ये क्यों चाहते हैं, कोर्ट में राष्ट्रगान बजवाना?
- वात्सल्य राय
- बीबीसी संवाददाता, दिल्ली

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सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाने के सुप्रीम कोर्ट के हुक्म के ठीक एक दिन बाद उच्चतम न्यायालय में प्रार्थना-पत्र दाख़िल किया गया कि अदालतों में भी कार्यवाही शुरू होने के पहले राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य किया जाना चाहिए.
ये प्रार्थना पत्र भारतीय जनता पार्टी की दिल्ली इकाई के प्रवक्ता और सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय की ओर से दाख़िल किया गया था. हालांकि अदालत ने फ़िलहाल इसकी सुनवाई से मना कर दिया है.
लेकिन उपाध्याय अदालतों में भी राष्ट्रगान क्यों बजवाना चाहते हैं?
उपाध्याय ने बीबीसी से कहा, " मैं सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का स्वागत करता हूं. सुप्रीम कोर्ट का वकील होने के नाते मैं सुझाव देता हूं कि इसे सभी अदालतों के लिए अनिवार्य कर दिया जाए."
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उपाध्याय का कहना है कि राष्ट्रगान देश में भाईचारा,एकता और अखंडता को मजबूत करता है. राष्ट्रगान अनुशासन भी सिखाता है.
वे कहते हैं, "जब कोर्ट में राष्ट्रगान बजाना तय हो जाएगा तो वहां ज्यादा अनुशासन से काम होगा."
इस फ़ैसले के साथ जुड़ी व्यावहारिक दिक्क़तों के सवाल पर उपाध्याय कहते हैं कि उन्हें इसमें कोई दिक्कत नज़र नहीं आती.
वो कहते हैं, "52 सैकेंड का पूरा राष्ट्रगान होता है. छोटा सा उपकरण आप रख दीजिए. स्पीकर अलग-अलग कोर्ट में रख दीजिए. राष्ट्रगान एक साथ बजेगा. सब जज खड़े हो जाएंगे. मुवक्किल और वकील भी खड़े हो जाएंगे. उसके बाद कोर्ट की कार्यवाही शुरु हो जाएगी. इसमें कोई दिक्कत नहीं है."
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सिनेमाहालों में राष्ट्रगान को अनिवार्य बनाए जाने को लेकर सोशल मीडिया पर कई सवाल उठाए जा रहे हैं.
इसे लेकर उपाध्याय कहते हैं, "एक कहावत है कि कोई व्यक्ति तब अच्छा प्रदर्शन करता है जबकि उसकी निगरानी होती है. वे कहते हैं शुरू में निश्चित तौर पर थोड़ी बहुत तकलीफ़ होगी लेकिन एक बार अनुशासन स्थापित हो जाएगा तो आगे और भी क्षेत्रों में ये व्यवस्था काम करेगी."
उपाध्याय ने अपनी मांग को लेकर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में एक प्रार्थनापत्र दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल की सलाह के बाद उन्हें विधिवत याचिका (पिटिशन) दाखिल करने को कहा है.
उपाध्याय कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में रिट पिटिशन आर्टिकल 32 के तहत दाख़िल की जाती है और वो मंगलवार या फिर बुधवार को याचिका दाख़िल करेंगे.
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