ELECTION SPECIAL: मणिपुर में दूसरे चरण के चुनाव के चार अहम चेहरे
पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर की 22 सीटों पर चुनाव के लिए बुधवार को वोट डाले जा रहे हैं
सूबे में मतदान दो चरणों में हो रहा है. पहला चरण चार मार्च को हुआ था जिसमें 86.5 फ़ीसद वोट पड़े थे.
दूसरे और आख़िरी चरण के मतदान में जो अहम उम्मीदवार हैं उनमें सबसे पहला नाम तो मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह हैं.
भाजपा का दावा, मणिपुर होगा 'कांग्रेस मुक्त'
ओकराम इबोबी सिंह
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार इबोबी सिंह कहते हैं, "ये न तो असम है और न अरुणाचल. ये मणिपुर है और मैं फिर से वापस आऊंगा."
इबोबी का ये भरोसा या बड़बोलापल जैसा कुछ लोग कह रहे हैं, शायद इस वजह से हो कि पिछले 15 सालों में कांग्रेस पार्टी के शीला दीक्षित से लेकर, असम के तरुण गोगोइ तक ने विरोधियों के हाथों पटखनी खाई लेकिन इबोबी सिंह अपनी जगह बने हुए हैं.
मणिपुर: क्या बीजेपी तोड़ पाएगी इबोबी का वर्चस्व
2014 लोकसभा चुनाव में जब मोदी लहर हर तरफ़ बह रही थी मणिपुर की दोनों लोकसभा सीटें कांग्रेस के पाले में गईं.
हालांकि 15 साल के लंबे कांग्रेस शासन ने सत्ता विरोधी भावना को जन्म तो ज़रूर दिया है. लेकिन आर्थिक नाकेबंदी और मोदी सरकार की नगालैंड के समूह एनएससीएन (आईएम) के साथ समझौते ने वोटरों के मन में सूबे की टूट की संभावना को लेकर संदेह भर दिया है.
इबोबी सिंह के थौबाल चुनाव क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं और उनके विरोध में हैं भारतीय जनता पार्टी के बसंत सिंह और पीआरजेए की इरोम शर्मीला.
इरोम शर्मिला
इरोम शर्मिला ने जब अपनी 16 साल लंबी भूख हड़ताल तोड़ने के बाद राजनीतिक दल बनाने का ऐलान किया तो साथ-साथ ये भी कहा कि वो मुख्यमंत्री बनना चाहती हैं.
हो सकता है उनके मन में अरविंद केजरीवाल रहे हों जो सामाजिक कार्यों से राजनीति में आए, दल बनाया और दिल्ली की जनता के ज़ोरदार वोटों के बल पर मुख्यमंत्री बने.
उस क़ैद से आज़ाद हो पाएँगी इरोम शर्मिला ?
मैं अच्छी भी हूँ, बुरी भी : इरोम शर्मिला
हालांकि इरोम मानती हैं कि वो केजरीवाल का आदर करती हैं लेकिन उसी क़िस्से को यहां दोहराने की कोशिश के सवाल पर बस नो कमेंट कहकर रह जाती हैं.
मगर कुछ केजरीवाल के अंदाज़ में ही उन्होंने मणिपुर की सबसे कठिन सीट अपने लिए चुनी - थौबाल, जहां उनका सामना तीन बार सूबे के मुख्यमंत्री रह चुके ओकराम इबोबी सिंह से है.
इरोम के दल- पीपल्स रिसर्जेंस एंड जस्टिस एलायंस ने दो और उम्मीदवार इस बार चुनावी मैदान में उतारे हैं.
लेकिन गणित के हिसाब से सत्ता का गलियारा उनसे दूर ही दिखता है.
एम गैखनगम
एम गैखनगम प्रदेश के उप मुख्यमंत्री हैं. उन पर चुनाव प्रचार के दौरान ही एक उग्रवादी समूह की ओर से हमला हुआ लेकिन कुछ देर की रुकावट के बाद ही गैखनगम रैली में पहुंच गए और सभा को संबोधित किया.
पुलिस का कहना था कि उग्रवादियों ने सूबे के उप-मुख्यमंत्री के क़ाफ़िले पर दो जगहों पर हमला किया था.
वो सूबे के गृह मंत्री भी हैं और नुंगबा चुनाव क्षेत्र से फिर से क़िस्मत आज़मा रहे हैं. उनका ताल्लुक़ रोंगमइ समुदाय से है.
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टीएन हाओकिप
पांच बार लगातार साएकोट से विधायक रह चुके हाओकिप इस बार फिर से मैदान में हैं. पिछले लगभग साल भर से वो प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी हैं तो ज़ाहिर है कि उनकी ज़िम्मेदारी भी दोहरी बनती है.
सोमवार को उन्होंने दावा किया है कि कांग्रेस अपने काम के बलबूते फिर से सरकार में आएगी.
लेकिन इस बार भारतीय जनता पार्टी ने सूबे में पैठ बनाने के लिए पूरा ज़ोर लगा रखा है. उसे लग रहा है कि असम के बाद पर्वोत्तर में घुसने का ये एक और रास्ता हो सकता है.
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