परोल और रिहाई के बीच- बैंड बाजा बारात
- आभा शर्मा
- बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए
जोधपुर सेंट्रल जेल के क़ैदियों का बैंड शहर में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है.
घोड़ी पर सवार दूल्हा, राजस्थानी साफों और सूट में सजे-धजे बाराती और एक अनोखा बैंड. देखने में किसी दूसरे बैंड जैसा, फिर भी बहुत अलग.
क्योंकि सुरीले फन का जलवा दिखाने वाले इसके साजिन्दे सज़ायाफ़्ता क़ैदी हैं.
जोधपुर सेंट्रल जेल का यह बैंड शहर में काफ़ी लोकप्रिय है और शादियों के मौक़े पर बहुत से लोग इसे बुक करते हैं. रातानाड़ा, जोधपुर के लक्ष्मीनारायण पंवार ने हाल ही में अपने बेटे की शादी के लिए इसे बुक किया.
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वह कहते हैं, "इसका शाही अंदाज़ है. साज़ और धुनें बिल्कुल अलग और हटकर हैं. दूसरे बैंड के मुक़ाबले काफ़ी सस्ता भी है और सब इसे अफ़ोर्ड कर सकते हैं. उनके बहुत से मेहमानों ने बैंड की बहुत तारीफ़ की और बुकिंग के लिए पूछताछ भी की."
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उन चमकते सितारों की कहानी जिन्हें दुनिया अभी और देखना और सुनना चाहती थी.
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अपने एक रिश्तेदार के यहाँ उन्होंने इस बैंड के सदस्यों का कार्यक्रम देखा था. उन्हें बहुत भाया, पर ख़ुद बुक करते वक़्त डर भी लगा कि कहीं कोई बंदी ग़ायब हो गया तो? पर जेल प्रशासन ने उन्हें भरोसा दिलाया कि ऐसा कुछ नहीं होगा.
वैसे बैंड के साथ एक सुरक्षाकर्मी सादी वर्दी में साथ जाता है. जेल बैंड में 20 बंदी हैं और तीन घंटे की बुकिंग 3,400 रुपये में होती है, जबकि कमर्शियल बैंड अमूमन 11,000 रुपए से कम में नहीं मिलते. बंदियों को रिहाई पर इसकी 50 प्रतिशत राशि दी जाती है.
जोधपुर जेल अधीक्षक विक्रम सिंह कहते हैं, "यह परोल और रिहाई के बीच का समय है, जिसमें बंदी पर विश्वास किया जाता है कि जेल परिसर से बाहर काम करने का मौक़ा मिलने पर भी वह भागेगा नहीं, अनुशासन में रहेगा. जेल बैंड लोकप्रिय है क्योंकि ब्रास बैंड पुराना है और अमूमन फ़ौज के अलावा चलन में नहीं है."
नब्बे के दशक में जोधपुर सेंट्रल जेल के पूर्व अधीक्षक रहे श्यामसुन्दर बिस्सा ने बताया कि यह परंपरा 40 साल से भी पुरानी है. पर पहले यहाँ सिर्फ़ मशक बैंड था यानी बैग पाइपर बैंड. उसे अमूमन बैठकर ही सुनने की परंपरा थी क्योंकि उसमें धूम-धड़ाका नहीं होता.
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उन्होंने मेहरानगढ़ मशक बैंड से दूसरे साज़ इसमें शामिल किए और 1990 में एक ब्रास बैंड भी बनाया. उस समय साढ़े चार लाख रुपए के साज़ मेरठ से खरीदे गए, जहाँ बड़े स्तर पर बैंड का सामान बनता है.
बिस्सा कहते हैं "यह स्किल डेवेलपमेंट और रिहेबिलिटेशन का प्रयास है. इस हुनर की बदौलत जेल से रिहा होते ही बंदियों को काम मिल सकता है. साथ ही सब बंदियों को जेल की नीरसता से भी थोड़ी राहत मिलती है."
जयपुर में भी जेल बैंड की परंपरा रही है, पर इन दिनों नए बंदी सीख ही रहे हैं, इसलिए कोई बुकिंग नहीं ली जा रही.
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