भारत कैश-लेस इकॉनोमी के लिए तैयार?

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क्या हैं कैशलेस इकोनॉमी की चुनौतियां?

केंद्र सरकार के बड़े नोटो से जुड़ी नोटबंदी के फ़ैसले के बाद कैश-लेस इकॉनॉमी के लक्ष्य को पाने की संभावनाएं तलाशी जा रही है.

क्या भारत कैश-लेस इकॉनोमी के लिए तैयार है?

इससे जुड़ी संभावनाओं के बारे में बता रहे हैं वरिष्ठ आर्थिक विश्लेषक आलोक पुराणिक.

कैश-लेस इकॉनॉमी यानि नक़दहीन अर्थव्यवस्था तो नहीं लेकिन न्यूनतम नक़द वाली अर्थव्यवस्था संभव है और धीरे-धीरे हम उसी की ओर जा रहे हैं लेकिन इसके तीन पहलुओं पर हमें काम करने की अभी ज़रूरत है.

पहला - इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम करने की ज़रूरत है. इंटनेट की सुविधा के बिना कैश-लेस इकॉनॉमी की बात नहीं की जा सकती है. अभी तो हम कॉल ड्रॉप जैसी समस्याओं से ही जूझ रहे हैं.

दूसरा- वजह बतानी होगी कि कैश इकॉनॉमी से आख़िर हम कैश-लेस इकॉनॉमी की ओर क्यों जाए. इसकी वजहों में यह बताया जा सकता है कि कैश इकॉनॉमी में कोई रिकॉर्ड नहीं होता है. लोग टैक्स की चोरी करते हैं. वहीं कैशलेस इकॉनॉमी का फ़ायदा यह होगा कि लेनदेन का पूरा रिकॉर्ड मौजूद रहेगा.

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अगर इसमें यह जोड़ दिया जाए कि ऑनलाइन लेन-देन से दो प्रतिशत की बचत होगी तो हर इंसान बचत की वजह से ऑनलाइन लेन-देन करना चाहेगा.

लेकिन वन टू वन लेन-देन करने वाले दुकानदारों की ओर से विरोध भी होगा इसका. इसलिए उन्हें कैश-लेस इकॉनॉमी के लिए तैयार करना होगा. इसमें एक-दो साल का समय लगेगा.

तीसरा- भारत में सौ करोड़ लोग मोबाइल इस्तेमाल कर रहे हैं. इसका मतलब है कि इन सौ करोड़ लोगों में मोबाइल इस्तेमाल करने की समझ तो है.

इसलिए अगर कैश-लेस इकॉनॉमी के अंदर चीजें इतनी सरल हो जाए जैसे मोबाइल इस्तेमाल करना तो ज्यादा दिक्कत नहीं आने वाली है.

देखा जा सकता है कि इस फ़ैसले के बाद कई चायवाले और सब्जीवाले भी पेटीएम का इस्तेमाल करने लगे हैं.

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इस देश में अभी भी 65 करोड़ के पास डेबिट कार्ड है और ढाई करोड़ के पास क्रेडिट कार्ड है जिसका पूरा इस्तेमाल नहीं होता है.

एक अविश्वास और डर है इनके इस्तेमाल को लेकर. इसलिए इसे लेकर पूरी ट्रेनिंग की ज़रूरत है.

(वरिष्ठ आर्थिक विश्लेषक आलोक पुराणिक से बीबीसी संवाददाता संदीप सोनी की बातचीत पर आधारित)

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