ब्लॉग: शराब और सिगार से लुभाया जाता था अमरीकी वोटर को
- राजेश जोशी
- रेडियो संपादक, बीबीसी हिंदी
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नंदमूरि तारक रामाराव, चंद्रबाबू नायडू, जे जयललिता, ममता बनर्जी या फिर अब अखिलेश यादव अपने वोटरों को मुफ़्त की सौग़ात लुटाकर लुभाने के लिए नाहक ही बदनाम हुए.
इतिहासकार कहते हैं कि अमरीका के पहले राष्ट्रपति जॉर्ज वॉशिंगटन भी वोटरों की मिज़ाजपुर्सी को ग़लत नहीं समझते थे.
वोटरों को लुभाने के लिए उन पर माल-असबाब लुटाने की परंपरा आज की नहीं है, इसकी जड़ें दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश अमरीका में गहरी गड़ी हैं.
अठारहवीं शताब्दी में जब चुनाव में कुछ अभिजात्य और पैसे वाले लोग खड़े होते थे तब अमरीका में वोटरों को वोट देने के बाद खुलेआम सिगार या व्हिस्की पिलाना या फिर केक आदी का जलपान कराना आम बात थी.
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पर्दे के पीछे दबे छिपे क्या-क्या होता होगा इसका सिर्फ़ अंदाज़ा ही लगाया जा सकता है.
पर्दे के आगे और पर्दे के पीछे
जैसे-जैसे जनतंत्र की जड़ें मज़बूत हुईं और दुनिया भर में फैलीं वैसे-वैसे वोटरों को लुभाने के तौर तरीक़ों को भी एक व्यवस्था और संस्थागत रूप दिया जाने लगा. जो काम पहले खुलेआम किया जाता था अब वो पर्दे के पीछे होने लगा.
अब हाल ये है कि भारत में मतदान से पहली रात जगह-जगह छापे मारकर पुलिस भारी मात्रा में शराब बरामद करती है और चुनावों के दौरान मतदाताओं से बार-बार नैतिकता में पगी अपील की जाती है कि उम्मीदवारों से शराब और पैसा मत लेना क्योंकि इससे जनतंत्र की बुनियाद कमज़ोर होती है.
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दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल अपवाद हैं (वो वैसे भी अपवाद ही हैं) जो अपने वोटरों से कहते हैं कि कांग्रेस-बीजेपी-अकाली दल वाले पैसा लेकर आएँ तो ले लेना, मना मत करना पर वोट आम आदमी पार्टी को ही देना.
घोषणापत्र और आत्मविश्वास
केजरीवाल प्रैक्टिकल आदर्शवादी हैं. पर उन्होंने अब तक वोटरों को आधे दाम में बिजली और मुफ़्त पानी देने का वादा तो किया (और निभाया भी) पर मिक्सी, रंगीन टीवी, मोबाइल फ़ोन या लैपटॉप का लालच नहीं दिया.
पर ये भारत में राजनीतिक पार्टियों में आए नए आत्मविश्वास का ही सबूत है कि वो अब अपने घोषणापत्रों में ऐलान करने लगी हैं कि चुनाव जीतने पर कौन-कौन सा इलेक्ट्रॉनिक सामान अपने वोटरों को बाँटेंगी.
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एनटी रामाराव के ज़माने में बात रुपए दो रुपए किलो चावल से आगे नहीं बढ़ती थी पर अब वो स्मार्टफ़ोन तक जा पहुँची है.
कभी साड़ी कभी मंगलसूत्र
मई 2016 के विधानसभा चुनावों के दौरान तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता ने जब महिलाओं को मंगलसूत्र के लिए आठ ग्राम सोना और स्कूटी पर पचास फ़ीसदी सब्सिडी देने का वादा किया तो भारतीय जनता पार्टी के नेता राजनाथ सिंह को बहुत अफ़सोस हुआ.
उन्होंने कहा, "मुफ़्त सौग़ात लुटाने की ये संस्कृति कब तक जारी रहेगी?"
पर राजनाथ सिंह भूल गए कि 2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी के चुनाव क्षेत्र लखनऊ में भारतीय जनता पार्टी नेता लालजी टंडन ने ग़रीब महिलाओं में साड़ी बाँटने का आयोजन किया जिसमें भगदड़ मच गई. रिपोर्टों के मुताबिक़ इस हादसे में 21 महिलाएँ और बच्चे मारे गए.
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तमिलनाडु की दो बड़ी राजनीतिक पार्टियों- द्रविड़ मुनेत्र कषगम और अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम ने 2006 और 2011 के विधानसभा चुनावों में वोटरों को सौग़ात देने के जो वादे किए उनसे व्यथित होकर सुब्रह्मण्यम बालाजी नाम के एक नागरिक ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया.
भ्रष्टाचार क़ानून के हिसाब से
मगर सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला दिया कि वोटरों को राजनीतिक पार्टियों की ओर से मुफ़्त तोहफ़े देने को भ्रष्टाचार नहीं कहा जा सकता, हालाँकि उसने चुनाव आयोग को इस सिलसिले में दिशा निर्देश जारी करने का हुक्म ज़रूर दिया.
क़ानून के हिसाब से समझें तो भ्रष्टाचार तभी साबित होता है जब रिश्वत लेने वाला बदले में रिश्वत खिलाने वाले का काम कर दे. इसे अँग्रेज़ी में क्विड-प्रो-को कहा जाता है यानी पैसे के बदले काम करना.
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वोट हासिल करने के लिए वोटरों को कलर टीवी या मिक्सी देने का वादा करना भ्रष्टाचार की श्रेणी में नहीं आता. भारतीय राजनीतिक पार्टियाँ मुफ़्त सामान बाँटकर चुनाव जीत ले जाती हैं पर अमरीका में चुनौती दूसरी है.
अमरीकी चुनौती
वहाँ मतदाताओं को मतदान केंद्र तक खींच लाना ही बड़ी समस्या हो गई है. इस बार के राष्ट्रपति चुनाव में सौ में से 58 अमरीकी मतदाताओं ने वोट डाले और इनके भी चौथाई वोट पाकर डोनल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बन गए.
ये चुनौती सिर्फ़ राष्ट्रपति चुनावों में ही नहीं बल्कि स्थानीय चुनावों में भी सामने आती है.इसीलिए वोटरों को रिझाने के लिए अक्तूबर 2015 में फ़िलाडेल्फ़िया सिटीज़न नाम की पत्रिका ने एक निराला अभियान शुरू किया.
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फ़िलाडेल्फ़िया शहर के स्थानीय निकाय चुनावों के दौरान पत्रिका ने ऐलान किया कि वोट दे चुके रजिस्टर्ड मतदाताओं में से किसी एक को लॉटरी के ज़रिए दस हज़ार डॉलर का इनाम दिया जाएगा.
इधर, भारत में उड़ीसा में स्थानीय निकाय के चुनावों में कुछ साल पहले पंचायती चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों ने मतदाताओं को वोट देने के बाद मुफ़्त चाय पिलाने और पान खिलाने का इंतज़ाम किया था.
अब अमरीका हर मामले में हिंदुस्तान से बाज़ी तो नहीं मार सकता.
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