अगले 24 साल में पूरी तरह बदल जाएगी दुनिया
- आकार पटेल
- वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए

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विशेषज्ञों का अनुमान है कि आने वाले दिनों में एक नई तरह की चीज़ देखने को मिल सकती है, जिसे तकनीक का निराला अंदाज़ (टेक्नोलॉजिकल सिंग्युलैरिटी) कहा जा सकता है.
सरल अंदाज़ में कहें तो यह दो चीज़ों की ओर संकेत करता है. पहली बात यह है कि आने वाले दिनों में इंसानी बुद्धिमता से बेहतर कृत्रिम बुद्धिमता को तैयार कर लिया जाएगा. दूसरी बात यह है कि ये बुद्धिमता जिस रफ़्तार से समस्याओं का निदान करेगी, वह इंसानों के बस की बात नहीं होगी.
यह बदलाव इतने बड़े स्तर पर होगा, इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है. विशेषज्ञों के मुताबिक़ कृत्रिम बुद्धिमता के बनने के बाद दुनिया कैसी होगी, इसका अंदाज़ा अभी लगाना मुमकिन नहीं है.
उदाहरण के लिए, इस बुद्धिमता के आने के बाद जेनेटिक इंजीनियरिंग की गुत्थियों को सुलझाना संभव होगा और हर बीमारी का इलाज तलाश लिया जाएगा. इस वक़्त जो लोग हैं, उन सबकी उम्र लंबी हो जाएगी. यह बुद्धिमता ख़ुद को भी इतनी तेज़ी से बेहतर करती जाएगी जिसका अंदाज़ा फ़िलहाल नहीं लगाया जा सकता है.
ऐसा बदलाव कब होने जा रहा है, इस पहलू को जानना दिलचस्प है. विशेषज्ञों के दावे के मुताबिक़, यह साल 2040 तक संभव है, यानी अगले 24 सालों में ऐसा हो सकता है. कुछ लोगों का अनुमान है कि यह उससे भी पहले संभव है.
यहां तक कि जिन विशेषज्ञों को इस थ्योरी पर संदेह है, वे भी इसके होने को ख़ारिज नहीं कर रहे हैं. उनका बस इतना कहना है कि यह हमारे अनुमान की तुलना में देरी से होगा.
कंप्यूटर चकित करने वाले अंदाज़ में स्मार्ट होता जा रहा है. इसी साल 'कृत्रिम बुद्धिमता' ने एक नोबेल पुरस्कार जीत चुके प्रयोग को एक घंटे के अंदर समझ कर रिक्रिएट कर दिया था.
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इसके अलावा इसी साल, गूगल कंप्यूटर ने एक बेहद जटिल चीनी खेल 'गो' में चैंपियन खिलाड़ी को हरा दिया. इसकी उम्मीद नहीं थी, क्योंकि गो ऐसा खेल है जिसमें शतरंज की तुलना में कहीं ज़्यादा संभावनाएं होती हैं. पहले माना जाता था कि मशीन किसी वर्ल्ड चैंपियन को हरा दे, यह बहुत दूर की बात है.
इस साल कुछ ऐसे और भी बदलाव हुए, जिन्हें अभी काफ़ी दूर माना जाता था. उदाहरण के लिए ख़ुद से चलने वाली कार का उदाहरण ले लीजिए. अमरीकी कंपनी टेस्ला ने दसियों हज़ार सेल्फ़ ड्राइविंग फ़ीचर से लैस कारें बेची हैं.
यह कार अपने आस पड़ोस की चीज़ों को भांप लेती है और 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से चल सकती हैं. यह अपनें सेंसरों की मदद से लेन भी बदल सकती हैं. हालांकि ऐसी एक कार दुर्घटनाग्रस्त भी हुई, जिसमें चालक की मौत हो गई. लेकिन टेस्ला की ओर से कहा गया है कि उसने कुछ ही सप्ताह में अपनी तकनीक को काफ़ी बेहतर बना लिया है.
हममें से उम्रदराज़ लोग के लिए भविष्य से जुड़ी विचित्र कहानियां कोई नयी बात नहीं है. हमें 1980 के दशक में बताया गया था कि रोबोट आने वाले दिनों में इंसानों की नौकरी ले लेगा, तब जापानी कार निर्माताओं ने अपनी फ़ैक्टरियों में बड़े पैमाने पर ऑटोमैटेड काम लेना शुरू कर दिया था.
हालांकि हमें जितना डर था, उस अंदाज़ में वैसा कुछ नहीं हुआ. हालांकि इस बार अलग मसला है. इसकी वजह सूचना तकनीक का साल दर साल तेज़ रफ़्तार होना है.
हर दो साल में कंप्यूटिंग की स्पीड दोगुनी हो रही है. 15 साल की उम्र वाले भी इस बदलाव को महसूस कर रहे होंगे कि किस तेज़ी से तकनीक बदल रही है.
हर दशक में होने वाला बदलाव पिछले दशक की तुलना में कहीं ज़्यादा तेज़ी से हो रहा है और हम कंप्यूटर युग में कुछ ही दशकों से हैं.
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इसलिए हम आने वाले 24 साल में जो बदलाव देख पाएंगे, वैसे बदलाव बीते 24 सालों में नहीं हुए होंगे. यह बदलाव इतने बड़े पैमाने पर होगा कि उसके असर का अंदाज़ा की कल्पना भी मुश्किल है.
भारत और हमारे उपमहाद्वीपीय हिस्से में, आने वाला बदलाव उन बदलावों से भिन्न होगा जिसे यूरोप के लोग महसूस करेंगे. क्योंकि उन लोगों के सामने ग़रीबी, निरक्षरता और कुपोषण जैसी समस्याएं नहीं होंगी. लेकिन ये हमारे हिस्से में मौजूद होंगी. इन समस्याओं का हल तकनीक की मदद से आसानी से संभव है.
कृत्रिम बुद्धिमता की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि इससे मनुष्य की स्वयत्तता और सरकार की स्वायत्ता भी ख़त्म होगी.
मैं यह कहना चाहता हूं कि अपने आप चलने वाली कार बेहतर होगी, क्योंकि इसे मानवीय प्रयास की ज़रूरत नहीं होगी. लेकिन यह कार इसलिए भी बेहतर होगी क्योंकि वह ज़्यादा सुरक्षित होगी और वे ग़लतियां नहीं करेगी.
अगर इस सिद्धांत को स्वीकार कर लिया जाए और कृत्रिम बुद्धिमता तैयार कर ली जाए, जो मानव बुद्धिमता से बेहतर भी हो और उसे ख़ुद को बेहतर करने की क्षमता हो, तो निश्चित तौर पर मानव इस बुद्धिमता पर नियंत्रण हासिल करना चाहेगा.
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इसका क्या परिणाम होगा? विशेषज्ञ कह रहे हैं कि वे नहीं जानते. बहुत से विशेषज्ञों को इस बुद्धिमता से इंसानों को होने वाले ख़तरों की भी चिंता है.
दरअसल, हम लोग मानव समुदाय के अस्तित्व के सबसे बदलाव भरे दौर से गुज़र रहे हैं. हममें से अधिकांश अगले 24 साल तक मौजूद रहेंगे. 65 फ़ीसदी से ज़्यादा भारतीयों की उम्र 35 साल से कम है.
इतिहास में इससे पहले इतनी तेज़ी से बदलाव पहले कभी नहीं हुआ है.
(लेखक एमनेस्टी इंडिया के कार्यकारी निदेशक हैं, आलेख में उनके निजी विचार हैं.)
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