'पार्टी प्रतिनिधि भी नहीं मांग सकते धर्म के नाम पर वोट'

विश्व हिंदू परिषद की रैली

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सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक आदेश में कहा है कि चुनाव के दौरान धर्म, नस्ल, जाति और भाषा के आधार पर वोट देने की अपील को 'भ्रष्ट आचरण' माना जाएगा.

मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर और तीन अन्य जजों ने कहा कि इसका आशय मतदाताओं, उम्मीदवारों और उनके प्रतिनिधियों के धर्म और जाति से है.

बीबीसी संवाददाता वात्सल्य राय ने वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह से अदालत के इस आदेश पर बात की और जानना चाहा कि इसमें नया क्या है?

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इंदिरा जयसिंह के मुताबिक, "जो कानून था उसकी व्याख्या 1969 में की गई थी. उसमें कहा गया था कि एक उम्मीदवार अपनी जाति या धर्म के नाम पर अपने लिए वोट की अपील नहीं कर सकता है. अब जो फ़ैसला आया है उसमें ये लिखा है कि न सिर्फ उम्मीदवार बल्कि कोई और भी धर्म और जाति के नाम पर अपील नहीं कर सकता है."

यानी उम्मीदवार ही नहीं बल्कि पार्टी का प्रतिनिधि भी प्रचार के दौरान भाषण देता है और धर्म या जाति के नाम पर वोटरों को प्रभावित करने की कोशिश करता है या वोट मांगता है, ये नहीं हो सकता.

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भारत में राजनीति में धर्म और जाति के मुद्दे हावी रहे हैं. कई पार्टियां उम्मीदवारों का चयन भी वोटरों के धर्म और जाति को ध्यान में रखकर करती हैं.

ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का भारतीय राजनीतिक परिदृश्य पर कितना असर होगा, इस सवाल पर इंदिरा जयसिंह कहती हैं, "ऐसा माना जाए कि अगर कोई पार्टी अपने घोषणापत्र में हिंदुत्व का एजेंडा लिखती है या अपने चुनावी भाषण में उम्मीदवार और पार्टी प्रतिनिधि प्रचार करते हैं कि अगर आप मुझे वोट देंगे तो मैं राम मंदिर बनाऊंगा, तो अब ऐसा करना नामुमकिन है."

वो कहती हैं कि मुसलमान उम्मीदवार भी ये कहते हुए वोट नहीं मांग पाएंगे कि वो मस्जिद बनाएंगे, इसलिए उन्हें वोट देना चाहिए.

अदालत के निर्देश को लागू करना चुनाव आयोग के लिए कितना मुश्किल होगा?

इंदिरा जयसिंह मानती हैं कि ऐसा करने में आयोग को दिक्कत ज़रूर होगी. पहले तो सभी पार्टियों के घोषणा पत्र को बारीकी से देखना होगा.

वो कहती हैं, "स्थितियां आसान नहीं हैं. इतनी जल्दी बदलाव नहीं आएगा. लेकिन हर पार्टी को अब सोचना होगा कि वो अपना घोषणापत्र कैसे बनाएं. अब उन्हें सतर्क रहना होगा."

(ये इंदिरा जयसिंह के निजी विचार हैं)

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