बकरियां बेचकर ज़िले को दिलाई मुक्ति
- गीता पांडे
- बीबीसी संवाददाता

कुंवर बाई यादव
छत्तीसगढ़ के धमतरी ज़िले को खुले में शौच करने की मजबूरी से मुक्त (ओडीएफ़) करने का श्रेय 105 साल की कुंवर बाई यादव को जाता है.
यह राज्य का पहला ज़िला है, जो खुले में शौच से मुक्त हो गया है.
उन्होंने इसके लिए अपनी बची-खुची संपत्ति बेच डाली. उनके पास संपत्ति के नाम पर सिर्फ़ कुछ बकरियां थी. उन्होंने अपने घर में शौचालय बनाने के लिए उन्हें बेच डाला.
उनका गांव कोटाभारी राजधानी रायपुर से 100 किलोमीटर दूर है. यहां महानदी पर बांध बनने की वजह से सत्तर के दशक के आख़िरी दौर में 18 परिवार विस्थापित होकर बसने आए थे.
इस एक छोटे से गांव और यहां रहने वाली सबसे बुज़ुर्ग महिला कुंवर बाई यादव ने मानो लगता है कि अपने वजूद से ज्यादा बड़ा काम कर दिखाया है.
कुंवर बाई यादव आज स्थानीय लोगों के बीच किसी सेलीब्रिटी से कम नहीं है. उन्होंने इस साधारण से गांव के नाम को सुर्खियों में ला दिया है.
स्थानीय लोग और सरकारी अधिकारी उन्हें खुले में शौच करने के ख़िलाफ़ राज्य में छेड़ी गई लड़ाई का 'प्रतीक' बताया है.
इस साल की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनके काम के सम्मान में उनका पैर छूकर प्रणाम किया था.
मंगलवार को एक बार फिर नरेंद्र मोदी छत्तीसगढ़ धमतरी ज़िले को ओडीएफ़ गांव घोषित करने के लिए आए थे.
कुंवर बाई यादव को शौचालय बनवाने में 22 हज़ार रुपये लगे है.
आठ लाख आबादी वाले इस धमतरी ज़िले ने यह उपलब्धि आख़िर कैसे हासिल की? छत्तीसगढ़ में किसी से भी यह सवाल पूछेंगे तो वे कुंवर बाई यादव का नाम लेगा.
दो साल पहले मोदी सरकार ने स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की थी. इस अभियान का मक़सद दो अक्टूबर 2019 तक खुले में शौच से देश को मुक्त करना था.
साल 2019 में महात्मा गांधी के जन्म की डेढ़ सौवीं सालगिरह है.
भारत को उस वक़्त शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा था, जब सरकारी आकड़ों के मुताबिक़ यह पता चला था कि भारत की 55 करोड़ आबादी (लगभग आधी आबादी) खुले में शौच करती है.
भारत में शौचालय से ज्यादा मोबाइल फोन होने की बात ने भारत की प्राथमिकता को लेकर कई सवाल खड़े किए.
कुंवर बाई यादव अपनी बहू और परिवार के साथ.
सरकार ने इसके बाद लोगों को शौचालय बनाने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाकर लोगों को प्रोत्साहित करने की शुरुआत की थी.
सरकारी अधिकारियों को दूर-दराज के इलाक़े में भेजकर लोगों को खुले में शौच नहीं करने के फ़ायदे बताए गए.
कुंवर बाई यादव को भी इस अभियान के बारे में पता चला. उन्हें शौच के लिए नज़दीक के जंगल में जाते हुए सौ साल से अधिक हो चुके हैं. लेकिन पहली बार उन्होंने अपनी ज़िंदगी में शौचालय के बारे में सुना.
उन्होंने कहा, "ज़िलाधिकारी स्थानीय स्कूल में भाषण देने के लिए आए थे. मैं भी वहां गई थी. वे वहां शौचालय बनाने की बात कर रहे थे. इससे पहले मैंने शौचालय के बारे में सुना भी नहीं था. लेकिन उन्होंने जो कहा, उसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया. "
कुंवर बाई यादव ने पढ़ाई-लिखाई नहीं की है. जन्म प्रमाण पत्र न होने से उनकी उम्र के बारे में किए गए दावे की जांच मुश्किल है. वे अपनी उम्र 105 साल बताती हैं.
बढ़ती उम्र की वजह से अब उन्हें देखने में दिक्कत होती है. इसलिए उनके लिए शौच के लिए पास के जंगल में जाना एक मुश्किल काम हो गया है. वो जंगल जाने के रास्ते पर दो बार गिरकर चोट खा चुकी है.
