उत्तर प्रदेश में मुसलमान क्या करेंगे?

  • वात्सल्य राय
  • बीबीसी संवाददाता, दिल्ली
मायावती

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तारीख़ थी 9 अक्तूबर. जगह थी लखनऊ.

बहुजन समाज पार्टी की रैली में पाटी प्रमुख और उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती अपने समर्थकों को सत्ता में वापसी का फॉर्मूला समझा रही थीं.

मायावती ने रैली में कहा, "मुस्लिम बहुल इलाक़ों में मुसलमानों और दलितों के वोट मिलने से ही बीएसपी के उम्मीदवार चुनाव जीत जाएंगे. मुसलमान उन सीटों पर अपना वोट सपा व कांग्रेस को देकर मुस्लिम समाज के वोट न बांटें. ऐसा करने से पिछले लोकसभा चुनाव की तरह बीजेपी को फ़ायदा होगा."

यह सिर्फ़ एक रैली की बात नहीं थी. बसपा का दावा है कि लखनऊ रैली में मायावती ने जो सलाह दी थी, मुसलमान वोटर उस पर अमल करने को तैयार हैं.

मायावती अब किसी टीवी चैनल या अख़बार से बात करती हैं, तो दावा करती हैं कि बहुजन समाज पार्टी इसी रास्ते सत्ता में लौटने जा रही है.

उनका कहना है, "इस बार उत्तर प्रदेश में मुसलमानों का वोट नहीं बंटेगा. मुस्लिम समुदाय समाजवादी पार्टी में जारी तोड़फोड़ देख रहा है और इस बार बहुजन समाज पार्टी को वोट देगा."

उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटरों की संख्या 19 फ़ीसद के क़रीब हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का आकलन है कि ऐसे दावों ने उन्हें प्रदेश की राजनीति के केंद्र में ला दिया है.

उनकी भूमिका अचानक अहम हो गई है. बहुजन समाज पार्टी के अलावा समाजवादी पार्टी और कांग्रेस भी मुसलमानों के वोट के भरोसे चुनावी 'व्यूह रचना' तैयार कर रही हैं.

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राजनीतिक जानकार भी मानते हैं कि उत्तर प्रदेश में अगली सरकार कौन बनाएगा, इसमें मुसलमान 'निर्णायक' भूमिका निभा सकते हैं.

इन दावों की वजह बताते हुए उर्दू अख़बार जदीद ख़बर के संपादक मासूम मुरादाबादी कहते हैं, "मुस्लिम वोट की अपनी अहमियत है. उत्तर प्रदेश की क़रीब 150 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोट 20 से 30 फ़ीसद के आस पास है. जहां-जहां मुस्लिम पॉकेट हैं, वहां जिस पार्टी को वोट मिलता है उसके उम्मीदवार जीतते हैं. विधानसभा चुनाव में उसका असर ज़्यादा होता है "

मासूम मुरादाबादी कहते हैं कि 22 फ़ीसद दलितों के बाद मुसलमान वोटरों का हिस्सा सबसे बड़ा है. उनकी संख्या 19 से 20 प्रतिशत के बीच है. यही मायावती की उम्मीद का आधार भी है. इसी वजह से उन्होंने क़रीब सौ मुसलमान उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं.

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समाजवादी पार्टी का मुस्लिम चेहरा माने जाने वाले वरिष्ठ नेता आज़म ख़ान मायावती के दावों को ख़ारिज करते हैं. उन्होंने बीबीसी से कहा, "उनकी यह ख़ुशफ़हमी बिल्कुल सही नहीं है. उसकी वजह यह है कि अब मुसलमान बेवक़ूफ़ नहीं रहा. उसके बच्चे अब कंचे नहीं, कंप्यूटर से खेलते हैं. उन्हें अपना अच्छा बुरा मालूम है."

आज़म ख़ान मायावती पर हमला करते हुए कहते हैं, "मायावती ने कब-कब क्या-क्या कहा है मुसलमानों को याद है. उन्होंने कब-कब किस-किस तरह से बीजेपी को वोट ट्रांसफ़र कराया है, यह भी याद है. "

आज़म ख़ान दावा करते हैं, "मुसलमानों को यह मालूम है कि भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने मायावती को आश्वस्त कर रखा है कि अगर कुछ सीटें कम रह जाएंगी तो भारतीय जनता पार्टी उनके साथ मिलकर सरकार बनाएगी."

