मिलिए एएमयू की 'यंग' महिला नेताओं से!
- नितिन श्रीवास्तव
- बीबीसी संवाददाता

इमेज स्रोत, facebook/labibashervani
हाल ही में हुए अलीगढ विश्विद्यालय छात्र संघ चुनाव के नतीजो में 10 सदस्यीय कैबिनेट में तीन पदों पर महिलाओं ने बाज़ी मारी है.
गज़ाला अहमद, लबीबा शेरवानी और सदफ़ रसूल ने पहली बार छात्र संघ चुनाव लड़े थे और उन्हें जीत भी हासिल हुई.
लबीबा शेरवानी को ये कहने में कोई गुरेज़ नहीं कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्र संघ चुनाव में उनकी जीत में पुरुषो की बड़ी भूमिका रही है.
माँ-बाप की अकेली संतान, 19 साल की लबीबा शेरवानी सोशल वर्क में ग्रैजुएशन कर रहीं हैं. उन्हें इस बात पर नाज़ है कि उन्हें परिवार का सहयोग पढ़ने से लेकर चुनाव लड़ने तक के लिए मिला है.
उन्होंने कहा, "मैं अलीगढ़ की रहने वाली हूँ तो शुरुआत से पता है कि एएमयू के हालात कैसे रहे हैं. अपने दोस्तों-क्लास वालों से राय लेने के बाद चुनाव लड़ा. हमारी यूनिवर्सिटी के छात्रों में से क़रीब 10,000 लड़के और 5,000 लड़कियां हैं, इसलिए मैं शुक्रगुज़ार हूँ उन लड़कों की भी जिन्होंने हम सभी को जिताया".
चुनावों में जीतने वाली एक और महिला ग़ज़ाला अहमद ने इंडियन एक्सप्रेस अखबार से कहा, "इस बार तीन महिलाएं चुनाव लड़ी थीं और तीनों जीती हैं. आगे जब 20 सीटें लड़ेंगी तब बीसों जीतेंगीं...."
इमेज स्रोत, Gazala ahmad/youtube
समाचार एजेंसियों के अनुसार एएमयू प्रवक्ता उमर पीरज़ादा ने कहा है, "एएमयू चुनाव में 17,000 से ज़्यादा छात्रों ने वोट दिया है. "
ग़ौरतलब है कि एएमयू में महिलाओं के अधिकारों को लेकर पहले भी कई दफ़ा विवाद उठा है.
मिसाल के तौर पर वर्ष 2014 में ऐसी खबरें आईं थीं कि एएमयू की सेंट्रल लाइब्रेरी में महिलाओं का प्रवेश इसलिए रोका गया क्योंकि कथित तौर पर इससे पुरुषों का ध्यान भटक सकता था.
हालांकि कुछ दिन बाद ही ऐसी ख़बरें भी आईं कि इस आदेश को वापस ले लिया गया.
इमेज स्रोत, labiba sherwani/facebook
अगर एएमयू छात्र संघ चुनावों के इतिहास पर ग़ौर करें तो 2015 के चुनावों में एक महिला को ही जीत हासिल हुई थी.
लेकिन लबीबा शेरवानी इस बात से इनकार करतीं हैं कि महलाओं के चुनाव लड़ने में किसी को आपत्ति थी या पुरुषों ने उनके खिलाफ वोट दिया.
उन्होंने कहा, "मुझे जो 7,500 के करीब वोट मिले हैं, वो बिना पुरुषों के समर्थन के संभव ही नहीं था. अब मुझे लगता है कि महिला या पुरुष में भेदवाद करना ख़त्म होता जा रहा है."
लबीबा शेरवानी को लगता है कि एएमयू में लोगों को एक्सपोज़र यानी खुलापन लाने की ज़रुरत है, लेकिन वो ये भी मानती हैं कि विश्विद्यालय के छात्रों में टैलेंट की भरमार है.
एएमयू के इन चुनावों में अपनी जीत पर तीनों महिला उम्मीदवार अपने परिवारों से मिले समर्थन का ज़िक्र करना नहीं भूलती हैं.