नज़रिया: 'पहले 5,000 और 10,000 के नोट लाने थे'
- गुरचरण दास
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नोटबंदी की वजह से आम जनता को काफ़ी दिक्क़तों का सामना करना पड़ा है.
नक़दी की क़िल्लत की वजह से अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में आ सकती है, यह सबसे बड़ी चिंता की बात है. कई छोटी कंपनियां काम नहीं कर पाएंगी और पूरी तरह बंद ही हो जाएंगी.
'नोटबंदी से फ़ायदा कम, नुक़सान ज़्यादा'
भारत में नोटबंदी के बाद से आम लोगों को काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
नक़दी संकट से आर्थिक गतिविधियां कम हो जाएंगी, कामकाज कम हो जाएगा. इससे नौकरियां जाएंगी, नौकरी के नए अवसर नहीं बनेंगे.
आर्थिक विकास की दर एक फ़ीसद गिरने से तक़रीबन 15 लाख नौकरियां चली जाएंगी. एक नौकरी अप्रत्यक्ष रूप से मोटे तौर पर तीन नौकरियों के मौके बनाती है. इस तरह विकास दर में एक फ़ीसद की गिरावट से 60 लाख नौकरियां ख़त्म होने के आसार बनते हैं.
नोटबंदी की सकारात्मक बात यह है कि इससे देश में डिजिटल क्रांति होगी. डिजिटल कामकाज पहले ही शुरू हो चुका है. पर इस क़दम के बाद एक तरह की क्रांति होगी.
अनौपचारिक अर्थव्यवस्था अब औपचारिक बन जाएगी. इससे कर वसूली बढ़ेगी, सरकार को कर राजस्व में ज़्यादा पैसे मिलेंगे.
लघु उद्योग फ़िलहाल मोटे तौर पर कर नहीं चुकाते. अब उन्हें कर चुकाना होगा.
कुल मिलाकर देखें तो जितना फ़ायदा होगा, उससे ज़्यादा नुक़सान होगा. कम से कम अभी तो यही कहा जा सकता है.
मैं प्रधानमंत्री होता तो नोटबंदी नहीं करता. यदि करना पड़ता तो उसके दूसरे तरीके थे.
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मैं पहले 5,000 रुपए और 10,000 रुपए के नोट बाज़ार में उतारता. पूरा काला धन इन नोटों में तब्दील हो जाता. इसके छह महीने-साल भर बाद इन बड़े नोटों को रद्द कर देता.
सरकार को 500 रुपए के नोट को तो छूना ही नहीं चाहिए था, क्योंकि यह तो आम जनता का नोट है.
यदि इन नोटों को बंद करने की मजबूरी थी तो बेहतर योजना बनानी चाहिए थी. सरकार को स्विटज़रलैंट जैसे देशों से क़रार कर उनसे नोट छपवाना चाहिए था. इससे पैसे की कमी नहीं होती. ये देश पूरी गोपनीयता बरतते हैं.
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काले धन को ख़त्म करना और कम नक़द की अर्थव्यवस्था बनाने की सोच अच्छी बात है. बिल्कुल कैशलेस अर्थव्यवस्था न हो सकती है और न ही होनी चाहिए. नक़द कम ज़रूर कर सकते हैं.
पहले सरकार कहती थी कि काले धन को ख़त्म करना है, अब कह रही है कि कैशलेस अर्थव्यवस्था क़ायम करनी है. इस बदलाव के पीछे की सोच यह है कि सरकार अब शायद मानने लगी है कि इस क़दम से काला धन बहुत ज़्यादा नहीं निकल सकेगा.
मेरा मानना है कि नौकरियां कम होंगी और फिर सरकार को अपने फ़ैसले पर पछताना होगा.
(बीबीसी संवाददाता नितिन श्रीवास्तव से हुई बातचीत पर आधारित)