आवाज़ उठाता बेआवाज़ मराठा आंदोलन
- ज़ुबैर अहमद
- बीबीसी संवाददाता कोल्हापुर से

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महाराष्ट्र का कोल्हापुर जितना मराठों का गढ़ माना जाता है उतना ही ये मराठों की प्रतिष्ठा के लिए भी जाना जाता है.
24 शहरों से होकर अब मराठा आंदोलन कोल्हापुर आ गया है.
शहर में जश्न का माहौल है. ऐसा लगता है मानो किसी बड़ी जीत के बाद सारा शहर एक साथ खुशियां मना रहा है. शहर का माहौल सुख, शांति और भाईचारे का एहसास दे रहा है.
स्कूल और कॉलेज के लड़के और लड़कियां आंदोलन वाले टी-शर्ट खरीद रहे हैं. वालंटियर्स को गेरुए रंग के झंडे बाटे जा रहे हैं.
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कई युवा 'मराठा' शब्द के टैटू अपने बांहों पर बनवा रहे हैं.
अंग्रेजी के मशहूर कवि विलियम वर्ड्सवर्थ ने फ्रांसीसी क्रांति के बारे में कभी कहा था कि फ्रांस की क्रांति के दौरान ज़िंदा रहना ही काफी था लेकिन यदि आप युवा हैं तो ये बहुत खुशी की बात थी.
इसी तरह यहाँ के मराठा युवा इस आंदोलन को एक नयी सुबह मानते हैं.
ऋतुजा पाटिल स्थानीय स्कूल में पढ़ाती हैं. वह कहती है, "इस क्रांति ने हमें मस्त कर दिया. मराठा होने का मुझे गर्व है."
कोल्हापुर आरक्षण की मांग से गूंज तो जरूर रहा है लेकिन यहाँ ग़रीबी कम ही दिखाई देती है.
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इस ऐतिहासिक शहर में हर जगह बड़े-बड़े पोस्टर लगे हैं. इनमें शिवाजी की तस्वीरें खासतौर से नज़र आती हैं. वाहनों को रंग बिरंगे झंडों से सजाया गया है.
"एक मराठा, लाख मराठा" स्लोगन से मराठा एकता पर ज़ोर दिया जा रहा है.
हर शहर में निकाले गए मोर्चे से पहले माहौल ऐसा ही होता है.
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मराठा गौरव और मराठा समुदाय के भारी बहुमत को ध्यान में रखते हुए यहाँ की रैली का प्रबंध करने वाले पिछले कार्यकर्ता एक महीने से इसके आयोजन की तैयारी में जुटे थे.
रैली के प्रबंधकों में से एक इंदरजीत सावंत का कहना है, "कोल्हापुर में मराठों की सबसे अधिक आबादी है. हम सभी लोग महीने भर से इसकी तैयारी में लगे थे. लगभग 500 डॉक्टरों की टीम है, दस हज़ार वालंटियर्स हैं. पार्किंग का इंतज़ाम करने वाले लोग हैं. इसके इलावा प्रशासन भी इसके इंतज़ाम में कई दिनों से लगा था."
आरक्षण समेत कई मांगों को लेकर अगस्त में शुरू हुए मराठा मोर्चों के बारे में कहा जाता है कि ये लीडरलेस है यानी इस आंदोलन का कोई सियासी पार्टी या लीडर्स नेतृत्व नहीं कर रहे हैं.
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ये खामोश रैली है यानी इसमें नारे नहीं लगते या शोर नहीं होता है.
ऐसे में इन रैलियों में फौजियों जैसा अनुशासन और शान्ति कैसे बनी रहती है ? इन रैलियों का इंतज़ाम कोई तो करता होगा ?
इंदरजीत सावंत कहते हैं, "ये एक क्रांति है. मराठों की क्रांति है. मराठा समाज का बच्चा-बच्चा इसका नेता है"
दरअसल मराठा समाज की अलग-अलग संस्थाएं मिलकर इन मोर्चों का इंतज़ाम करती हैं.
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इन मोर्चों का स्वरुप एक है. मोर्चे के सब से आगे युवा लड़के और लड़कियां होती हैं, फिर महिलाएं, महिलाओं के पीछे पुरुष.
आखिर में यानी सब से पीछे सियासी नेता होते हैं. वालंटियर्स ने कहा कि कई सियासी पार्टियों ने इस आंदोलन को हाईजैक करना चाहा लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली.
