नज़रिया: जब 'डॉल' हो गई 'ट्रांसजेंडर'...

  • दिव्या आर्य
  • बीबीसी संवाददाता
गुड़िया

इमेज स्रोत, Thinkstock

पांच साल की उम्र में जब गुड़िया से खेलना शुरू किया होगा तो 'ट्रांसजेंडर' का मतलब क्या ये शब्द ही नहीं सुना होगा.

वैसे मतलब तो बड़े होने के बाद भी कई लोग ठीक से नहीं समझते हैं.

समझें भी कैसे, आम तौर पर 'हिजड़ा' नाम से जाने जानेवाले इन लोगों को उन्होंने सड़कों पर भीख़ मांगते या शादी-मुंडन जैसे मौकों पर शगुन मांगते ही देखा होता है.

ये ना स्कूल-कॉलेज, बैंक-अस्पताल या किसी बड़ी कंपनी में मिलते हैं न हमारे पड़ोस में रहते हैं.

तो गुड्डे-गुड़िया के खेल का हिस्सा कैसे बनते?

इमेज स्रोत, Tonner

पर अब न्यू यॉर्क की एक कंपनी ने दुनिया की पहली 'ट्रांसजेंडर डॉल' बनाई है. इस हफ़्ते इसे वहां के 'टॉए फ़ेयर' यानि ख़िलौनों के मेले में दिखाया गया.

टॉनर कंपनी की इस 'डॉल' के बाल लंबे हैं, आंखें बड़ी और ख़ूबसूरत हैं पर कुछ है जिससे वो एक गुड़िया से अलग दिखती है.

इसे एक 'ट्रांसजेंडर ऐक्टिस्ट' जैज़ जेनिंग्स पर बनाया गया है.

जैज़ अब 16 साल की हैं. जब वो पैदा हुईं तो लड़का थीं पर छह साल की छोटी उम्र में ही उन्होंने ये ऐलान कर दिया कि वो 'ट्रांसजेंडर' हैं.

न्यू यॉर्क टाइम्स अख़बार से हुई बातचीत में उन्होंने बताया कि 'डॉल' से खेलना उनके लिए कितना अहम् रहा है, "यही वो ज़रिया था जिससे मैं अपने मां-बाप को बता पाई कि मैं लड़कियों के शौक रखती हूं."

इमेज स्रोत, Thinkstock

बात है तो गुड्डे-गुड़िया की, लेकिन है बहुत अहम्. क्यों बचपन में गुड्डे-गुड़िया ही बाहरी दुनिया की पहली खिड़की होते हैं.

उस खिड़की से लड़के-लड़कियों के अलावा कुछ अलग दिखने वाले 'ट्रांसजेंडर' भी हों तो शायद मन के किसी कोने हम उन्हें भी 'नॉर्मल' समझने लगें.

फिर गुड्डे-गुड़िया के साथ घर-घर खेलते हुए ही तो बच्चे ये समझते हैं कि रसोई में खाना मां बनाती हैं और ऑफ़िस पापा जाते हैं.

जाने-अनजाने 'जेंडर-रोल्स' यानि मर्द और औरत की सामाजिक ज़िम्मेदारियों के फ़र्क की समझ वहीं से बनती है.

इमेज स्रोत, Mattel

ख़ूबसूरती भी तभी समझ में आने लगती है. सुंदर गुड़िया गोरी, पतली और लंबी होती है और उसका शरीर 'बार्बी डॉल' के 39, 23, 33 जैसे आकार का होता है.

ये अलग बात है कि दुनिया की सबसे लोकप्रिय 'बार्बी डॉल' जैसी दिखती है वैसी असल ज़िंदगी में शायद कुछ एक लड़कियां ही दिखती होंगी.

'अमेरिकन साइकॉलॉजिकल एसोसिएशन' के एक शोध के मुताबिक पांच से आठ साल की उम्र की लड़कियों पर 'बार्बी डॉल' जैसी पतली गुड़िया से खेलने का बुरा असर पड़ता है.

शोध में पता चलता है कि, "लड़कियों अपने शरीर को कम आंकने लगती हैं और पतली होने के लिए प्रेरित होती हैं."

इमेज स्रोत, Mattel

छोटी बच्चियों में ख़ूबसूरती और शरीर के ग़लत मानदंड को बढ़ावा जेने के लिए जब दुनियाभर में 'मैटल' कंपनी की बहुत आलोचना हुई तो उसने पिछले साल नई 'बार्बी' बाज़ार में उतारी.

इनमें 'नॉर्मल' लड़कियों की तरह 'बार्बी' का थोड़ा पेट निकला है, उसके सात अलग 'स्किन टोन' हैं और बालों के कई नए 'स्टाइल'.

इमेज स्रोत, Thinkstock

ज़माना बदल रहा है. और 'नॉर्मल' की समझ भी.

गुड्डे-गुड़िया के खेल से ही सही, क्या पता बड़े होते बच्चों की दुनिया की परिकल्पना बदलती और खुलती जाए.

(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)