आफ़्सपा पर इरोम मिलेंगी राष्ट्रपति से
- दिव्या आर्य
- संवाददाता, दिल्ली

शर्मिला की आफ़्स्पा हटाने की मांग को दुनियाभर की महिला आंदोलनकारियों हस्ताक्षर अभियान चलाया है
भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव पर मानवाधिकार कार्यकर्ता इरोम शर्मिला का कहना है कि मतभेदों को सुलझाने के लिए हिंसा की जगह शांति का रास्ता अपनाना चाहिए ख़ास तौर पर जब दोनों देश परमाणु शक्ति रखते हैं.
दिल्ली में एक प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए इरोम ने कहा, "अगर मैं भारत की प्रधानमंत्री होती तो मैं कहती कि मन को शांत और ठंडा रखें, ज़रूरत है संवेदना के साथ लोगों की बात सुनी जाए, हमला करने की जगह बातचीत का रास्ता अपनाया जाए."
नौ अगस्त को इरोम शर्मिला ने शहद चखकर इम्फ़ाल में अपनी 16 साल लंबी भूख हड़ताल को ख़त्म किया था.
वो 1958 में पारित किए गए आफ़्स्पा क़ानून (सशस्त्र बल विशेषाधिकार क़ानून) जिसके तहत सेना को विशेष सुरक्षा प्राप्त हैं, का विरोध कर रही हैं.
इरोम ने कहा कि किसी भी लोकतंत्र में शासन करने के लिए सैन्य हथियारों का इस्तेमाल एक विरोधाभास है और लोगों के दिल जीतकर ही देश बेहतर चल सकता है.
इसी साल जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने 'अनिश्चितकालीन समय' तक सेना के किसी प्रदेश में लागू किए जाने को 'लोकतांत्रिक प्रक्रिया का मज़ाक'बताया था.

इरोम शर्मिला दिल्ली में पत्रकारों से मिली
कोर्ट मणिपुर में मुठभेड़ में हुईं 1528 मौतों के मामले पर एक जनहित याचिका की सुनवाई कर रहा था.
अब शर्मिला की आफ़्स्पा हटाने की मांग को दुनियाभर की महिला आंदोलनकारियों ने अपना औपचारिक समर्थन दिया है.
ऐंजला डेविस, ईव एंस्लर, इंदिरा जयसिंह, अरुणा राय और परवीना एहंगार समेत 1,000 औरतों ने हस्ताक्षर कर एक मुहिम की शुरुआत की है.
इन्हीं में से एक महिला आंदोलनकारी उमा चक्रवर्ती ने बीबीसी से बातचीत में कहा, "महिला आंदोलन लंबे समय से आफ़्स्पा के हटाए जाने की मांग करता रहा है क्योंकि हमारी नज़र में ये क़ानून ख़ौफ़नाक है और इसके लागू किए जाने से हिंसा बढ़ी है और मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ है."

उन्होंने कहा, "हम मानते हैं कि सेना किसी भी तनाव ग्रस्त इलाक़े में तैनात की जा सकती है पर उन्हें देश के क़ानून के तहत ही काम करना चाहिए ताकि उनकी जवाबदेही बनी रही."
अब शर्मिला की कोशिश है कि सोमवार को 1,000 हस्ताक्षरों के समर्थन वाली मांग वो देश के राष्ट्रपति से मिलकर उन्हें देंगी.