यमन में अग़वा फ़ादर टॉम की कहानी
भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इस सप्ताह यमन में बंधक बनाए गए भारतीय पादरी फ़ादर टॉम उड़ुनलिल का एक वीडियो संदेश सामने आने के बाद कहा है कि भारत उनकी रिहाई के प्रयास जारी रखेगा.
आइए एक निगाह डालें कि फ़ादर टॉम भारत से यमन कैसे पहुँचे:
फ़ादर टॉमी जॉर्ज या फ़ादर ने कोट्टायम ज़िले के रामापुरम शहर में सेंट एंटनी सेकेंडरी स्कूल से 1975 में सेकेंडरी शिक्षा पूरी की. इसके बाद वे उच्च शिक्षा के लिए सेलिशियन धार्मिक सभा से जुड़ गए.
पादरी को छुड़ाने की कोशिश: सुषमा स्वराज
फ़ादर टॉम इसके बाद बेंगालुरू में एक सेलेशियन पादरी बन गए. उनके रिश्तेदारों का दावा है कि उनका झुकाव धार्मिक उपदेश देने से अधिक समाजसेवा पर था. उन्होंने सेलेशियन सभा के लिए कई राज्यों में काम किया.
वो एक बार फिर बंगलुरू तब लौटे जब यमन में सेलेशियन पादरी के तौर पर काम कर रहे उनके चाचा फ़ादर यू वी मैथ्यू बीमार पड़ गए और उन्हें भारत लौटना पड़ा. इसके बाद फ़ादर टॉम को 2010 में यमन में नियुक्त किया गया.
वो हर दो साल में केरल आया करते थे. सभा ने उन्हें बाद में फिर बंगलुरू बुला लिया.
मगर मदर टेरेसा की संस्था मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी ने उनसे यमन में ही रहने का आग्रह किया क्योंकि वहाँ लड़ाई छिड़ी रहने के कारण किसी और को वीज़ा नहीं दिया जा रहा था.
मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटीज़ की नन वहाँ वर्षों से काम कर रही थीं.
बाद में यमन में केवल पाँच सेलेशियन पादरी और केवल 20 नन बचीं थीं.
वहाँ आपातकाल के बाद तीन और पादरियों ने देश छोड़ दिया. नन वहीं बनी रहीं.
फ़ादर टॉम यमन के इस कॉन्वेन्ट में सितंबर 2015 में आए.
और मार्च 2016 में तथाकथित इस्लामिक स्टेट ने उन्हें बंधक बना लिया.
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