हार्ट ऑफ़ एशिया: नज़रें पाकिस्तान के दांव पर

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पाकिस्तान और भारत के बीच मौजूदा तनाव के बीच अमृतसर में हार्ट ऑफ़ एशिया की दो दिनों की बैठक शनिवार को शुरू हो रही है.
बैठक में स्टेट प्रायोजित चरमपंथ पर चर्चा होने की उम्मीद है. इसमें 14 सदस्य देशों के प्रतिनिधि हिस्सा ले रहे हैं.
अफ़ग़ानिस्तान और उसके पड़ोसी देशों के बीच राजनीतिक, सामरिक और आर्थिक सहयोग बढ़ाने के लिए हर्ट ऑफ़ एशिया की शुरुआत 2011 में हुई.

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ताज होटल के बाहर अर्द्धसैनिक बलों के जवान गश्त करते हुए
चीन, ईरान, भारत और पाकिस्तान सहित 14 देश इसके सदस्य हैं. बाद में इसके उद्देश्य का दायरा बढ़ा दिया गया. अब इसमें चरमपंथ, ड्रग्स कारोबार, गरीबी और कट्टरपंथ पर अंकुश लगाने को भी शामिल किया गया.
14 सदस्यों के अलावा अमरीका सहित दुनिया के 20 से ज्यादा देश इस प्रक्रिया में सहयोगी भूमिका निभाते रहे हैं.
बैठक के पहले दिन क्या होगा.
बैठक के पहले दिन संबंधित क्षेत्रों में चरमपंथी समूहों से बढ़ते ख़तरे पर बातचीत होगी, इसके अलावा अफ़ग़ानिस्तान में शांति और स्थायित्व के मुद्दे पर भी बात होगी.
रविवार को मुख्य बैठक होगी. इसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ़ गनी शामिल होंगे.

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दोनों देश हाल ही में पाकिस्तान को क्षेत्रीय शांति और स्थायित्व को सबसे बड़ा ख़तरा बता चुके हैं.
वैसे पाकिस्तान की ओर से इस बैठक में पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय के सलाहकार सरताज़ अज़ीज़ शामिल होंगे. हालांकि इस बैठक में पाकिस्तान के भाग लेने का विरोध करते पोस्टर भी भारत में नज़र आए.
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के अस्वस्थ होने की वजह से भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व वित्त मंत्री अरुण जेटली करेंगे.
भारत के पूर्व राजनयिक विवेक काटजू से यही सवाल बीबीसी हिंदी ने पूछा.
बैठक में भले ही अफ़ग़ानिस्तान का मुद्दा अहम होगा, लेकिन सबकी नज़रें भारत और पाकिस्तान के प्रतिनिधियों पर ही टिकी होंगी.
इस पहलू पर क्या कहते हैं विशेषज्ञ:
विवेक काटजू- पूर्व राजनयिक
इस आयोजन का मकसद क्षेत्रीय देशों के बीच संतुलन बनाना है.
अफ़ग़ानिस्तान में शांति की राह में पाकिस्तान की ओर से ख़लल है. तालिबान को पाकिस्तान समर्थन देता है.
जब तक ये समर्थन बंद नहीं होता है, तब तक दुनिया कुछ भी कर ले, अफ़ग़ानिस्तान में शांति स्थापित नहीं हो सकती.

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2001 के बाद से ही तालिबान को पाकिस्तान में हर तरह की मदद मिलती रही है. अब चाहे वो ट्रेनिंग हो, ठिकाना मिलना हो या फिर कोई अन्य मदद.
अफ़ग़ानिस्तान चरमपंथ के ख़िलाफ़ फ्रेमवर्क प्रस्तुत करने वाला है. इससे पाकिस्तान को साफ़ संदेश मिलेगा कि वह अपने रवैये में सुधार लाए.
उम्मीद पर दुनिया कायम है, क्या पता है पाकिस्तान संभल जाए. क्योंकि ये पाकिस्तान के लिए भी ठीक नहीं है.
सरताज़ अज़ीज़ ने पहले भी कहा है कि वे चाहते हैं कि भारत से पाकिस्तान का रिश्ता सामान्य हो. लेकिन जब तक चरमपंथ पर अंकुश नहीं लगाया जाता है, तब तक ऐसा नहीं होगा.
भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त
पिछले साल मोदी ने पहल की थी, लेकिन इसके बाद पठानकोट में हमला हुआ.
आसिफ़ फ़ारूक़ी, बीबीसी संवाददाता, इस्लामाबाद
भारत और पाकिस्तान के बीच आपसी संबंध काफ़ी बिगड़े हुए हैं.
हार्ट ऑफ़ एशिया की बैठक द्विपक्षीय बैठक नहीं है. लेकिन पाकिस्तान का मानना है कि इस बैठक में शामिल होना चाहिए क्योंकि इन सबका चीज़ों पर असर होता है.
इस बैठक में कई उन मुद्दों पर बात होगी, जिसमें पाकिस्तान की दिलचस्पी है. इस बैठक में पाकिस्तान की बात कितनी सुनी जाएगी, ये दूसरी बात है, लेकिन पाकिस्तान इसमें शामिल होना चाहता है.

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पाकिस्तान को उम्मीद है कि इस बैठक में शामिल होने से भारत के साथ दोतरफा बातचीत होने की संभावना बढ़े.
हालांकि भारत की ओर से कहा गया है कि किसी तरह की द्विपक्षीय बातचीत नहीं होगी.

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अमृतसर में हार्ट ऑफ एशिया कांफ्रेस का कार्यक्रम स्थल
लेकिन पाकिस्तान अमरीका सहित दुनिया को ये संदेश देना चाहेगा कि वह हर मुद्दे पर भारत के साथ बात करने को तैयार है.
इसके अलावा अफ़ग़ानिस्तान के मुद्दे पर पाकिस्तान दुनिया के दूसरे देशों को वॉकओवर नहीं देना चाहता है.
अफ़गानिस्तान के मुद्दे पर पाकिस्तान सरकार की अपनी दिलचस्पी है, पाकिस्तानी सेना की भी दिलचस्पी है. तो वे नहीं चाहते कि अफ़ग़ानिस्तान को लेकर कोई फ़ैसला उनकी गैरमौजूदगी में हो.
(विवेक काटजू और आसिफ़ फ़ारूक़ी से वात्सल्य राय की बातचीत पर आधारित)
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