाए कि जिन राजनीतिक हिस्सों को ट्रेलर में दिखाया गया है वो घटित हुए भी थे या नहीं.
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'ठाकरे' के मराठी ट्रेलर में बाल ठाकरे के किरदार में नवाज़ुद्दीन बोलते हैं 'लुंगी उठाओ, पुंगी बजाओ!'
दक्षिण भारतीयों को क्यों नापसंद करते थे बाल ठाकरे?
सबसे पहले अभिनेता सिद्धार्थ की नाराज़गी पर गौर करते हैं. उनकी नाराज़गी इस बात से है कि फ़िल्म के ट्रेलर में ठाकरे को दक्षिण भारतीयों को नापसंद करते हुए दिखाया गया है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वाकई में बाल ठाकरे दक्षिण भारतीयों को पसंद नहीं करते थे?
शिव सेना और बाल ठाकरे पर एक क़िताब लिख चुकीं वरिष्ठ पत्रकार सुजाता आनंदन के मुताबिक़ 1966 में शिव सेना का गठन करने से कई साल पहले बाल ठाकरे एक कार्टूनिस्ट के तौर पर 'द फ़्री प्रेस जर्नल' में काम करते थे. वहाँ उनके अलावा आर.के.लक्ष्मण भी काम करते थे जो बाद में जाकर बेहद प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट हुए.
सुजाता बताती हैं कि बाल ठाकरे जब संपादक को अपने बनाए कार्टून भेजते थे तो उनसे ज़्यादा आरके.लक्ष्मण के कार्टून को तवज्जो मिलती थी.
सुजाता के अनुसार उन दिनों पत्रकारिता में दक्षिण भारतीयों का दबदबा बहुत था जिसकी वजह से बाल ठाकरे को ये लगने लगा कि उनके साथ पक्षपात हो रहा है और आरके.लक्ष्मण को दक्षिण भारतीय होने का फ़ायदा मिल रहा है.
फिर 1960 में उन्होंने अपने भाई के साथ कार्टून संबंधी एक साप्ताहिक पत्रिका 'मार्मिक' निकालनी शुरू की.
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क्या 1992 दंगों और बाबरी मस्ज़िद कि सुनवाई के लिए वाकई वह कोर्ट गए थे?
क्या बाल ठाकरे कभी कोर्ट गए थे?
ट्रेलर में कुछ दृश्य कोर्ट के नज़र आते हैं. एक दृश्य में बाल ठाकरे 1992 में मुंबई में हुए हिंदू-मुस्लिम दंगों में हाथ होने का दावा करते हैं तो वहीं दूसरे में बाबरी मस्ज़िद विध्वंस मामले पर राम मंदिर की दुहाई देते दिखते हैं.
हालांकि 1992 के दंगों की जांच करने वाले श्रीकृष्ण आयोग के मामले को कवर कर चुकीं सुजाता आनंदन का कहना है कि उनकी जानकारी के मुताबिक़ बाल ठाकरे कभी कोर्ट गए ही नहीं.
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बाल ठाकरे पर 1992 में हुए मुंबई दंगे और बाबरी मस्ज़िद केस की तलवार लटकी थी.
उन्होंने बताया कि मुंबई हाई कोर्ट में जब भी इस केस कि सुनवाई होती तो बाल ठाकरे नज़र नहीं आते थे. बल्कि उनकी जगह शिव सेना के दो नेता, मधुकर सरपोतदार और मनोहर जोशी पेशी के लिए आते.
वह बाबरी मस्जिद के मामले को याद करते हुए बताती हैं कि उस केस से बाल ठाकरे बेहद घबराए हुए थे. जब अयोध्या से उनको समन आया तो उन्होंने हर मुमकिन कोशिश की कि वह उससे बच सकें.
सुजाता आनंदन याद करती हैं कि अयोध्या मामले में भी उन्होंने कभी बाल ठाकरे को कोर्ट में नहीं देखा. वे बताती हैं, ''उनके वकील ही मामले को संभालते. अपने मुख़बिरों के ज़रिए या मीडिया के ज़रिए ही वह बयान देते.''
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साल 2004 में अपने घर में उन्होंने जावेद मियांदाद को आमंत्रित किया था जहां उनके बेटे ने जावेद का ऑटोग्राफ़ भी लिया था.
बाल ठाकरे ने जावेद मियांदाद को ये तो नहीं कहा था!
उन चमकते सितारों की कहानी जिन्हें दुनिया अभी और देखना और सुनना चाहती थी.