समाजवादी पार्टी और मायावती दोनों ही भारतीय जनता पार्टी को रोकने को लेकर मुसलमानों से साथ आने की अपील कर रहे हैं. ऐसे में मुसलमानों का रूझान किस तरफ़ होगा, इस सवाल पर मासूम मुरादाबादी कहते हैं कि अभी मुसलमान वोटरों ने चुनाव को लेकर अपना मन नहीं बनाया है.

वे कहते हैं, "हालिया चुनावों में जो रुझान रहा है, उसके मुताबिक़ ज्यादातर वोट समाजवादी पार्टी के पाले में गए हैं. साल 2012 के विधानसभा चुनाव में ख़ुद मुलायम सिंह यादव ने माना था कि मुसलमानों ने हमें शत प्रतिशत वोट दिया है. जहां तक मायावती का सवाल है, वे मुसलमान उम्मीदवार खड़े करती हैं, लेकिन मुस्लिम वोटरों का वो भरोसा हासिल नहीं कर सकीं हैं, जो मुलायम सिंह ने पहले ही कर रखा है. मायावती ने दो बार बीजेपी के साथ मिलकर सरकारें बनाईं. लेकिन समाजवादी पार्टी में जो ख़ानाजंगी हुई है, उसकी वजह से मुसलमान अभी फ़ैसला नहीं कर पा रहा है कि वे क्या करें."

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मुसलमान वोटों पर हक़ कांग्रेस भी जता रही है. कांग्रेस भी मुसलमान वोटरों को याद दिला रही है कि केंद्र में एनडीए की सरकार बनने के बाद से लव जिहाद, दादरी, पलायन और गोरक्षा जैसे मुद्दे हावी रहे हैं. कांग्रेस के नेता मीम अफ़ज़ल कहते हैं कि किसी भी पार्टी को मुसलमानों के वोटों को अपनी जेब में नहीं मानना चाहिए.

मीम अफ़ज़ल ने बीबीसी से कहा, "किसी को भी मुसलमानों को वोट बैंक नहीं समझना चाहिए. मुसलमान किसी भी पार्टी के लिए वोट करें या न करें लेकिन यह कहना कि वे सिर्फ़ इसी पार्टी को वोट करेंगे, दूसरे को नहीं करेंगे, मेरे ख्याल में मुसलमानों ने यह हक़ किसी को नहीं दिया है."

मासूम मुरादाबादी का आकलन है कि कांग्रेस ने मुसलमान वोटरों को लुभाने के लिए ही ग़ुलाम नबी आज़ाद को उत्तर प्रदेश प्रभारी बनाया है. वे कहते हैं कि इसमें असदउद्दीन ओवैसी की पार्टी मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन भी एक वजह है. यह पार्टी जीते या नहीं, लेकिन दूसरों का खेल बिगाड़ सकती है.

वे कहते हैं, "बिहार चुनाव में उनका असर नहीं दिखा, लेकिन उत्तर प्रदेश में उनकी सभाओं में जो भीड़ जुट रही है, वह बताती है कि वो सीट जीतें या नहीं लेकिन लोगों का रूझान उनकी तरफ़ है."

दूसरी पार्टियों में मुसलमान वोटरों को अपने साथ लाने की होड़ को भारतीय जनता पार्टी भी बड़ी दिलचस्पी से देख रही है. वह सभी विरोधी दलों के दावे पर चुटकी भी ले रही है.

भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता श्रीकांत शर्मा ने बीबीसी से कहा, "ये दल मुसलमानों को जिस तरह से वोट बैंक समझते हैं, देश और उत्तर प्रदेश के मुसलमानों का अपमान है. समय बदल गया है और इनको भी अपनी सोच बदलनी होगी."

उधर, मासूम मुरादाबादी का आकलन है कि मुसलमान वोटरों में अगर उलझन की स्थिति बनी रही तो भारतीय जनता पार्टी फ़ायदे में रहेगी. मुसलमानों का वोट बंटा तो सीधा लाभ भारतीय जनता पार्टी को होगा.

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