नज़रिया: ममता को साथ लाना राहुल की उपलब्धि?

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नरेंद्र मोदी सरकार के नोटबंदी के फ़ैसले के ख़िलाफ़ विपक्ष की बुलाई प्रेस कॉन्फ्रेंस को कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने साथ संबोधित किया.
हालांकि इसमें जनता दल (यू), समाजवादी पार्टी (सपा), लेफ़्ट और एनसीपी जैसे दूसरे विपक्षी दल शामिल नहीं हुए.
क्या ये कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए मायूसी वाली बात है?
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वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई का आकलन-
"उत्तर प्रदेश में चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में वहां की क्षेत्रीय पार्टियों को चुनावी समीकरण देखते हुए कांग्रेस के साथ आना ठीक नहीं लगा होगा.
लेफ़्ट के भी आर्थिक नीतियों पर कांग्रेस से मतभेद रहे हैं. इसके अलावा पश्चिम बंगाल की राजनीति को देखते हुए उनका ममता बनर्जी के साथ एक मंच पर आना मुश्किल ही था.
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महाराष्ट्र में भी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) भी अपनी खोई हुई ज़मीन तलाश रही है. वो कांग्रेस की पिछलग्गू नहीं दिखना चाहती.
लेकिन इस सबके बावजूद मैं इस प्रेस कॉन्फ्रेंस को राहुल गांधी के लिए बड़ी उपलब्धि कहूंगा. वो एक सक्रिय विपक्षी नेता के तौर पर अपने आपको स्थापित करने की लगातार कोशिश कर रहे हैं.
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ममता बनर्जी जैसी बड़ी नेता साथ थीं. राहुल ख़ुद को सक्रिय विपक्षी नेता के तौर पर स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं. ममता, जिन्होंने पश्चिम बंगाल में विशाल जीत हासिल की है, उनकी मौजूदगी ने राहुल को ताक़त दी है.
नरेंद्र मोदी बेहद शक्तिशाली नेता हैं. नोटबंदी से जनता को तक़लीफ़ भी हुई, लेकिन उसके बावजूद अनेक लोग नरेंद्र मोदी को उसका ज़िम्मेदार नहीं ठहरा रहे हैं.
ऐसे में ममता का राहुल के साथ एक प्लेटफ़ॉर्म पर आना कांग्रेस के लिए अच्छा संकेत है.
लोकसभा चुनाव में अब भी दो साल से ज़्यादा का समय है. ऐसे में राहुल-ममता का नोटबंदी पर साथ आना विपक्ष की सक्रियता दिखाता है.
ममता बड़ी नेता हैं, वो भी अरविंद केजरीवाल की तरह खरा-खरा बोलती हैं.
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अब विपक्ष के नेता के तौर पर राहुल अपने आपको कितना स्थापित कर पाते हैं ये इस बात पर निर्भर करता है कि पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में कांग्रेस का कैसा प्रदर्शन रहता है.
मंगलवार की प्रेस कॉन्फ्रेंस दिखाती है कि भले ही राहुल के साथ क्षेत्रीय दल ना आएं लेकिन उनकी राजनैतिक शक्ति बढ़ी है.
(बीबीसी संवाददाता अमरेश द्विवेदी से बातचीत पर आधारित)
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