कौन है '500 बच्चों के यौन शोषण' का अभियुक्त
दिल्ली के अशोक नगर से गिरफ़्तार किया गया 'पीडोफ़ाइल' (बच्चों का यौन शोषण करनेवाला) सुनील रस्तोगी अब तक क़ानून के शिकंजे से बाहर रह कर अपराध कैसे करता रहा?
मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि गुमनाम होना, अस्थायी पता होना, कुछ ऐसे महत्वपूर्ण पहलू हैं जिनकी वजह से वो ऐसा कर पाया.
मनोवैज्ञानिकों को लगता है कि अलग-अलग जगहों पर रहने की वजह से सुनील को कम लोग पहचानते थे और वो अपराध करने के बाद आसानी से ग़ायब हो जाता था.
पुलिस का दावा है कि सुनील ने 500 बच्चों से यौन शोषण करने की बात क़बूल की है.
पूर्वी दिल्ली के कल्याणपुरी इलाक़े के सहायक पुलिस आयुक्त राहुल अलवल ने बीबीसी को बताया कि सुनील उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की सीमा पर बसे रुद्रपुर गाँव का रहने वाला है और पेशे से दर्ज़ी है.
अलवल कहते हैं, "सुनील अपने गांव से दिल्ली आता-जाता रहता था और जब उसे कोई काम मिलता था तो वो अकेले ही रहता था. वो कुछ दिन किसी एक दर्ज़ी की दुकान में काम करता था और कुछ दिनों बाद कहीं और."
पुलिस का दावा है कि अब तक उन्होंने पांच से छह ऐसे मामलों का पता लगा लिया है जिनमें सुनील ने नाबालिग़ लड़कियों के साथ अनाचार किया है. इनमें से तीन मामले दिल्ली के हैं. इस सभी मामलों में पीड़िता की उम्र पांच साल से 11 साल तक की बताई गई है.
हाल के दिनों में दो मामलों में सुनील पर नाबालिग़ लड़कियों के यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए गए हैं. ये दोनों ही मामले पूर्वी दिल्ली के अशोक नगर इलाक़े के हैं.
एक मामले में उसने एक सरकारी स्कूल के बाहर से 10 साल की एक लड़की को अग़वा करने की कोशिश की थी. पीड़िता ने शोर मचाया. बाद में पुलिस ने सीसीटीवी कैमरों की मदद से उसकी शिनाख़्त की.
पुलिस के अनुसार सुनील ऐसी नाबालिग़ लड़कियों को निशाना बनाता था जो अकेले स्कूल या बाज़ार जाती थीं. वो लड़कियों को वीरान जगहों पर ले जाया करता था. पुलिस का कहना है कि ऐसे ही एक मामले में उस पर उसके अपने गांव में भी प्राथमिकी दर्ज की जा चुकी है.
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'क्रिमिनल साइकोलॉजिस्ट' अनुजा कपूर कहती हैं, "अमूमन 'पीडोफ़ाइल' पहचान छुपाकर ही अपराध को अंजाम देते हैं. इस तरह के अपराधियों की मनोस्थिति ऐसी होती है कि वो लोगों के साथ ज़्यादा घुलते-मिलते नहीं हैं. वो अपराध को अंजाम देने के बाद इलाक़ा बदल देते हैं."
उनके मुताबिक 'पीडोफ़ाइल' अक़्सर अपने जीवन में भी किसी यौन हिंसा का शिकार हुए होते हैं और उस व़क्त कोई मदद ना मिलने की वजह से जब ख़ुद वयस्क हो जाते हैं तो 'बदला लेने' की भावना से बच्चों को निशाना बनाते हैं.
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अनुजा कपूर के मुताबिक़ इस सबकी जड़ काफ़ी हद तक मां-बाप और स्कूल के अध्यापकों का बच्चों से यौन हिंसा और अच्छे-बुरे स्पर्श के बारे में बात करने से झिझकना है.
वो कहती हैं, "हमें शर्म महसूस नहीं करनी चाहिए, बच्चों को ये सब बहुत कम उम्र में बताना बेहद ज़रूरी है क्योंकि ऐसे अपराधी सबसे पहले उनको निशाना बनाते हैं जो उनपर विश्वास करते हैं, जैसे कि पड़ोसी या किसी रिश्तेदार के बच्चे."
बच्चों को चुप रहने के लिए डराया-धमकाया जा सकता है. अक़्सर समाज के डर से बच्चे के अभिभावक पुलिस में शिकायत भी दर्ज नहीं कराते.
अनुजा के मुताबिक, "भारत में 'पीडोफ़ाइल' को सज़ा दिलाने के लिए क़ानून काफ़ी कड़ा है और बच्चे और अभिभावक के प्रति संवेदनशील भी, लेकिन अपराधी उससे डरते नहीं क्योंकि वो जानते हैं कि ज़्यादातर मां-बाप अपने बच्चों की ऐसी शिकायत को संजीदगी से नहीं लेते."
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