क्या ब्रिक्स की दीवार खिसक रही है?

  • ज़ुबैर अहमद
  • बीबीसी संवाददाता, दिल्ली
ब्रिक्स

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भारत में ब्रिक्स का आठवां शिखर सम्मेलन हो रहा है. गोवा में 15-16 अक्तूबर को भारत के अलावा ब्रिक्स के चार दूसरे देश चीन, रूस, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका मिल रहे हैं.

यह शिखर सम्मेलन उस वक़्त होने जा रहा है जब भारत के अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ संबंध तनावपूर्ण हैं.

उड़ी हमले के बाद कुछ लोगों को लगता है कि चीन पाकिस्तान का साथ दे रहा है. इसलिए राष्ट्रवादी भारतीयों ने सोशल मीडिया पर चीन में बनी चीज़ों के बहिष्कार का अभियान चला रखा है.

हालांकि उन्हें इसमें कोई ख़ास कामयाबी नहीं मिल पाई है.

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फेडरेशन ऑफ़ इंडियन चैंबर्स ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के महासचिव दीदार सिंह पूछते हैं कि क्या भारत इस मौक़े का इस्तेमाल चीन को पाकिस्तान का समर्थन नहीं देने के लिए मजबूर करने में करेगा?

हालांकि उनका मानना है कि, "ब्रिक्स कोई द्विपक्षीय मंच नहीं है."

इस साल ब्रिक्स सम्मेलन की अगुआई करने वाले देश भारत ने ऐसा कोई संकेत तो नहीं दिया है लेकिन वो चाहे तो चीन और दूसरे सदस्य देशों के साथ पाकिस्तान का मुद्दा उठा सकता है.

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इस संबंध में दी गई आधिकारिक सूचना में यह कहा गया है कि शिखर सम्मेलन का उद्देश्य सदस्य देशों के नौजवानों के बीच ज्यादा से ज्यादा संपर्क बढ़ाना है. संस्थागत निर्माण और पिछले समझौतों का पालन करना सम्मेलन के एजेंडे में शीर्ष पर होंगे.

ब्रिक्स की स्थापना के आठ साल हो चुके हैं. लेकिन अभी भी इस बात को लेकर अनिश्चिता की स्थिति बनी हुई कि क्या है इसका मक़सद और क्या यही सही दिशा में जा रहा है.

जानकारों का कहना है कि ब्रिक्स भारत और चीन जैसे अपने सदस्य देशों के अंतर्विरोध और मतभेदों का सामना कर रहा है.

लेकिन ब्रिक्स चैंबर्स ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के मुखिया बीबीएल मधुकर बताते है, "ऐसे विविधता वाले समूह में रातों-रात कुछ नहीं होने वाला है. सदस्य देशों को बैठक करते रहना होगा. परिणाम सकारात्मक आ रहे हैं. पिछले साल चीन और भारत के नेता आपस में मिले थे और इसका असर हुआ था."

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बेशक पिछली बार रूस में हुए सम्मेलन के बाद से अब तक ब्रिक्स को कुछ नकारात्मक चीजों का सामना करना पड़ा है. ब्राज़ील की राष्ट्रपति जिल्मा रूसेफ को महाभियोग का सामना करना पड़ा है तो दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति जैकब ज़ुमा महाभियोग से बाल-बाल बचे हैं.

ब्रिक्स की स्थापना इसके सदस्य देशों की उभरती अर्थव्यवस्था को देखते हुए की गई थी. लेकिन इसके तीन सदस्य देश आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं.

ब्राज़ील और रूस में विकास दर नीचे की ओर जाने वाला है तो चीन की अर्थव्यवस्था मंदी की मार झेल रही है, जो कि चिंता का विषय है.

साढ़े सात फ़ीसदी विकास दर के साथ केवल भारत ही ब्रिक्स में उम्मीद की किरण बना हुआ है.

ब्रिक्स को लेकर उठ रही इन चिंताओं को दीदार सिंह ख़ारिज करते हैं. वो कहते हैं, "भूमंडलीय अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव अब एक पैटर्न बन गया है."

उनकी नज़र में ब्रिक्स अब दुनिया में एक ताक़त बन चुका है. ब्रिक्स के अपने बैंक 'न्यू डेवलपमेंट बैंक' की शंघाई में स्थापना हो चुकी है.

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वो कहते हैं, "पहली बार हम ब्रिक्स ट्रेड फेयर का आयोजन दिल्ली में करने जा रहे हैं. यह सही दिशा में सही क़दम है."

ब्रिक्स बैंक का उद्देश्य दुनिया की कमज़ोर अर्थव्यवस्थाओं को मदद पहुंचाना है. ब्रिक्स के सदस्य दुनिया की उभरती अर्थव्यवस्था वाले देश हैं.

एक ख्याल था कि ब्रिक्स के देशों को वर्ल्ड बैंक और इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड पर अपनी निर्भरता कम करने की ज़रूरत है. इन संस्थाओं पर पश्चिमी देशों का दबदबा है.

बैंक की स्थापना को ब्रिक्स की एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा है.

ब्रिक्स देशों में दुनिया की 44 फ़ीसदी आबादी रहती है. इन देशों के पास दुनिया की जीडीपी का 30 फ़ीसदी और दुनिया भर के व्यापार का 18 फ़ीसदी हिस्सा है.

पिछले शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि ब्रिक्स एक प्रेरणादायी ताक़त है. उनकी इस बात से दूसरे सदस्य भी इत्तेफ़ाक़ रखते हैं.

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