लापता नजीब: क्या हुआ था जेएनयू में उस रात!

  • सलमान रावी
  • बीबीसी संवाददाता, नई दिल्ली
नजीब अहमद

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जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र नजीब अहमद के घरवालों के लिए पिछले दो महीने काफ़ी तनाव भरे रहे हैं.

दो महीनों से नजीब की माँ और उनके छोटे भाई मुजीब अहमद, उत्तर प्रदेश के बदायूं से दिल्ली आकर डेरा डाले हुए हैं.

वो हर रोज़ जेएनयू और वंसत विहार पुलिस स्टेशन के चक्कर लगा रहे हैं. इस आस में कि शायद नजीब की कोई ख़बर मिल जाए. मगर अबतक निराश ही हाथ लगी है.

किसी को उम्मीद नहीं थी कि यह मामला इतना लंबा खिंचता चला जाएगा.

14 अक्टूबर की रात जेएनयू होस्टल में क्या कुछ हुआ उसपर आज तक रहस्य बना हुआ है. घटना को लेकर प्राक्टर की समितियों की अलग-अलग रिपोर्टिंग हैं.

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पुलिस जांच में भी कुछ ख़ास सामने नहीं आ पाया है. पहले पुलिस ने दावा किया था कि उस ऑटो रिक्शा वाले की शिनाख़्त हो गयी है जिसने कथित रूप से नजीब अहमद को 14 अक्टूबर की रात दिल्ली के ही जामिया के इलाक़े तक पहुंचाया था.

मगर जांच में आगे क्या कुछ सामने आया, उस पर से पर्दा नहीं उठ पाया है.

नजीब के भाई मुजीब अहमद को जेएनयू प्रशासन से काफ़ी शिकायतें हैं.

उनका कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन के लोग उनके परिवार से मिलना नहीं चाहते हैं.

बीबीसी से बात करते हुए उनका कहना था, "न कुलपति और ना ही विश्वविद्यालय का दूसरा कोई अधिकारी हमारे परिवार से मिलना चाहता है. एक दो बार हम ज़बरदस्ती उनके कार्यालय में घुसे भी. मगर उन्होंने हमारे साथ ठीक सुलूक़ नहीं किया."

मुजीब का कहना है कि एक तो विश्वविद्यालय का असहयोग और ऊपर से उन्हें धमकियां भी मिल रहीं हैं. जेएनयू के छात्र संघ के अध्यक्ष मोहित पांडेय विश्वविद्यालय के प्रशासन पर भेदभाव करने का आरोप लगाते हैं.

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वो आरोप लगाते हैं कि विश्वविद्यालय प्रशासन एक राजनीतिक विचारधारा से प्रभावित है जिसकी वजह से वो दूसरी राजनीतिक विचारधारा के लोगों को बर्दाश्त नहीं कर रहे हैं.

मोहित कहते हैं कि विश्वविद्यालय प्रशासन एक प्राक्टर की रिपोर्ट को मान रहा है जिसमें कहा गया है कि नजीब के साथ कोई हिंसा नहीं हुई. जबकि दूसरे प्रोक्टर की रिपोर्ट में हमले की बात कही गई है जिसे वो विश्वविद्यालय मानने को तैयार ही नहीं है.

वहीं विश्वविद्यालय के रेक्टर चिंतामणि महापात्रा पक्षपात करने के आरोपों को सिरे से ख़ारिज करते हुए कहते हैं कि कुछ लोग छात्र राजनीति के नाम पर माहौल ख़राब करने की कोशिश कर रहे हैं. उनका कहना है कि घटना के दिन से ही प्रशासन ने मामले में तत्परता दिखाई है.

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वो कहते हैं : "हमने पुलिस को सूचित किया मगर हमपर कुछ नहीं करने के आरोप लगाए जा रहे हैं. हमने विश्वविद्यालय के सुरक्षा गार्डों से पूरे जंगल को छनवाया मगर हमपर कुछ नहीं करने का आरोप है. हमारे इतना कुछ करने के बाद भी अगर कुछ नहीं करने का प्रचार किया जाता है तो यह सिर्फ़ झूठ के सिवा और कुछ नहीं है."

जेएनयू में मौजूदा हालात को लेकर संस्थान के पूर्व छात्र भी चिंतित हैं और चाहते हैं कि विश्वविद्यालय की पुरानी रौनक़ वापस लौटे.

जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष संदीप महापात्रा कहते हैं सभी राजनीतिक विचारधारा के लोगों को सोचना चाहिए कि वो जेएनयू की गरिमा को बनाए रखना चाहते हैं या इसे बर्बाद करना चाह रहे हैं.

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नजीब के लापता होने का मामला अब दिल्ली उच्च न्यायालय तक पहुँच चुका है जहां इसकी सुनवाई चल रही है.

दिल्ली पुलिस को भी मामले में समय समय पर की गयी जांच का ब्यौरा अदालत को देते रहना है. नजीब के परिवार का कहना है कि अब उनकी आस सिर्फ़ अदालत पर टिकी है.

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