अलग है रामनगर की 233 साल पुरानी रामलीला

  • रौशन जायसवाल
  • बनारस से बीबीसी हिन्दी डॉट कॉम के लिए
रामलीला

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न तो बिजली की रोशनी और न ही लाउडस्पीकर. साधारण सा मंच और खुला आसमान. काशी को यूँ ही दुनिया का 'सबसे बूढ़ा शहर' नहीं कहा जाता है. यहां आते ही आधुनिक ज़माना पीछे छूट जाता है.

21वीं सदी में भी बनारस में कई पुरानी परम्पराएं मौजूद हैं और इन्हीं में से एक है रामनगर की मशहूर रामलीला. काशी के दक्षिण में गंगा के किनारे मौजूद 'उपकाशी' को ही रामनगर कहा जाता है.

रामनगर के लोग राम को सबसे बड़ा देवता मानते हैं. काशी क्षेत्र में गंगा के बाएं किनारे पर शिव, जबकि दाहिनी ओर राम के भक्त मौजूद हैं.

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साल 1783 में रामनगर में रामलीला की शुरुआत काशी नरेश उदित नारायण सिंह ने की थी.

यह रामलीला आज भी उसी अंदाज़ में होती है और यही इसे और जगह होने वाली रामलीला से अलग करता है. इसका मंचन रामचरितमानस के आधार पर अवधी भाषा में होता है.

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233 साल पुरानी रामनगर की रामलीला पेट्रोमेक्स और मशाल की रोशनी में अपनी आवाज़ के दम पर होती है. बीच-बीच में ख़ास घटनाओं के वक़्त आतिशबाज़ी ज़रूर देखने को मिलती है.

इसके लिए क़रीब 4 किलोमिटर के दायरे में एक दर्जन कच्चे और पक्के मंच बनाए जाते हैं, जिनमें मुख्य रूप से अयोध्या, जनकपुर, चित्रकूट, पंचवटी, लंका और रामबाग को दर्शाया जाता है.

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रामलीला की तैयारी, इसकी शुरुआत और निर्देशन का काम मुख्य रूप से दो लोग करते हैं. एक पर मुख्य किरदारों की ज़िम्मेदारी होती है, जबकि दूसरे पर बाक़ी पात्रों की.

इन्हीं में से एक हैं पण्डित लक्ष्मी नारायण पाण्डेय, जो इस काम में अपने परिवार की तरफ से चौथी पीढ़ी से सदस्य हैं. उनके दादा एक ज़माने में इसकी व्यवस्था के काम में लगे होते थे.

उन्होंने बताया कि रामचरितमानस की चौपाइयों पर कुल 27 किरदारों के लिए रामलीला में 12-14 बच्चे हिस्सा लेते हैं.

लक्ष्मी नारायण पाण्डेय के मुताबिक सावन से ही रामलीला की तैयारी शुरू हो जाती है और भादों में अनंत चतुर्दशी से लीला शुरू होकर आश्विन महीने की शुक्ल पूर्णिमा को ख़त्म होती है.

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रामलीला के दौरान परम्परा के मुताबिक रोज़ाना 'काशी नरेश' भी हाथी पर सवार होकर आते हैं और उनके आने के बाद ही रामलीला शुरू होती है.

यहां मौजूद सच्चिदानंद ने बीबीसी को बताया कि वो दस साल से रामनगर की रामलीला में कई किरदारों में भूमिका निभा चुके हैं.

इस लीला में लड़किया हिस्सा नहीं लेती हैं, उनकी भूमिका लड़के ही निभाते हैं.

कृष्ण उपाध्याय ने बताया कि वो बचपन में अपने नाना को लीला में हिस्सा लेते देखते थे और ख़ुद भी पिछले तेरह साल से राक्षस से लेकर लगायत देव तक की भूमिका निभा चुके हैं.

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एक हाथ में पीढ़ा और दूसरे में रामचरितमानस की किताब लेकर यहां हर साल हज़ारों लोग रामलीला देखने आते हैं. पीढ़ा बैठने के लिए तो रामचरितमानस, लीला के दौरान पढ़ते रहने के लिए. यहां लोग रामचरितमानस की चौपाइयां पढ़ते रहते हैं और रामलीला संवाद के साथ आगे बढ़ती है.

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