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समाप्त
ट्रेलर में बाल ठाकरे का रोल निभानेवाले नवाज़ुद्दीन पाकिस्तानी क्रिकेटर जावेद मियांदाद की बल्लेबाज़ी की तारीफ़ के साथ-साथ देश के जवानों के बलिदान की बात करते नज़र आ रहे हैं .
दरअसल, जावेद मियांदाद और बाल ठाकरे के बीच जो दृश्य फिल्माया गया है वह सार्वजनिक बातचीत का दृश्य है.
सुजाता आनंदन बताती हैं कि मियांदाद और ठाकरे की यह सार्वजनिक बातचीत मीडिया के सामने हुई थी. उस समय बाल ठाकरे ने एक बार भी पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कुछ नहीं बोला और ना ही देश के जवानों पर कोई टिप्पणी की.
वे बताती हैं, ''साल 2004 में ठाकरे ने घर में जावेद मियांदाद को आमंत्रित किया था जहां उनके बेटे ने जावेद का ऑटोग्राफ़ भी लिया था. ठाकरे को खेल से कोई आपत्ति नहीं थी. वे मानते थे कि पाकिस्तान के लोग शांति चाहते हैं, राजनीति ने सब ख़राब कर रखा है. इतना ही नहीं ठाकरे ने जावेद मियांदाद के खेलने की शैली की भी तारीफ़ की थी.''
सुजाता का कहना है कि सीन में बाल ठाकरे को जावेद मियांदाद के साथ बंद कमरे में बात करते दिखाया गया है, ऐसे में यह कह पाना मुश्किल है कि बंद कमरे में दोनों के बीच ऐसी कोई बातचीत हुई थी या नहीं, लेकिन सार्वजनिक तौर पर जो भी बातचीत हुई उसमें तारीफ़ के अलावा और कुछ नहीं था.
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1995 के विधानसभा चुनाव के नतीजों में बाल ठाकरे ने देखा कि कई मुसलमानों ने उनकी पार्टी को वोट दिया था.
मुसलमान से किस तरह का था बैर...
सुजाता आनंदन कहती हैं, ''यह भी दिलचस्प है कि बाल ठाकरे को यूं तो मुसलमानों के ख़िलाफ़ माना जाता था लेकिन 1995 के बाद उन्होंने ये स्पष्ट कर दिया था कि वह भारतीय मुसलमानों के नहीं बल्कि पाकिस्तानी मुसलमानों के ख़िलाफ़ हैं.''
वे बताती हैं, ''1995 के विधानसभा चुनाव के नतीजों में बाल ठाकरे ने देखा कि कई मुसलमानों ने उनकी पार्टी को वोट दिया जो कि हैरान करने वाली बात थी. मुसलमान समुदाय उन दिनों बाबरी मस्जिद के गिरने से असुरक्षित महसूस करते थे और कांग्रेस से बेहद नाराज़ थे. इसलिए उन्हें लगने लगा कि शिव सेना जो उनके ख़िलाफ़ रहती है उससे ही सुरक्षा मांगी जाए. सुनने में अटपटा ज़रूर लग सकता है लेकिन उन दिनों रुख़ ही कुछ ऐसा था.''
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1971 में आई फ़िल्म 'तेरे मेरे सपने' को थिएटर से उतारा गया था.
देवानंद से दोस्ती तो फिर क्यों हटाया उनकी फ़िल्म का पोस्टर
ट्रेलर में से एक सीन है जिसमें बाल ठाकरे देवानंद की फ़िल्म 'तेरे मेरे सपने' का पोस्टर उतारकर मराठी फ़िल्म सोंगाड्या का पोस्टर लगवाते हैं.
इसके बारे में सुजाता कहती हैं कि कोहिनूर थिएटर में हुआ ये मामला इस बात को साबित करने के लिए था कि बाल ठाकरे के लिए हिंदी हो या कोई और भाषाई फ़िल्म 'मी मराठा' सबसे आगे रहेगा.
सोंगाड्या फ़िल्म सुपरहिट हुई थी. सुजाता बताती हैं, ''यूं तो देवानंद और बाल ठाकरे की दोस्ती बहुत पुरानी थी. जब बाल ठाकरे कार्टूनिस्ट थे, तब से वह देवानंद को जानते थे और दोनों कई दफ़ा साथ में खाना खाने जाते थे, घर में आना जाना था.''
सुजाता के अनुसार फ़िल्म में दर्शाया गया ये सीन हक़ीक़त में हुआ था. साल 1971 में कोहिनूर थिएटर से देवानंद की फ़िल्म का पोस्टर उतारना, एक तरह से 5 साल पहले एक नई पार्टी के तौर पर उभरी शिव सेना को एक और मुद्दा दे गया.
'ठाकरे' 25 जनवरी को रिलीज़ होगी.
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