वे कहती हैं, "मैंने सोचा कि अगर मैं किसी तरह से शौचालय बनवा लेती हूं, तो इससे मुझे बहुत सारी परेशानियों से छुटकारा मिल जाएगा. लेकिन मेरे पास पैसा नहीं था. मेरे पास संपत्ति के नाम पर 20-25 बकरियां थीं. इसलिए मैंने उनमें से सात बकरियां 18,000 रुपये में बेच दीं."
इमेज स्रोत, Press Trust of India
कुंवर बाई यादव का सम्मान करते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी.
उन्होंने आगे कहा, "इतने पैसे से भी जब बात नहीं बनी तो दिहाड़ी करने वाली मेरी बहू ने मेरी मदद की. हम शौचालय के लिए पैसा जुटाने में कामयाब हुए."
चार मजदूरों ने मिलकर 15 दिनों में शौचालय बनाया, जिसकी लागत 22 हज़ार रुपये पड़ी.
उनके बनाए शौचालय की चर्चा होने लगी और लोग उसे देखने के लिए आने लगे. कुछ ही हफ़्तों में आस-पास के गांव के किसान इस बारे में सोचने लगे. कई लोगों ने तो अपने घरों में शौचालय बनवाना शुरू भी कर दिया.
एक साल के अंदर गांव के सभी घरों में शौचालय बन गए.
सुलभ मेडल के साथ कुंवर बाई यादव.
कोटाभरी और बरारी गांव की मुखिया वत्सला यादव ने कहा, "शुरू में गांववाले शौचालय बनवाने के लिए तैयार नहीं थे, क्योंकि उन्हें बाहर खुले में जाने की आदत थी."
वे बताती हैं, "तभी कुंवर बाई ने इस मुहिम की कमान संभाली और सभी ने बाद में उन्हें देखकर अपने-अपने यहां शौचालय बनवाया. इसके बाद पिछले साल तक बरारी गांव में भी यह अभियान पहुंच गया. पिछले साल तक बरारी के 338 घरों में से 60 में ही शौचालय थे. अब बरारी के हर घर में शौचालय बन चुका है."
वत्सला यादव के पति और बीमा एजेंट जॉन सिंह यादव कहते हैं, "शुरू में तो लोग कहते थे कि हम बहुत गरीब हैं. शौचालय कैसे बनवा सकते हैं? लेकिन कुंवर बाई ने सब की बोलती बंद कर दी है. वे यहां के सबसे गरीब लोगों में से हैं. उनके शौचालय बनवाने के बाद लोग कहने लगे कि जब वे ऐसा कर सकती हैं तो हम क्यों नहीं कर सकते."
कुंवर बाई यादव ने शौचालय बनवाने के लिए अपनी सात बकरियां बेच दी.
धमतरी के ज़िलाधिकारी सीआर प्रसन्ना कहते हैं कि शौचालय बनने का यह मतलब नहीं है कि लोग उसका इस्तेमाल भी करेंगे. लोगों की मानसिकता बदलना सबसे बड़ी चुनौती है.
वे कहती हैं, "लोगों को बाहर खुले में जाने की आदत हैं. पुरानी आदत छूटते छूटते छूटती है. मैं शौचालय बनवा सकता हूं, लेकिन लोगों की मानसिकता बदलना बहुत मुश्किल काम है."
इस समस्या से निपटने के लिए अधिकारियों ने 'ग्रीन आर्मीज' की नियुक्ति की है. इसमें मर्द और औरतों के दल सुबह और शाम खेतों में यह देखने जाते हैं कि कोई खुले में शौच करने जा रहा है कि नहीं.
ये लोग नुक्कड़ नाटक करके लोगों में सफाई के प्रति जागरूकता भी फैलाते हैं.
कुंवर बाई यादव ताउम्र कभी गांव से बाहर नहीं गईं, लेकिन जब उन्हें प्रधानमंत्री से मिलने का न्यौता मिला तो वो अचानक से कोई सेलीब्रिटी बन गईं.
उन्हें स्वच्छता दूत के नाम से सरकारी विज्ञापनों में जगह दी गई है.
वे अपने बारे में बताती हैं, "मेरी ज़िंदगी घास काट कर बकरियों को खिलाते हुए और मजदूरी करते हुए बीती है. मैं 12 बच्चों की मां बनी लेकिन उनमें से ज्यादातर बच्चे जवानी में ही मर गए. अब तक मेरे आठ बच्चे और मेरे पति गुजर चुके हैं. गरीबी में हर दिन पेट भरने के लिए खाने का इंतज़ाम करना पड़ता है."
जिलाधिकारी प्रसन्ना कहते हैं कि जो शोहरत कुंवर बाई यादव को मिल रही है, वे उसकी हक़दार हैं.
वे कहते हैं कि उन्होंने पूरे राज्य को प्रेरणा दी है. प्रधानमंत्री ने उनके सामने सिर झुकाया है. छत्तीसगढ़ के हर घर में उनके नाम की चर्चा है. वो हमारी पोस्टर गर्ल हैं.
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