समझ नहीं आ रहा सपा का 'असली नेता' कौन?
- ज़ुबैर अहमद
- बीबीसी संवाददाता, नई दिल्ली

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कहते हैं कि राजनीति में एक हफ्ता एक लंबा समय होता है.
बीते दो दिनों में समाजवादी पार्टी का जो घटनाक्रम रहा है, उसे देखते हुए समझ नहीं आ रहा कि सपा का 'नेता' कौन है?
रविवार सुबह 'समाजवादी पार्टी अधिवेशन' कर रामगोपाल ने जो ऐलान किया, उसके हिसाब से दो दिन पहले तक मुलायम सिंह यादव पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे.
अब उनके बेटे अखिलेश यादव को यह पद सौंपा गया है.

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रविवार को लखनऊ में हुए बाग़ी अधिवेशन में अखिलेश को समाजवादी पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित किया गया.
शनिवार शाम यह नहीं समझ आ रहा था कि अखिलेश का संकट में आ चुका मुख्यमंत्री पद कैसे बचेगा.
लेकिन आज वो सत्ता पर और भी मज़बूत स्थिति में नज़र आ रहे हैं. कल को यह सब भी पलट सकता है.
लेकिन सियासत में कुछ चीज़ें कभी नहीं बदलतीं.
मुग़लों के दौर में बाप को सत्ता से हटाने के लिए बेटे न केवल बग़ावत पर उतर आते थे, बल्कि ज़रूरत पड़ने पर राजधानी पर चढ़ाई भी कर देते थे.
जहांगीर ने अक़बर से बग़ावत की. जहांगीर से शाहजहां ने विद्रोह किया और शाहजहां से औरंगज़ेब ने. समय के पहियों को और पीछे ले जाएं तो रोमन साम्राज्य में भी सत्ता के लिए संघर्ष होता रहा.

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इन दिनों उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी में जारी पारिवारिक घमासान भी मुग़लों की याद दिलाता है. पार्टी में बाप से बेटे की बग़ावत, पार्टी के अंदर साज़िश और एक दूसरे के खिलाफ़ षड्यंत्र से मुग़ल साम्राज्य की बू आती है.
शुक्रवार को 'नेता जी' कहे जाने वाले पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव ने पार्टी से बग़ावत करने के इलज़ाम में अपने बेटे अखिलेश यादव को छह सालों के लिए पार्टी से निकालने का फैसला किया, लेकिन अगले ही दिन उन्होंने अपना फैसला वापस ले लिया.

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आज यानी रविवार को उनकी जगह पर पार्टी के नए राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश बनाए गए, जिसे मुलायम सिंह ने गैरकानूनी करार दिया है. साथ ही कहा है कि इस लेकर वो 5 जनवरी को 'अपना' अधिवेशन करेंगे.
हालांकि रामगोपाल यादव और अखिलेश के जिस विशेष अधिवेशन को रविवार को लखनऊ में आयोजित किया गया, उसे असंवैधानिक घोषित करते हुए मुलायम सिंह ने इस सम्मेलन में शामिल होने वाले लोगों के ख़िलाफ कड़ी कार्रवाई करने की चेतावनी भी दी थी.
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फिर भी इस सम्मेलन में करीब 5000 कार्यकर्ता शामिल हुए.
इस सम्मेलन में मुलायम को पार्टी का रहनुमा बताते हुए उनके ख़ास सहयोगी शिवपाल यादव का राज्य अध्यक्ष पद छीन लिया गया और उनके दिल के करीब बताए जाने वाले अमर सिंह को पार्टी से निकाल दिया गया.

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तो क्या ये उत्तराधिकार की लड़ाई है या फिर पुरानी पीढ़ी बनाम नई पीढ़ी की आपसी कशमकश, या फिर दोनों?
पार्टी पर नज़र रखने वाले कई विशेषज्ञ ये कहते हैं कि मुलायम सिंह सियासत के शिखर पर जितना ऊंचा जा सकते थे गए. अब वो और ऊपर नहीं जा सकते.
दूसरी तरफ बेटे के बारे में वो कहते हैं कि अब दौर है अखिलेश यादव का, जिनके बारे में कहा जाता है कि नई पीढ़ी में उनकी लोकप्रियता काफी ज्यादा है.
कुछ तो यहां तक कहने को तैयार हैं कि मुलायम सिंह भी यही चाहते हैं कि पार्टी की बागडोर अखिलेश ही संभालें. वो अपने छोटे भाई शिवपाल यादव के क़रीब ज़रूर हैं लेकिन अगर चुनाव बेटे और भाई के बीच किसी एक का करना हो, तो वो अंत में बेटे को ही चुनेंगे.

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कुछ विशेषज्ञ तो यह भी कहते हैं कि बाप-बेटे का झगड़ा केवल एक ड्रामा है.
समाजवादी पार्टी में जारी उठा-पटक पर नज़र रखने वालों को यक़ीन है कि अंदरूनी विवाद जल्द ख़त्म होने वाला नहीं है. लेकिन पार्टी के पास समय नहीं है.
राज्य में विधानसभा चुनाव होने में अब कुछ ही हफ्ते बाक़ी हैं. अगले कुछ दिनों में इस जंग का अंत पार्टी के लिए बेहद ज़रूरी होगा.
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