कश्मीर के अख़बारों में स्कूल जलाने की निंदा

  • उपासना भट्ट
  • बीबीसी मॉनिटरिंग
कश्मीर में स्कूल के बच्चे

भारत प्रशासित कश्मीर में कई स्कूलों को जलाने की घटना के बाद घाटी के अख़बार शिक्षा को राजनीति से दूर रखने की अपील कर रहे हैं.

मीडिया के अनुसार पिछले कुछ हफ्तों में यहां क़रीब 20 स्कूलों को आग लगा दी गई है.

जुलाई में हिज़्बुल मुजाहिद्दीन के एक स्थानीय कमांडर बुरहान वानी की मौत के बाद राज्य में हिंसा और तनाव जारी है.

पिछले दिनों सुरक्षा बलों और प्रदर्शनकारियों के बीच संघर्ष में 90 लोगों की मौत हो चुकी है.

घाटी में स्कूलों को जलाने के मामले में अभी तक न तो कोई गिरफ्तारी हुई है और न ही किसी समूह ने इसकी ज़िम्मेदारी ली है.

कुछ रिपोर्ट में कहा गया है कि चरमपंथी समूह लश्कर-ए-तैयबा ने राज्य के शिक्षा मंत्री नईम अख़्तर को सितंबर में धमकी दी थी कि यदि स्कूल खोले गए तो परिणाम बुरे होंगे.

जम्मू कश्मीर के स्थानीय अख़बारों के मुताबिक़ ये घटनाएं राज्य में 1990 के दौर की याद दिलाती है जब घाटी में चरमपंथ का बोलबाला था.

कश्मीर की स्तंभकार हुमरा कुरैशी कहती हैं कि सरकार को स्कूल की सुरक्षा को प्राथमिकता देनी चाहिए.

उन्होंने कश्मीर टाइम्स में लिखा, "यदि मंत्रियों और उनके सहायकों और नुमाइंदों को पूरे साल गार्ड की सुविधा मिलती है तो स्कूलों, स्कूल कर्मचारियों और बच्चों को क्यों नहीं मिल सकती."

घाटी में प्रकाशित प्रमुख अंग्रेजी अख़बार 'ग्रेटर कश्मीर' ने आरोप लगाया है कि हाल के महीनों में कश्मीर में शिक्षा का राजनीतिकरण तेज़ी से हुआ है. इससे हालात बदतर होते जा रहे हैं.

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मसरत आलम बट, हुर्रियत कांफ्रेंस के नेता

'ग्रेटर कश्मीर' का कहना है, "शिक्षा को हर हाल में राजनीति से तटस्थ होना चाहिए. ये हमारे हुर्रियत (अलगाववादियों) नेताओं की ज़िम्मेदारी है कि इस बात को स्पष्ट करें कि राज्य में सरकारी स्कूलों को जलाया जाना किसी भी तरीक़े से बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है."

उर्दू अख़बार चट्टान कहता है कि सभी कश्मीरियों के लिए यह चिंता का विषय है.

अख़बार ने लिखा, "कुछ लोगों का मानना है कि ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि हाल की घटनाओं में पैलेट गन से सैंकड़ों बच्चे घायल हुए हैं. लेकिन बच्चों की पढ़ाई, परीक्षा में बाधा डालने का कोई मतलब नहीं है. जो देश प्रगति करना चाहता है वह बच्चों की शिक्षा की अनदेखी नहीं कर सकता."

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'ग्रेटर कश्मीर' के जेएच रेशी लिखते हैं, "हमें वैज्ञानिक, विद्वान, डॉक्टर, इंजीनियर, वकील और शिक्षकों की ज़रूरत है. यदि स्कूल इसी तरह बंद किए और जलाए जाते रहे तो हमें ज़िम्मेदार नागरिक कहां से मिलेंगे."

हालांकि भारतीय मीडिया में मुख्यधारा का अख़बार द टाइम्स ऑफ इंडिया लिखता है, "कश्मीर में चरमपंथी समूह स्कूलों को बर्बाद कर रहे हैं. पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान में तालिबान ने शिक्षा का जो हाल किया है घाटी में भी लगभग वैसे ही हालात हैं."

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