पानी रोकने से भारत-पाकिस्तान, दोनों का नुक़सान

  • हिमांशु ठक्कर
  • पर्यावरणविद्
सिंधु नदी

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जहां तक आधिकारिक तौर पर रिव्यू डिमांड की बात है तो भारत सिंधु नदी जल समझौते को रिव्यू करने की बात कर सकता है.

इस समझौते को 56 साल हो गए हैं और कश्मीर एसेंब्ली ने रिव्यू करने के लिए प्रस्ताव भी पास किया था.

लेकिन जहां तक पानी बंद करने की बात है तो यह चार-पांच बड़ी-बड़ी नदियों की बात है और हमारे पास इसके लिए कोई स्टोरेज या डायवर्ज़न स्ट्रक्टर नहीं है.

हमने अगर फिर भी पानी रोकने की कोशिश की, तो इसका सबसे ज़्यादा असर हमारे ही पर्यावरण, नदी, बायोडायवर्सिटी और लोगों पर होगा.

हम इस पानी को जहां मोड़ेंगे, वहां अगर इसके इस्तेमाल या भंडारण की व्यवस्था नहीं है, तो वहां भी नुक़सान होगा.

यह तो फौरी तौर पर होने वाला नुकसान है और इससे आपका कोई सैनिक मक़सद भी पूरा नहीं होने वाला है.

इस तरह के क़दम से पाकिस्तान के किसानों, नदियों, पर्यावरण और लोगों का ज़्यादा नुक़सान होगा.

दूसरी तरफ हमारा देश, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, म्यांमार और चीन जैसे देशों से नदियां शेयर करता है.

इन देशों के साथ भारत की एक विश्वसनीयता है कि हम कोई समझौता करते हैं, तो उसका पालन करते हैं. ऐसे में भारत की विश्वसनीयता को एक धक्का लग सकता है.

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सिंधु और सतलज नदियां चीन से निकलकर भारत होते हुए, पाकिस्तान जाती हैं. इसके अलावा एक और बड़ी नदी ब्रह्मपुत्र भी तिब्बत से निकलती है. ब्रहम्पुत्र की और भी बहुत सारी शाखाएं तिब्बत होते हुए भारत आती हैं.

अगर भारत को हुए पुराने नुक़सान पर ध्यान दें तो जून 2000 में चीन से होकर आने वाली शियांग नदी में आई बाढ़ से अरूणाचल प्रदेश में बहुत नुकसान पहुंचा था.

इस बाढ़ में बहुत से लोग मारे गए. लोगों, किसानों और खेतों को नुक़सान हुआ.

उसी साल अगस्त में चीन से सतलज में एक बहुत बड़ी बाढ़ आई. इससे हमारी बिजली परियोजना को नुक़सान हुआ, लोग मारे गए और हज़ारों करोड़ का नुक़सान हुआ.

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हमें आज तक उन दोनों बाढ़ की वजह का पता नहीं है. चीन अगर चाहे तो ऐसे आर्टिफ़िशियल बाढ़ ला सकता है.

ऐसे में हमारा बहुत बड़ा नुक़सान हो सकता है और हमें इन बातों को ध्यान में रखना चाहिए.

(बीबीसी संवाददाता अमरेश द्विवेदी के साथ बातचीत पर आधारित)

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