ये थी समाजवादी कुनबे के मिलन की मजबूरी

  • शरद प्रधान
  • वरिष्ठ पत्रकार
Akhilesh Yadav Mulayam Singh Shivpal Singh

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अखिलेश यादव, मुलायम सिंह यादव और शिवपाल सिंह यादव (फ़ाइल फोटो)

उत्तर प्रदेश के सत्तारूढ़ परिवार में बनी बंटवारे की स्थिति से समाजवादी पार्टी उबरती दिख रही है.

समाजवादी पार्टी के नेताओं को यह बात समझ में आ गई है कि साथ खड़े होने के अलावा उनके पास कोई चारा नहीं. अगर वे ऐसा नहीं करते तो सवाल उनके अस्तित्व पर बन जाता. ये ज़रूर था कि अगर अखिलेश यादव अलग होते तो उनकी आगे की राजनीति पर संकट खड़ा हो जाता.

शिवपाल के अलग होने की सूरत में पार्टी पर कमान रखने वाले का वर्चस्व होता. लेकिन मुलायम का पुत्र प्रेम जाग गया और उन्होंने अखिलेश की कुर्सी बचा ली.

वैसे अखिलेश की कुर्सी बचाने से बहुत कुछ बच गया. क्योंकि सत्ता बने रहने से पार्टी के ज़्यादातर लोगों का समर्थन अखिलेश के साथ बना रहा. और इन सबके बीच चचा शिवपाल सिंह यादव ज़रूर दरकिनार हो गए.

अखिलेश यादव मुलायम सिंह यादव

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मुलायम का पुत्र प्रेम जाग गया और उन्होंने अखिलेश की कुर्सी बचा ली.

ये सारे हालात मुलायम सिंह यादव के ही पैदा किए हुए हैं. बेटे को उत्तराधिकारी बनाने को लेकर मुलायम ने मन बना लिया है. लखनऊ की सियासत में गुरुवार की सारी क़वायद यही दिखाने की कोशिश थी कि समाजवादी कुनबा एक है. समाजवादी परिवार एक है. भले ही उन्होंने चौराहे पर लड़ाई की. लेकिन अब एक साथ दिखना वक़्त की ज़रूरत है.

यादव परिवार को लगता है कि लोगों को कुछ समझ में नहीं आता है. हालांकि पार्टी के समर्थकों के लिए यह राहत की बात है. पर बाक़ी लोग ऐसा नहीं मानते.

इस पूरे घटनाक्रम के पीछे असली मक़सद अखिलेश को नेता के तौर पर उभारना था. अखिलेश मुख्यमंत्री तो बन गए थे लेकिन लीडर नहीं बन पाए थे. अब वह खुद को साबित कर चुके हैं, वो भी अपनी ताक़त दिखाकर.

अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव

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(फ़ाइल फोटो)

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अखिलेश ने ज़ाहिर कर दिया है कि हर चीज़ के लिए वही ज़िम्मेदार हैं. समाजवादी पार्टी उनकी है और पिता मुलायम का भी उन्हें आशीर्वाद हासिल है.

चाचा शिवपाल ने भी बड़ी खूबसूरती से यह ऐलान कर दिया कि समाजवादी पार्टी की दोबारा सरकार बनी तो अखिलेश ही मुख्यमंत्री बनेंगे.

समाजवादी पार्टी ने पूरे मामले को किसी तरह रफा-दफा कर दिया और इसके साथ ही अखिलेश को नेता के तौर पर स्थापित करने की क़वायद पूरी हो गई. इस पूरे घटनाक्रम का यही मक़सद था.

हालांकि समाजवादी पार्टी को जो नुक़सान होना था, वह हो चुका है.

पार्टी को चिंता इस बात की है कि कहीं मुसलमान वोट उससे छिटक न जाए. वैसे भी समाजवादी पार्टी को अपना मुस्लिम जनाधार खिसकता हुआ दिख रहा है.

मायावती पहले ही अल्पसंख्यकों से खुलकर कह चुकी हैं कि सपा एक बंटी हुई पार्टी है. इसे वोट दोगे तो भाजपा जीत जाएगी. हमको वोट दोगे तो हम पावर में आ सकते हैं.

(बीबीसी संवाददाता संदीप सोनी से बातचीत पर आधारित)

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