'भैया लड़ना है तो लड़ लो, तमाशा क्यों बने हुए हो'
- वुसतुल्लाह ख़ान
- पाकिस्तान से बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए

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तो क्या बंटवारे से पहले दुनिया से पूछा था कि दोस्तों हम विभाजन करने जा रहे हैं, आपकी इसमें क्या सलाह है?
दोस्तों हम कश्मीर के भीड़छत्ते में हाथ डालने जा रहे हैं? दोस्तों हम 65 का युद्ध कर लें कि ना करें?
71 में एक दूसरे पर चढ़ दौड़ें या ख़ुद को रोक लें. परमाणु बम फोड़ लें कि ना फोड़ें?
करगिल-करगिल खेल लें या फिर अपना मुंह दूसरी तरफ़ कर लें.
तो अब क्यों अपना अपना पिटारा लेकर संयुक्त राष्ट्र तो कभी भांति-भांति की राजधानियों तक दौड़ा जा रहा है कि पाकिस्तान को बदमाशी से रोकिए, भारत को दक्षिण एशिया में दादागीरी से मना कीजिए.
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देखिए देखिए बर्दाश्त की भी एक हद होती है, अगर आपने कुछ नहीं किया तो फिर हमें एक दूसरे का सिर फोड़ना पड़ेगा.
अभी तो टीवी स्क्रीनों पर ही एक दूसरे को सती करने की कोशिश कर रहे हैं. मगर फिर ये आग टीवी स्टुडियो तक थोड़े ही रहेगी. इत्यादि इत्यादि.
भैया लड़ना है तो लड़ लो. दुनिया को चीख-चीखकर क्या बताना चाह रहे हो?
दुनिया के पास इतनी फुरसत कहां है कि हर थोड़े थोड़े समय बाद आपकी चिल्ल-पुकार पर ध्यान दे. अब तो दुनिया को भी पता चल गया है कि आप दोनों पेशेवर रूदालियों की तरह हो.
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मनोरंजन की भूखी दुनिया के आगे अपना-अपना राग अलापते रहिए.
शेर आया, शेर आया की कहानी किसी और देश की थोड़े ही है. हमारी और आपकी ही तो है, पीढ़ी दर पीढ़ी.
बचपन में जब हमें किसी को डराना धमकाना होता मगर हाथापाई से भी बचना चाहते, तो अपने एक दोस्त से कहते, देख बे, जब मैं इमरान को गालियां देनी शुरू करूं तो देने देना. जब मैं घड़ी उतार कर तुझे पकड़ाऊं तो पकड़ लीजो.
जब मैं आस्तीने चढ़ाना शुरू करूं तो तू भी मुंह से झाग निकालना. लेकिन जब मैं इमरान की ओर घूसा तानते हुए लपकूं तो पीछे से झप्पा डाल लेना ताकि बाद में पूरे मोहल्ले को सीना फुला-फुला बता सकूं कि वो तो अख़्तर ने मुझे झप्पा डाल दिया वरना मैं इस इमरान की बोटी-बोटी कर चील कौओं को खिला देता.
ज़रा गौर से देखिए. कहीं अमरीका ने इस समय भारत को पीछे से झप्पा तो नहीं डाला हुआ. कहीं पाकिस्तान ने आस्तीनें चढ़ाकर चीन को घड़ी तो नहीं पकड़ा रखी.
और हम मीडियाई मामू बने अक्षरों और भाषणों के पत्थरों से एक दूसरे का सर फोड़ने में जुटे पड़े हैं.
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भैया लड़ना है तो लड़ लो, दुनिया के सामने तमाशा क्यों बने हुए हो.
पाकिस्तान में हर दूसरे ट्रक के पीछे लिखा होता है, "टप्पर है तो पास कर वरना बर्दाश्त कर."
क्या भारत में भी ट्रकों के पीछे कुछ ऐसा ही लिखा होता है?