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मराठा आंदोलन के बारे में एक आरोप ये है कि ये पिछड़ी जातियों (ओबीसी ) दलित विरोधी है लेकिन सभी कार्यकर्ता एक आवाज़ में कहते हैं कि उनका आंदोलन किसी धर्म या जाति के खिलाफ नहीं है.
दलित सामाजिक कार्यकर्ता विलास शिंदे कहते हैं कि शुरू में वो भी आंदोलन के साथ थे लेकिन धीरे-धीरे उन्हें एहसास हुआ कि 'मराठा समाज का गुस्सा दलितों का विरोध है'.
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उनका कहना है, "हमें आरक्षण मिलने से हुआ फ़ायदा उन्हें हज़म नहीं हो रहा है"
मराठा एक्टिविस्ट चंद्रकांत कहते हैं कि दोनों समुदायों के बीच तनाव ज़रूर पैदा हुआ है लेकिन इसे मीडिया ने हवा दी है.
श्रीराम पवार सकाल मीडिया कंपनी के ग्रुप एडिटर हैं. वो इस बात को ज़ोर देकर कहते हैं कि ये आंदोलन अनोखा है.
वह कहते है, "हर आंदोलन किसी के ख़िलाफ़ होता है जैसे मंडल आंदोलन वीपी सिंह के खिलाफ था. लेकिन मराठा आंदोलन किसी के खिलाफ नहीं है. ये सरकार के सामने अपनी मांगें ज़रूर रख रहा है लेकिन इसके ख़िलाफ़ नहीं है
हाल में हरियाणा में जाट आंदोलन या गुजरात में पटेलों का आंदोलन काफी हिंसक था. इन में कई लोगों की जानें गई थीं और संपत्ति बर्बाद हुई थी.
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लेकिन लाखों लोगों की मराठा रैलियां न केवल शांतिपूर्वक होती हैं बल्कि ये एक ख़ामोश आंदोलन भी है.
श्रीराम पवार कहते हैं कि ख़ामोशी ही इस आंदोलन की ख़ास शक्ति है.
पवार कहते है, "मुझे लगता है कि ये ख़ामोशी एक बहुत बड़ी आवाज़ है. ये हिंसक नहीं है और अब होगा भी नहीं.
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मगर सरकार ने इनकी मांगें पूरी नहीं की तो उसे इसका ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ेगा, न केवल सरकार को बल्कि पूरे सियासी सिस्टम को इसका ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ेगा"
जुलाई में कोर्पर्डी गाँव में एक मराठा लड़की के बलात्कार और हत्या के पीछे दलित युवाओं के नाम लिए जा रहे हैं.
इस काण्ड के बाद ही मराठा समाज सड़कों पर उतर आया लेकिन श्रीराम पवार के अनुसार इस काण्ड ने केवल एक ट्रिगर का काम किया है.
मराठों में बेचैनी सालों से थी. उनके अनुसार 1991 के आर्थिक सुधार में आयी खुशहाली से मराठा वंचित रहे.
काश्तकारों को नुकसान होने लगा जिसके कारण किसानों ने आत्महत्या करना शुरू कर दिया. मराठा समाज में मुट्ठी भर लोग ही अमीर हैं. अधिकतर जनता ग़रीब है.
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आंदोलन से जुड़े युवाओं में आरक्षण को लेकर काफी नाराज़गी है.
कुछ युवाओं से बात हुई उनका कहना था उन्हें अच्छे नम्बर मिलने के बावजूद कॉलेज में आसानी से प्रवेश नहीं मिलता. उनके अनुसार आरक्षण इसकी ख़ास वजह है.
मराठा समुदाय की तीन ख़ास मांगें हैं: कोर्पर्डी बलात्कार और हत्या के आरोपीयों को फांसी दी जाए, एट्रॉसिटी (क्रूरता) कानून में बदलाव लाया जाए ताकि इसका ग़लत इस्तेमाल बंद हो और मराठा समाज को शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण दिया जाए.
अपनी मांगों मनवाने के लिए मराठा आंदोलन का एक विशाल आयोजन दिसंबर में नागपुर में होगा. लेकिन आखरी मोर्चा मुम्बई में होगा जिसमें महाराष्ट्र भर से मराठा नेता शामिल होंगे.
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