कर्नाटक संगीत के पुरोधा मुरलीकृष्णा नहीं रहे
- इमरान क़ुरैशी
- बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए

इमेज स्रोत, Kashif Masood
संगीतकार एम बालामुरलीकृष्णा
कर्नाटक संगीत के पुरोधा एम बालामुरलीकृष्णा का मंगलवार को चेन्नई में निधन हो गया. वो 86 साल के थे. परंपरावादी कह सकते हैं कि मुरलीकृष्णा ने परंपरा का मज़ाक़ उड़ाया लेकिन संगीत की दुनिया में एम बालाकृष्णा ने अपना रास्ता ख़ुद चुना और कर्नाटक संगीत में अहम स्थान हासिल किया.
संगीत के जानकार कहते हैं कि बालामुरलीकृष्णा को संगीत के किसी एक ख़ास शैली में सीमित करके नहीं रखा जा सकता है. वो गा सकते थे, संगीत के कई सारे यंत्रों में महारत हासिल थी, संगीत कम्पोज़ कर सकते थे.
ये उन्हीं का कमाल था कि उन्होंने दक्षिण की तमाम भाषाओं में गाने के अलावा हिंदी, बांग्ला, संस्कृत और पंजाबी तक में गाने गाए.
कर्नाटक संगीतकार टीएम कृष्णा कहते हैं, ''मुरलीकृष्णा ने अपना रास्ता ख़ुद बनाया. कर्नाटक संगीत जो आप उनसे सुनते हैं वो उन सबसे अलग है जो आप पिछले 100 साल से सुनते आ रहे हैं.''
आंध्रप्रदेश में जन्मे बाला मुरलीकृष्णा की प्रतिभा को सबसे पहले उनके संगीतकार पिता ने पहचाना जब वो केवल छह साल के थे.
केवल आठ साल की उम्र में उन्होंने अपना पहला कन्सर्ट पेश किया था. तभी लोगों को लग गया था कि कर्नाटक संगीत की दुनिया में एक नए सितारे का जन्म हुआ है.
कर्नाटक संगीतकार और गुरु आरके पद्मनाभा कहते हैं, ''16 साल की उम्र में उन्होंने 72 कम्पोज़िशन कर लिया था. हालांकि वो कर्नाटक संगीतकार थे लेकिन उन्होंने फ़िल्मों में संगीत दिया, बंग्ला संगीत और जैज़ में भी हाथ आज़माया.''
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परफ़ॉर्मिंग आर्ट्स की अग्रणी मैगज़ीन मानी जाने वाली श्रुति के एडिटर-इन-चीफ़ वी रामनारायण कहते हैं, ''संगीत के राग को उन्होंने जिस तरह से पेश किया वो बिल्कुल अकेला और अनूठा है. एक तरह से उन्होंने परंपराओं का मज़ाक उड़ाया क्योंकि रागों को लेकर उनका अपना अलग अंदाज़ था.''
मुरलीकृष्णा ने कभी अपने शोध के बारे में बात नहीं की. लेकिन टी एम कृष्ण का मानना है ,'''उन्होंने संगीत की इस विधा के इतिहास से आगे भी कुछ जानने की कोशिश की. ये बहुत अनोखी बात है. चाहे वो लोक संगीत हो, ग़ज़ल या फिर किसी भी तरह का संगीत हो, उन्हें सभी में कुछ न कुछ सुंदर दिख जाता था.''
कर्नाटक संगीत से जुड़े सभी पुरोधा एक बात पर ज़रूर सहमत होंगे कि मरलीकृष्णा के शिष्य उन्हें बहुत चाहते थे.
वी रामनारायण कहते हैं कि 80 साल के मुरलीकृष्णा बड़ी खूबसूरती से युवाओं से जुड़ जाते थे.
दुनियाभर में 25 हज़ार कन्सर्ट करने वाले मुरलीकृष्णा को पद्म विभूषण से नवाज़ा गया था.
आरके पद्मनाभा कहते हैं मुरलीकृष्णा का जाना संगीत की दुनिया का इतना बड़ा नुक़सान है कि उसकी भरपाई करना मुश्किल है.