'दलित से ईसाई बन गए लेकिन भेदभाव जारी'

  • रविंदर सिंह रॉबिन
  • अमृतसर से बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए
दलित ईसाई

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दलित और मुस्लिम ईसाइयों के साथ होने वाले भेदभाव और उनके अधिकारों को लेकर कई बार विरोध प्रदर्शन भी हो चुके हैं. (फ़ाइल फ़ोटो)

हाल ही में भारत के एक कैथोलिक चर्च ने आधिकारिक तौर पर पहली बार यह बात मानी है कि दलित ईसाइयों को छुआछूत और भेदभाव का सामना करना पड़ता है.

नीतिगत दस्तावेज़ों के जरिए ये जानकारी सामने आई, जिसमें कहा गया है कि उच्च स्तर पर नेतृत्व में उनकी (दलित ईसाइयों की) सहभागिता न के बराबर है.

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भेदभाव के साक्षी दलित परिवार

इस बारे में अमृतसर से सटे मजीठा कस्बे में रहने वाले सुच्चा मसीह कहते हैं, "मैं क़रीब 35 साल पहले ईसाई मिशन में शामिल हुआ था. पहले हम सिख थे और हमारा दलित पृष्ठभूमि से वास्ता रहा. लेकिन धर्म परिवर्तन के बाद हमें कोई मदद नहीं मिली. हम लोग आज तक अपने घर पर ही प्रभु जी का नाम लेते हैं. मिशन ने हमें प्रार्थना हॉल देने का वादा किया था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ."

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सुच्चा मसीह क़रीब 35 साल पहले क्रिश्चियन मिशन में शामिल हुए.

इस कस्बे के पास ही पंडोरी गांव में रहने वाले पास्टर यूसुफ़ मसीह बताते हैं कि उनके और बाकी मिशनरी लोगों के बारे में ईसाई मिशन वालों ने अब तक पूछा भी नहीं है. वे प्रभु ईशु पर विश्वास करते हैं और उनकी ही भक्ति में लगे हुए हैं.

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पास्टर यूसुफ़ मसीह

हालांकि पास्टर यूसुफ़ मसीह मांग करते हैं कि अपना धर्म छोड़कर ईसाई मिशन में शामिल हुए सभी लोगों को मदद मिलनी चाहिए.

इसी गांव में रहने वालीं बलवीर कौर ख़ुद को तक़रीबन 40 साल से ईसाई मिशन से जुड़ा हुआ बताती हैं. उनका दावा है कि वे अपने गांव के ही लगभग 15 दलित परिवारों को अपने साथ जोड़ चुकी हैं.

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बलवीर कौर लगभग 15 दलित परिवारों को क्रिश्चियन मिशन से जोड़ चुकी हैं.

बलवीर कहती हैं, "हम लोगों ने भी मिशन के लिए बहुत काम किया है. लेकिन हमें कोई सहूलियत नहीं दी गई. आलम यह है कि मिशन में जुड़े ज्यादातर लोगों के लिए अब अपने परिवारों का पालन पोषण भी मुश्किल हो गया है."

उनके साथ ही इस मिशन में जुड़े धरमिंदर भट्टी ईसाई मिशन के इस रवैये से ख़ासे नाराज़ दिखे. उन्होंने कहा कि दलितों के साथ भेदभाव तो होता ही है. साथ ही जिन दलित परिवार के लोगों को बिशप बनाया गया, उन्होंने भी कभी उनका हाल नहीं पूछा.

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धरमिंदर भट्टी क्रिश्चियन मिशन के रवैये से ख़ासे नाराज़ दिखे.

धरमिंदर कहते हैं, "मेरे पिता 45 साल से इस मिशन से जुड़े हैं. लेकिन मिशन की और से अभी तक कोई भी ओहदा उन्हें नहीं दिया गया. यह सच है कि मिशन के लोगों ने हमेशा ही दलित परिवारों को पीछे रखा. लेकिन जो दलित परिवार भी बिशप बने, उन्होंने भी कभी पीछे छूट गए परिवारों के बारे में नहीं सोचा."

धरमिंदर दावा करते हैं कि जब उनका समुदाय सरकार के पास किसी किस्म की मदद के लिए जाता है, तो उन्हें बोला जाता है कि उनकी जाति बहुत बड़ी है और उन्हें किसी भी तरह की सरकारी मदद नहीं दी जा सकती.

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