'नोटबंदी से ख़ुदकुशी करने की सोच ली थी'
- नितिन श्रीवास्तव
- बीबीसी संवाददाता, सूरत से
आठ नवंबर, 2016 के बाद से सूरत में हीरा उद्योग का काम ठप पड़ा हुआ है.
नोटबंदी लागू होने के बाद अजय भाई का मन घर में नहीं लगता.
हीरे को तराशने और पॉलिश करने वाली फैक्ट्रियों में 15 सालों से काम कर रहे अजय भाई एक महीने से खाली हैं क्योंकि रोज़ के 600 रुपए की कमाई ठप पड़ी है.
36 वर्षीय अजय भाई की दिहाड़ी की नौकरी पर मां समेत छह लोगों का परिवार चलता था लेकिन अभी किल्लत के दिन हैं.

बीते एक महीने से अजय भाई को कोई काम नहीं मिला है, आर्थिक तंगी झेल रहा है परिवार.
उन्होंने कहा, "इतने बुरे दिन हैं कि मैंने खुदखुशी करने तक की सोच ली थी."
भारत से सालाना 16 अरब डॉलर का हीरा निर्यात होता है जिसमें 80% से ज़्यादा का शेयर गुजरात के शहर सूरत का है.
सूरत डायमंड ट्रेडर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष दिनेश नावरिया के मुताबिक़, "सूरत ज़िले में हीरा तराशने और पॉलिश करने की करीब 4,000 फैक्ट्रियां हैं और इसमें काम करने वाले दो लाख से भी ज़्यादा लोग हैं."

लेकिन नोटबंदी ने सूरत के हीरा व्यापार को भी प्रभावित किया है और अजय भाई जैसे अपने को 'इसी का मारा हुआ' बताते हैं.
उनहोंने बताया, "मैं नोटबंदी जैसी नीतियों में मोदी जी का समर्थक हूँ. लेकिन जिस बुरी तरीक़े से इसे लागू किया गया उससे बहुत धक्का पहुंचा. दिवाली के बाद से काम नहीं मिला और बैंक लाइन में लग के कुल जमा-पूँजी से पैसे निकालने पड़ते हैं घर चलाने के लिए."

अजय की ही तरह, 46 वर्षीय आश्विन पटेल भी अपने चार लोगों के परिवार के पालन-पोषण का एकमात्र ज़रिया रहे हैं.
हीरा तराशने का हुनर रखने वाले आश्विन ने बताया, "बच्चों की फीस को लेकर चिंता हो रही है क्योंकि एक महीने से खाली हूँ. जिस फैक्ट्री में काम करता था उसने बिज़नेस आधा कर दिया है."
सूरत शहर में तीन बड़े हीरा बाज़ार हैं जहाँ पर आस-पड़ोस के व्यापारी बिना तराशे गए हीरे के ग्राहक ढूंढ़ने आते हैं.
शहर के बीचोबीच सरदार पटेल चौक के पास ही मीरा बाजार है जहाँ सैंकड़ों की तादाद में व्यापारी और बिचौलिए बैठे हुए मिल जाते हैं.
सभी को शिकायत 'मंदे पड़े धंधे' से है क्योंकि यहाँ ज़्यादातर क़ारोबार नकदी में होता रहा है और 500 और 1000 के नोटों की बंदी और बैंकों से निर्धारित राशि निकालने के सरकारी फ़ैसले से लोग थोड़े नाखुश हैं.

डायमंड फैक्ट्रियों में काम करने वाले मज़दूरों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था रत्न कलाकार विकास संघ के अध्यक्ष जयसुख गजेरा ने बीबीसी को बताया कि नोटबंदी से 'मालिकों को दिक्कत नहीं बल्कि मज़दूर लाचार हुए हैं'.
उन्होंने कहा, "हमने ज़िला प्रशासन से कहा कि हम नोटबंदी के चलते हीरा व्यापार से जुड़े बेरोज़गार हुए मज़दूरों का नाम देने को तैयार हैं. उन्हें सरकारी मुआवज़ा मिलना चाहिए".
हालांकि सूरत डायमंड ट्रेडर्स एसोसिएशन के प्रमुख दिनेश नावरिया के अनुसार, "नोटबंदी से थोड़ी दिक्कत ज़रूर हुई है. लेकिन साथ ही हीरे के व्यापार को नए सिरे से बेहतर भी किया जा रहा है इसके बाद. शुरूआती दिक्कतों के बाद अब चीज़ें पटरी पर लौटनी शुरू हो गई हैं."
लेकिन अजय भाई जैसों के लिए 'नोटबंदी से पहले वाले दिन ही अच्छे थे.'
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