'माँ का साया उठ गया, हम कैसे जिएंगे?'

  • सीटू तिवारी और शूरेह नियाज़ी
  • पटना/भोपाल से बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए
कोमल

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माता-पिता की तस्वीर के साथ बैठी कोमल.

"मुआवज़ा? मुझे अभी तक पापा की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट नहीं मिली है. मुआवज़े के लिए क्या करना है यह भी बताने वाला कोई नहीं."

कानपुर रेल हादसे में माता-पिता को खो चुकी कोमल ताज्जुब से पूछती हैं. मां-बाप के बाद अब छोटे भाई-बहनों की ज़िम्मेदारी 21-साल के कोमल पर है. घर कोमल के पिता मनोज कुमार साह की छोटी सी दुकान के बलबूते चलता था.

कोमल बताती हैं, "मैंने सुरेश प्रभु को ट्वीट किया था तो रेलवे की तरफ़ से बस इतना जवाब आया कि दोषियों पर कार्रवाई होगी. मगर कोई बताए कि मेरे घर का कमाने वाला चला गया, मां का साया उठ गया, अब हम कैसे जिएंगे?"

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कानपुर में हुए रेल हादसे की आंखों-देखी बता रहे हैं यात्री कृष्णा केशव.

20 नवंबर को कानपुर के पास हुए रेल हादसे में 140 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 180 से ज़्यादा घायल हुए थे. पटना सिटी के एक ही चौक शिकारपुर इलाक़े के 21 लोगों की हादसे में मौत हुई थी.

मृतकों के घरवालों को रेलवे की तरफ़ से साढ़े तीन लाख रुपए के अलावा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार सरकारों ने भी मुआवज़े का ऐलान किया था. मगर कई पीड़ितों को अभी तक मदद नहीं मिली.

रेलवे के झांसी डिवीज़न के जनसंपर्क अधिकारी मनोज कुमार सिंह का दावा है, "21 नवंबर तक 150 मृतकों में से 145 के परिजनों को हमने तुरंत 50 हज़ार रुपए की तत्काल राहत दे दी थी और बाक़ी की पेमेंट चेक से की जाएगी."

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कोमल के ट्वीट पर रेल मंत्रालय का जवाब.

पटना सिटी के ही सूरज की भी यही हालत है. वे कहते हैं, "किसी एक बंदे की ग़लती किसी परिवार की जेनरेशन को ही डीग्रेड करके रख देती है."

मां-बाप को हादसे में खो चुके सूरज की आवाज़ किसी धातु के पीटने की आवाज़ में मद्धम हो जाती है. वह उस एल्यूमिनियम फ़ैक्ट्री का कामकाज देख रहे हैं, जिसे कभी उनके पिता विजय कुमार संभालते थे.

ख़ुद सूरज एक महीने पहले तक बेंगलुरु में नौकरी करते थे. उन्हें अपने सपनों का अंत नज़र आने लगा है.

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अरुण शर्मा का परिवार.

बिहार के इन परिवारों की तरह भोपाल के अरुण शर्मा के परिवार की ज़िंदगी थम सी गई है. उनके 10 साल के बेटे श्रेयन की रेल हादसे में मौत हो गई थी. उनकी पत्नी नूपुर शर्मा के पैरों में फ़्रैक्चर हो गया था और ख़ुद अरुण को किडनी की बीमारी है.

घायलों का पूरा ख़र्च उठाने के मध्यप्रदेश सरकार के वादे के उलट शर्मा परिवार का कहना है, "अब तक इलाज पर चार-पांच लाख रुपए ख़र्च हो चुके हैं. इसके लिए हमने रिश्तेदारों से क़र्ज़ लिया है."

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दुर्घटनास्थल से राहतकर्मियों का आंखों देखा हाल जानिए.

पैसों की कमी परिवार के लिए नई मुसीबतें पैदा कर रही हैं.

अरुण शर्मा के बड़े भाई निरंजन शर्मा ने बताया, "हमने अपना बच्चा खोया और अब इलाज के लिए दिक्क़तें झेल रहे हैं. हर अस्पताल में पैसे हमें नक़द ही देने पड़ रहे हैं."

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हालांकि, मध्यप्रदेश सरकार में मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने बीबीसी से कहा, "सरकार पूरी मदद कर रही है. पैसे या तो मिल गए होंगे या मिलने वाले होंगे."

भारतीय रेल की ओर से हादसे की स्थिति में मृतकों को चार लाख रुपए और घायलों को उनकी चोट को देखते हुए 32 हज़ार रुपए से लेकर चार लाख रुपए तक देने का प्रावधान है.

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