केरल: 'ईश्वर के अपने देश' में भी महिलाओं से भेदभाव!
- राजीव रामचंद्रन
- कोच्चि से, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए

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आमतौर पर अपने में मगन रहने वाला केरल का समाज उस वक़्त थोड़े समय के लिए विचलित हो गया जब 17 फ़रवरी 2017 को एक शीर्ष मलयाली अभिनेत्री से बदतमीजी हुई.
मलयालम फ़िल्म उद्योग की इस अभिनेत्री को कुछ लोगों ने पहले अगवा किया और फिर तीन घंटे तक चलती कार में छेड़छाड़ करते रहे. केरल में उस रोज जो कुछ हुआ, वैसा अमूमन फ़िल्मों में होता है.
उसे किसी फ़िल्मी पटकथा की 'अच्छी शुरुआत' कहा जा सकता था. एक क्राइम ड्रामा का एंट्री सीन. 17 फ़रवरी की शाम को दक्षिण भारतीय सिनेमा की एक जानी-मानी अभिनेत्री अपने घर से पास के एक शहर जाने के लिए कार में बैठती हैं.
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उन्हें किसी असाइनमेंट के सिलसिले में वहां जाना था. कोच्चि जाने के रास्ते में एक गैंग वैन से उनका पीछा करता है. कोच्चि अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास वैन अभिनेत्री की कार को ओवरटेक करता है और उन्हें अगवा कर लेता है.
वारदात की एफआईआर
गैंग के दो सदस्य उनकी कार में जबरन दाखिल होते हैं, उनकी तस्वीरें क्लिक करते हैं और वीडियो बनाते हैं. इन सब के बीच अभिनेत्री के साथ बदमाशों की छेड़छाड़ जारी रहती है. ये सब कुछ तीन घंटे तक चलता रहा.
बदमाशों ने लड़की को उस फ़िल्म डायरेक्टर के घर के बाहर फेंक दिया, जिनकी फिल्म में वे इस समय काम कर रही थीं. तब पुलिस को फोन किया गया और घटना की सूचना दी गई.
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इस सिलसिले में नेदुम्बैसरी में दर्ज एफआईआर में सात लोगों को नामजद किया गया है. इसके फौरन बाद चार अभियुक्तों को गिरफ़्तार कर लिया जाता है. गिरफ़्तार किए गए में लोगों में एक उस अभिनेत्री का पूर्व ड्राइवर भी है.
मलयाली सिनेमा
तीन लोग गैंग के सदस्य हैं और उनमें से एक पहले हीरोइन का ड्राइवर रह चुका है. जब से ये ख़बर दुनिया के सामने आई है, छोटे-बड़े हर फ़िल्मी सितारे ने घटना की निंदा की.
सोशल मीडिया पर मां-बहन-बेटियों की हिफ़ाजत करने के लिए अपील जारी किए गए ताकि इस तरह की घटना दोबारा से न हो सके. फ़िल्म उद्योग के भीतर से भी आवाजें उठीं.
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फ़िल्म निर्देशक आशिक अबू ने फेसबुक पर ऐसे डायलॉग न लिखने की अपील की जिनमें महिलाओं की ख़राब छवि पेश की जाती है. उनका कहना है कि सस्ती लोकप्रियता के लिए फ़िल्मों में अश्लील किस्म की मर्दानगी दिखाई जाती है और इससे बचना फ़िल्म उद्योग के लिए बेहतर होगा.
महिला अधिकार
प्रतिष्ठित निर्देशक श्यामा प्रसाद ने भी फ़िल्म उद्योग के पितृसत्तात्मक मूल्यों की जमकर आलोचना की. मलयालम सिनेमा से जुड़े कलाकारों के एसोसिएशन ने कोच्चि और त्रिवेंद्रम में दो दिन के विरोध प्रदर्शन के बाद एक 'फौरी समाधान' पेश किया.
एसोसिएशन का सुझाव है कि महिला कलाकार अकेले सफर न करें, चाहे वो दिन हो या रात. हालांकि महिला अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों को ये सुझाव ज्यादा पसंद नहीं आया.
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उनकी दलील है कि ये फिल्मी कलाकारों के असोसिएशन का ये रवैया कोई हल नहीं बल्कि समस्या का एक हिस्सा है.
स्वास्थ्य और शिक्षा
महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली बिंदु मेनन का मानना है, "हिंसा की ये घटनाएं महिलाओं के ख़िलाफ़ घर में, सार्वजनिक जगहों पर और कामकाज के स्थान पर बने माहौल को दिखलाती हैं." बिंदु का कहना है कि मलयालम सिनेमा में ये अतीत में भी ऐसी घटानाएं होती रही हैं.
मलयालम सिनेमा की पहली अभिनेत्री पीके रोज़ी को इसलिए निशाना बनाया गया था कि उन्होंने फिल्मों में जगह बनाने के लिए औरतों और जातियों के लिए बनाए गए नियम-कायदों को तोड़ा था.
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केरल में महिलाओं के स्वास्थ्य और उनकी शिक्षा के बारे में जो कुछ भी बताया जाता है, वो अक्सर भ्रामक ही होता है. भले ही केरल से जुड़े आंकड़े ख़ूबसूरत तस्वीर पेश करते हैं, लेकिन ये समझा जाना चाहिए कि मलयाली समाज के हर तबके में महिलाओं के ख़िलाफ़ भेदभाव काबू से बाहर है.
ईश्वर के अपने देश में महिलाओं की गतिविधियों पर रोकथाम लगाना कोई अपवाद नहीं है. ये यहां का चलन है.
पितृसत्तात्मक रवैया
राज्य की प्रशासनिक मशीनरी भी इस पितृसत्तात्मक रवैये से ख़ुद को बचा नहीं सकी है. अतीत में केरल में ऐसी कई घटनाएं होती रही हैं जहां पुलिस और प्रशासन को नैतिकता की पहरेदारी करते देखा गया है.
या तो पुलिस ने ख़लनायक की भूमिका अदा की या फिर चुपचाप खामोश बैठकर तमाशा देखती रही. पिछले तीन महीने में केरल में मोरल पुलिसिंग के कम से कम आठ मामले प्रकाश में आए हैं.
यहां तक कि महिलाओं की रक्षा के लिए गठित की गई 'पिंक पुलिस' का रवैया भी वैसा ही रहा जैसा पहले होता आया था. दो घटनाओं में महिला पुलिस को ही मोरल पुलिसिंग करते पाया गया.
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अकादमिक जगत भी इसके ख़िलाफ़ आवाज उठाता रहा है. देश के इस सबसे विकसित राज्यों में से एक में पितृसत्तात्मकता के खिलाफ आवाज़ें उठी हैं.
केरल के शिक्षा मंत्री को लिखी चिट्ठी में विद्वानों ने कहा, "केरल को एक ऐसे राज्य के तौर माना जाता है जहां महिलाओं ने बहुत कुछ हासिल किया है. सामाजिक विकास के हर पैमाने पर इसकी तस्दीक होती है. महिलाओं के ख़िलाफ़ जिस तरह का माहौल बन रहा है, वह चिंताजनक है. एक नागरिक के तौर पर महिलाओं से उनके हक छीने जा रहे हैं."
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