'मुआवज़ा नहीं, हमें हमले का बदला चाहिए'

  • संजय तिवारी
  • बीबीसी हिंदी डॉट काम के लिए
शोकमग्न चंद्रकांत गलांडे परिवार

इमेज स्रोत, Sujit ambekar

सतारा से 100 किलोमीटर दूर छोटा सा गाँव है जाशी. इस गाँव की आबादी 1250 के करीब है.

यह गाँव सोमवार को लगभग बंद रहा, ना कोई खेत पर गया और ना किसी ने दुकान खोली. गाँव के बाहरी हिस्से में एक घर के करीब बड़ी भीड़ इकठ्ठा रही.

जब हम वहां पहुंचे तो सुबह से ही जमघट लगा था और हर कोई शोक में था, मानो अपने ही परिवार का कोई सदस्य नहीं रहा हो.

इमेज स्रोत, Sujit Ambekar

इमेज कैप्शन,

चंद्रकांत

गलांडे परिवार के तीन बेटे इंडियन आर्मी में सेवा करते हैं. लेकिन रविवार को उड़ी में हुए चरमपंथी हमले में इनमें से एक 27 वर्षीय चंद्रकांत मारे गए.

चंद्रकांत की पत्नी और माँ बुरी तरह से रो रही थीं. चंद्रकांत के दो बेटे हैं. सबसे छोटा दो वर्ष का है.

बच्चों को समझ ही नहीं आ रहा है कि घर में यह क्या हो रहा है. परिवार के किसी भी सदस्य से बात करो, वो यही कहता है- "मुआवज़ा नहीं मिला तो भी चलेगा, हमें तो इस हमले का बदला चाहिए."

गाँव के लोग भी उड़ी हमले को कायराना बताकर ग़ुस्से का इज़हार कर रहे हैं. उनका कहना है, "गाँव ने एक चंद्रकांत खोया है, लेकिन देश में हज़ारों चंद्रकांत अब भी हैं. इस हमले का मुंहतोड़ जवाब दिया जाना चाहिए."

चंद्रकांत के एक दोस्त शंकर खाड़े ने बताया, "इस गाँव में स्कूल नहीं था. उसे पढ़ने की लगन थी. चंद्रकांत पड़ोस के गाँव में रोज़ाना चार किलोमीटर का सफर तय कर स्कूल में पढ़ने जाता था."

तुकाराम सुतार बताते हैं, "छुट्टियों पर गाँव आने के बाद चंद्रकांत अपने बच्चे को स्कूल लेकर आते थे. वो बच्चों के साथ खूब खेलते और उन्हें बॉर्डर पर सिपाही की जिंदगी के बारे में बताते थे."

उनके एक अन्य मित्र अर्जुन कदम कहते हैं, "सरकार को कुछ तो जरूर करना चाहिए...गाँव में दुख छा गया है...इससे अधिक और क्या कहूँ."

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)