पार्टियों के काले सफ़ेद चंदे पर क्या कहता है क़ानून?
- प्रदीप कुमार
- बीबीसी संवाददाता

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बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने कहा है कि भारतीय जनता पार्टी, उनकी पार्टी की छवि ख़राब करने पर तुली है.
मायावती को ये प्रेस कांफ्रेंस इसलिए बुलानी पड़ी क्योंकि 26 दिसंबर को पार्टी के खाते में 104 करोड़ रुपये होने की ख़बर मीडिया में सुर्खियां बटोर रही हैं.
नोटबंदी के दौर में इतने बड़ी रकम के बारे में मायावती ने कहा कि ये पार्टी की मेंबरशिप का पैसा है और उनकी पार्टी रूटीन के हिसाब से पैसे जमा कराती रही है.
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अमीर पार्टियों की ग़रीब जनता?
हालांकि इन सबसे एक बार फिर राजनीतिक पार्टियों के चंदे की पारदर्शिता को लेकर सवाल उठने शुरू हो गए हैं.
ऐसे में एक नज़र उन सवालों पर जो राजनीतिक दलों के चंदे को लेकर उठते रहे हैं.
1. राजनीतिक दल किन किन से चंदा ले सकते हैं?
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जनप्रतिनिधित्व क़ानून की धारा 29 बी के मुताबिक भारत में कोई भी राजनीतिक दल सबसे चंदा ले सकते हैं, मतलब व्यक्तिगत और कारपोरेट से. विदेशी नागरिकों से भी पार्टियां चंदा ले सकती हैं. केवल सरकारी कंपनी या फिर विदेशी कंपनी से चंदा नहीं ले सकतीं हैं. अगर विदेशी कंपनी भारत में मौजूद हो तभी उससे पार्टियां चंदा नहीं ले सकतीं.
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पीएम मोदी, कांग्रेस चीफ सोनिया गांधी और पूर्व पीएम मनमोहन सिंह
विदेशी मुद्रा विनिमय अधिनियम, 1976 की धारा 3 और 4 के मुताबिक भारतीय राजनीतिक दल विदेशी कंपनियों और भारत में मौजूद ऐसी कंपनियों से चंदा नहीं ले सकती हैं जिनका संचालन विदेशी कंपनियां कर रही हैं.
2. कितना चंदा ले सकते हैं?
कंपनियां राजनीतिक दलों को कितना चंदा दे सकती है, इसको लेकर अलग अलग तरह के प्रावधान हैं, मसलन तीन साल से कम समय वाली कंपनी राजनीतिक चंदा नहीं दे सकती है और कंपनी एक्ट की धारा 293ए के मुताबिक कोई भी कंपनी अपने सालाना मुनाफ़े के पांच फ़ीसदी तक की राशि को चंदे के तौर पर दे सकती है.
वहीं दूसरी ओर राजनीतिक दलों के लिए चंदा लेने के लिए कोई सीमा नहीं है.
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3. क्या राजनीतिक दलों को आयकर नहीं देना पड़ता है?
आयकर क़ानून की धारा 13 ए के मुताबिक राजनीतिक दलों को आयकर से छूट मिली हुई है, लेकिन ध्यान देने की बात ये है कि उन्हें भी अपना इनकम टैक्स रिटर्न दाख़िल करना होता है. यानी हिसाब क़िताब राजनीतिक दलों को भी रखना होता है.
4. राजनीतिक दलों को जो चंदा मिलता है, उसके स्रोत का पता लगाया जा सकता है?
प्रावधानों के मुताबिक यह संभव है. लेकिन इसमें एक ख़ामी की वजह से ये व्यावहारिक तौर पर मुश्किल है.
5. वो इकलौती ख़ामी क्या है?
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20 हज़ार रुपये से कम के चंदे के बारे में चुनाव आयोग को बताना ज़रूरी नहीं है. हालांकि राजनीतिक पार्टी को इसके बारे में इनकम रिटर्न में बताना होता है, लेकिन 20 हज़ार रुपये से कम के चंदे के स्रोत के बारे में जानकारी देना जरूरी नहीं होता है.
6. इसका बेजा इस्तेमाल संभव है?
मोटे तौर पर ये देखा गया है कि राजनीतिक पार्टियां अपने चंदे का अधिकतम हिस्सा अज्ञात स्रोतों से आया हुआ बताती है. ये भी संभव है कि पार्टी 20 हज़ार की सीमा के अंदर कई लोगों से बैकडेट में चंदा लिया हुआ बता सकती है. फिर कुछ हिस्सा रखकर काले पैसे को सफ़ेद बता सकती है.
हालांकि चुनाव आयोग सख़्ती दिखाए तो राजनीतिक दलों की ऐसी गड़बड़ी सामने आ सकती है और इससे दल विशेष की सार्वजनिक छवि को नुकसान हो सकता है.
7. क्या आयकर विभाग राजनीतिक दलों के चंदे की जांच कर सकता है?
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आयकर में छूट ज़रूर है लेकिन राजनीतिक पार्टियां के चंदे की आयकर विभाग जांच कर सकता है. यही वजह है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी को आयकर विभाग से चंदे पर नोटिस मिल चुका है. हालांकि इन जांचों का नतीजा कुछ नहीं निकलता.
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