झारखंड खदान हादसा: 'हमारा तो सबकुछ ख़त्म हो गया'
22 साल की रजनी देवी की गोद में छह महीने की बेटी है और दो साल का बेटा. शादी करने योग्य दो ननदें और एक देवर. आंखों में आंसू हैं.
माथे पर चिंता की लकीरें. घर में कमाने वाले सिर्फ़ उनके पति लड्डू यादव थे. पिछला साल जाते जाते उनके पति को भी ले गया. उनके घर का खर्च कैसे चलेगा.
30 दिसंबर की रात भोड़ाय खदान में हुए हादसे में लड्डू यादव की मौत हो गई थी.
सात लाशें निकाली गईं, 60 से ज़्यादा फंसे
झारखंड खदान हादसे में आख़िर कितने मरे थे?
खान में लाशें खोजने का काम फिर शुरू हुआ है. अब तक 18 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है.
रजनी देवी बताती हैं, "मैं एक साल पहले यहां आयी थीं. ताकि उनके (पति) साथ रह सकूँ. उन्हें घर का बना खाना खिला सकूँ. सोचा था कि बच्चों को पिता का साया मिलेगा और मुझे मेरे 'जान' का साथ. मगर, अब वे नहीं रहे. मेरी जिंदगी अब कैसे कटेगी. लड्डू यादव नालंदा (बिहार) जिले के नरसंडा के रहने वाले थे."

उनके पिता योगेसर प्रसाद ने बताया कि लड्डू भोड़ाय खदान में आपरेटर थे. जिस दिन खदान हादसा हुआ उस सुबह उनकी अपने बेटे से बात हुई थी. कहते हैं- 'तब नहीं पता था कि यह आख़िरी बातचीत है.' इतना कहकर वे रोने लगते हैं.
स्थानीय पत्रकार प्रवीण तिवारी ने बताया कि खान में काम करने वाले कई लोग यहां किराये के घरों में रहते हैं क्योंकि भोड़ाय खदान यहां से नज़दीक है. जनार्दन साह के घर में किरायेदार वाले चार लोग इस हादसे में मारे गए. लड्डू यादव भी इनमें से एक थे. अब इन सभी घरों में अजीब-सी दहशत है.
रजनी देवी के पड़ोसी अखिलेश्वर कुमार की भी हादसे में मौत हुई है. वे डोज़र ऑपरेटर थे. हजारीबाग के अखिलेश्वर यहां अपनी पत्नी सोनी देवी और बच्चों के साथ रहते थे.
सोनी देवी ने बीबीसी को बताया कि काम पर जाते वक़्त उन्होंने अपने दुधमुंहे बच्चे को खूब दुलार किया था और चूमकर बोले थे कि इसका ख़्याल रखना. मैं रात साढ़े नौ बजे तक आ जाऊंगा. हमें क्या पता था कि वे अब कभी वापस न आने के लिए घर से निकल रहे थे. वे मेरे जीने का मक़सद थे. अब हम कैसे ज़िंदा रहेंगे.
सोनी देवी ने कहा, "अब बग़ैर नौकरी के कैसे रखेंगे बच्चे का ख्याल? कौन खिलाएगा खाना? सरकार ने मुआवज़े की घोषणा तो कर दी लेकिन, कोई पूछने नहीं आया. पति ज़िंदा रहते तो पूरी ज़िंदगी आराम से कटती. अब अगर मुआवज़े का 12 लाख रुपया मिल भी जाए, तो क्या इससे ज़िंदगी चल जाएगी."
सोनी की आंखें रोते-रोते सूज गई हैं.
भागलपुर के नवनीत सिंह के भाई भोड़ाय खदान में सुपरवाइज़र थे. उन्होंने बताया कि अगर उनके भाई ज़िंदा होते तो इसी साल उनकी शादी होती. ''अब सब कुछ ख़त्म हो चुका है. उनके साथ घर की योजनाएं और मम्मी-पापा के सपने भी ज़मींदोज़ हो चुके हैं.''
यहां मेरी मुलाक़ात ऐसे कई लोगों से हुई जिनके अपने इस हादसे में असमय मौत का शिकार हुए हैं. मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल सीधी ज़िले के अधिकारी भी गोड्डा पहुँचे हैं. उन्हें अपने ज़िले के वैसे लापता लोगों की तलाश है, जो भोड़ाय माइंस में काम करते थे.
भोड़ाय माइंस के मलबे के ऊपर गिद्ध मंडराने लगे हैं. शायद, इन गिद्धों को पता हो कि मलबे के नीचे और कितने लोग हैं.
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