नज़रिया -'30 की उम्र तक बेटा न हो तो पति कर सकता है दूसरी शादी'
- वंदना शाह
- डायवोर्स लॉयर, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए

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भारत परंपरागत तौर पर एक पुरुष प्रधान समाज है और ये बात क़ानून के बनाने और उसे लागू करने के दौरान भी ज़ाहिर होती है.
आइए कुछ ऐसे क़ानूनों पर नज़र डालते हैं-
ट्रिपल तलाक़
भारत दुनिया के उन देशों में शामिल हैं जहां ट्रिपल तलाक़ की व्यवस्था चलन में है.
भारत का मुस्लिम समाज मुस्लिम पर्सनल लॉ, 1937 को मानता है.
इसमें मुश्किल ये है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के प्रावधान स्पष्ट नहीं हैं, यानी स्थानीय मौलवी अपने अपने हिसाब से उसकी व्याख्या कर सकते हैं.
ट्रिपल तलाक में मौखिक तौर पर पति अपनी पत्नी को तीन बार तलाक़ कहकर तलाक़ दे सकता है.
पिछले कुछ सालों में भारत में तो कुछ मुसलमान पुरुषों में डिज़िटल माध्यम से भी तलाक़ लेने की प्रवृति बढ़ी है.
हालांकि मुस्लिम पर्सनल लॉ के इस चलन की क़ानूनी मान्यता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है.
अगर क़ानूनी मसले को रहने भी दें तो इस चलन को लेकर सामाजिक विसंगतियां भी देखने को मिल रही हैं.
कई महिलाएं इसके चलते मुश्किलों से घिर जाती हैं, आर्थिक और सामाजिक दोनों तरह से.
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कई बार ऐसे मामलों में महिलाओं का पक्ष अनसुना कर दिया जाता है, ऐसे में यह मानवाधिकार के उल्लंघन का मामला भी बन जाता है.
मुसलमान पुरुषों को चार पत्नियां रखने की इजाज़त है, जबकि महिलाएं कई पति नहीं रख सकती हैं.
ऐसे में ट्रिपल तलाक़ का प्रावधान और पुरुषों को कई पत्नियां रखने की इजाज़त का प्रावधान महिलाओं के अधिकारों का मज़ाक उड़ाते नज़र आते हैं.
संपत्ति पर अधिकार
प्रॉपर्टी पर अधिकार की बात करें तो हिंदुओं के उत्तराधिकार संबंधी, 1956 के क़ानून में अहम संशोधन के बाद बेटियों को संपत्ति में बराबरी का अधिकार दिया गया है.
अब बेटियों का भी माँ-बाप की संपत्ति पर बेटों जैसे ही समान अधिकार है.
वहीं मुस्लिम समाज में बेटों को मिली संपत्ति के आधे हिस्से पर ही बेटियों का अधिकार माना जाता है.
गोवा सिविल कोड
गोवा सिविल कोड अपने आप में कोई यूनिफॉर्म सिविल कोड नहीं है. ये पुर्तगाली सिविल कोड, 1867 पर आधारित है और पूरे देश में मान्य नहीं है.
इस कोड के मुताबिक विशेष परिस्थितियों में हिंदू पुरुषों को दो शादियां करने की इजाज़त है.
अगर पत्नी 25 साल की उम्र तक बच्चा पैदा नहीं कर पाए तो पुरुष दूसरी शादी कर सकता है.
इतना ही नहीं, गोवा सिविल कोड के मुताबिक अगर पत्नी 30 साल तक बेटे की मां नहीं बन पाए, तो पति को दूसरी शादी करने की इजाज़त मिल सकती है.
मैरटिल रेप
अगर पुरुष पत्नी का 'बलात्कार' करे और क़ानून महिला का साथ न दे, तो क़ानून में ज़रूर कुछ दिक्कत है.
अगर कोई पुरुष अपनी पत्नी (15 साल से ज़्यादा उम्र की हो) का बलात्कार करे, तो उसे बलात्कार भी नहीं माना जाता है.
1972 से ही कानून आयोग इस मामले में लगातार सिफ़ारिशें करता रहा है.
लेकिन अब तक भारत में पति द्वारा बलात्कार को अपराध नहीं माना गया है. ज़ाहिर है, ऐसे मामलों में महिलाओं के लिए उचित क़ानून नहीं है.
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भारतीय दंड संहिता, 1860 की धारा 375 के तहत बलात्कार की परिभाषा को जानना जरूरी है.
किसी पुरुष को तब बलात्कारी माना जाता है, जब उसने किसी भी महिला के गुप्तांग या मुंह में कोई वस्तु या अंग जबरन डालने की कोशिश की हो, या उसे मजबूर किया हो कि कोई दूसरा पुरुष ऐसा करे.
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अगर ये स्थिति निम्नांकित में किसी परिस्थिति में हो तो बलात्कार माना जाता है-
- पहला- महिला की इच्छा के विरुद्ध
- दूसरा- महिला की सहमति के बिना
- तीसरा- महिला की सहमति डरा धमका कर ली गई है
- चौथा- महिला की सहमति शादी के झांसे या धोखे से पति बनकर हासिल की गई हो.
- पांचवां- महिला की सहमति तब ली गई हो जब वह शराब या किसी अन्य नशीले पदार्थ के कारण होश में नहीं हो.
- छठा- 18 साल से कम उम्र हो, तब सहमति या बिना सहमति के
- सातवां- जब वह अपनी सहमति बताने में सक्षम नहीं हो.
(इस लेख में क़ानून के प्रावधानों की व्याख्या वंदना शाह ने की है)
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