कांग्रेस की 'पिच' पर कैप्टन के साथ कब तक टिकेंगे सिद्धू

  • रविंदर सिंह रॉबिन
  • बीबीसी हिंदी डॉट कॉम के लिए
कैप्टेन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू

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पूर्व भाजपा नेता और क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू रविवार को कांग्रेस में शामिल हो गए हैं और इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों में अपनी नई पारी की शुरूआत करने वाले हैं.

सिद्धू उस पार्टी का हिसा बन गए हैं जिसे कुछ समय पहले तक वो 'भ्रष्टाचार में लिप्त और नाकाम' बताते रहे हैं. लेकिन उन्होंने अपने पुराने साथी अकाली बंधुओं के साथ जाना स्वीकार नहीं किया जो राज्य में भाजपा के साथ गठबंधन में चुनावों में उतर रही है और जिन्होंने इससे पहले अमृतसर से चुनाव जीतने में कई बार उनकी मदद की थी.

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सिद्धू के पिता कांग्रेस समर्थक रहे हैं. लेकिन क्रिकेट के मैदान से संन्यास लेने के बाद सिद्धू साल 2004 में भाजपा में शामिल हुए. उन्होंने अमृतसर की सीट से चुनाव लड़ते हुए कांग्रेस के बड़े नेता आरएल भाटिया को हराया.

इसके बाद एक आपराधिक मामले में उनका नाम आने के बाद उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा. पंजाब और हरियाणा कोर्ट ने सड़क दुर्घटना में एक व्यक्ति की ग़ैर-इरादतन हत्या के मामले में सिद्धू को दोषी पाया. अपील के बाद सुप्रीम कोर्ट में यह फ़ैसला बदला और सिद्धू दोबारा राजनीति के मैदान में उतरे. (इस मामले में वकील के तौर पर सिद्धू का पक्ष कोर्ट के सामने अरुण जेटली ने रखा था.)

इसके बाद 2007 में अमृतसर सीट पर हुए उपचुनाव में उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता और राज्य के वित्त मंत्री रह चुके सुरिंदर सिंगला को हराया. 2009 के आम चुनावों में उन्होंने तीसरी बार अमृतसर सीट पर अपनी जीत का परचम लहराया.

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टीवी पर छाए रहने के कारण सिद्धू को गांव देहात से लेकर शहरों तक सभी लोग पहचानते हैं. उनकी बढ़ती लोकप्रियता अकाली नेताओं के लिए गंभीर मुद्दा बनती जा रही थी जो उन्हें आने वाले सालों में एक ताकतवर प्रतिद्वंदी के रूप में देख रहे थे.

पंजाब की राजनीति के कैनवस पर उभर रहे नए अकाली नेताओं- जैसे कि ताकतवर माने जा रहे बिक्रम सिंह मजीठिया के लिए सिद्धू का व्यक्तित्व चुनौती की तरह देखा जाने लगा था. पंजाब के उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल के साथ उनके संबंध भी कुछ बहुत अच्छे नहीं रहे.

सिद्धू ने अकाली दल के नेताओं के विरोध में बोलना शुरू किया जिसे अकालियों ने पसंद नहीं किया. आख़िरकार जब 2014 के लोकसभा चुनावों का वक्त आया तो अमृतसर की सीट से ख़ुद अरुण जेटली लड़े, इस सीट से सिद्धू को टिकट भी नहीं मिला.

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सिद्धू इस बात से इतने ख़फ़ा हुए कि वो कई बार बुलाने के बावजूद चुनाव अभियान में अपने राजनीतिक गुरु अरुण जेटली की मदद करने नहीं आए. उन्होंने इसके बाद अपना गुस्सा निकाला अकाली दल पर और राज्य में भाजपा और अकाली दल के बीच के गठबंधन को तोड़ने की कोशिश की. भारतीय राजनीति में भाजपा और अकाली दल का गठबंधन पुराना और मज़बूत माना जाता है.

सुखबीर सिंह बादल की पत्नी और अकाली नेता हरसिमरत कौर बादल का कहना है, "सिद्धू ने पंजाब और पंजाबियों को धोखा दिया है. उन्होंने ना सिर्फ़ पंजाबियों को बल्कि अपने गुरु को भी धोखा दिया है. उनके पास लोगों की सेवा करने का मौक़ा था जो उन्होंने गंवा दिया है. उनका एजेंडा था ताकत हासिल करना. उन्हें जो डील अच्छी लगी उन्होंने वो चुनी."

सिद्धू के भाजपा छोड़ने का बाद कई महीनों तक यह कयास लगाए जाते रहे कि वो पंजाब में तीसरी पार्टी के तौर पर उभरी आम आदमी पार्टी से जुड़ सकते हैं. अरविंद केजरीवाल के एक ट्वीट ने दोनों के बीच हुई मुलाक़ात के बारे में बताया. लेकिन सिद्धू ने कभी खुल कर आम आदमी पार्टी में शामिल होने की बात नहीं की थी.

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माना जा रहा है कि सिद्धू किसी भी पार्टी में हों, वो अकाली दल के विरोध में बोलेंगे. इस कारण उनके कांग्रेस में जाने से आम आदमी के वोटबैंक पर बहुत बड़ा असर पड़ता नहीं दिख रहा.

रविवार को सिद्धू अख़िरकार कांग्रेस में शामिल हो गए हैं जिस पर वे हमेशा कटाक्ष करने के लिए जाने जाते हैं. वो कांग्रेस को 'मुन्नी बदनाम हुई' और पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को 'पप्पू प्रधानमंत्री' तक कह चुके हैं.

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पूर्व मुख्यमंत्री और राज्य में कांग्रेस के कमान संभालने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ भी उनके संबंध बहुत अच्छे नहीं रहे हैं. अमरिदर सिंह ने उनके पार्टी में शामिल किए जाने का विरोध भी किया था.

पार्टी आला कमान के स्तर पर सिद्धू इस समस्या को सुलझाने में सफल हो गए हैं. लेकिन पंजाब में पहले ही अनेक मुद्दों का सामने कर रही कांग्रेस में कैप्टन अमरिंदर सिंह और सिद्धू दोनों कितनी देर तक एक साथ रह पाएंगे यह अभी बताना आसान नहीं. लेकिन इतना तो तय है कि दोनों नेताओं का व्यक्तित्व कुछ ऐसा है कि दोनों दूसरे नंबर पर नहीं रहना चाहेंगे.

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