ब्लॉग: फ़िल्मी गानों में 'गंदी' नहीं, कैसे होगी 'अच्छी बात'

क़ानून की नज़र में ऐसा करना 'सेक्शुअल हैरेसमेंट' है पर आगे की लाइनें ज़रा धुन में गुनगुनाते हुए पढ़ेंगे तो समझ जाएंगे कि ये बॉलीवुड का एक मशहूर गाना है!
'खाली पीली खाली पीली रोकने का नहीं, तेरा पीछा करूं तो टोकने का नहीं
है तुझपे राइट मेरा, तू है डिलाइट मेरा
तेरा रस्ता जो रोकूं चौंकने का नहीं
तेरे डॉगी को मुझपे भौंकने का नहीं, तेरा पीछा करूं तो टोकने का नहीं...'
खुद ही सोचिए कोई बिना बात रोके, पीछा करे, ये जताए कि उसका आप पर अधिकार है, और आपको उसे रोकने या मना करने का हक़ भी नहीं है!
ये छेड़छाड़ और बदतमीज़ी नहीं तो क्या है?
बस यही जताने के लिए और बॉलीवुड के ऐसे गानों में औरतों को बराबरी का दर्जा देने के लिए एक मुहिम चली - #GaanaRewrite - यानी गानों को उन्हीं धुनों पर दोबारा लिखने की कोशिश.
इसी कोशिश में ऊपरवाला गाना दोबारा लिखा गया. आगे पढ़ें, फिर उसी गुनगुनाने के अंदाज़ में.
'मैं चाहती थी कि मेरा बच्चा जल्दी मर जाए'
वो बातें जो सेक्स एजुकेशन के बारे में सिखाई जानी चाहिए
'खाली पीली खाली पीली रोकने का नहीं, मेरा पीछा करेगा सोचने का नहीं
तुझे रिजेक्ट करना, है ये राइट मेरा
तेरा एफ़आइआर करूं तो चौंकने का नहीं
बन डॉगी, पीछे पीछे भौंकने का नहीं, मेरा पीछा करेगा सोचने का नहीं...'
ऐसे क्यों नहीं लिखते? है ना मज़ेदार? आंख-कान-दिमाग सब खोलता है.
दरअसल बॉलीवुड के ऐसे गाने लचकदार धुनों और मज़ेदार ताल पर बैठाए जाते हैं कि शायद कई लोगों का ध्यान उनके शब्दों से हटकर उनपर थिरकने में ही लग जाता है.
पर लय-ताल के धोखे में हम आप कैसी-कैसी बातों को गाते-दोहराते हैं. एक और उदाहरण देखिए. गुनगुनाते हुए पढ़िए और याद कीजिए कि कितनी शादी-पार्टियों में इसे सुना है.
महिलाओं को 'हनी' या 'बेबी' बुलाना कितना सही
'बीड़ी पीके नुक्कड़ पे वेट तेरा किया रे
खाली पीली अट्ठारह कप चाय भी तो पिया रे
ए बी सी डी पढ़ ली बहुत, ठंडी आहें भर ली बहुत
अच्छी बातें कर ली बहुत
अब करूंगा तेरे साथ, गंदी बात, गंदी बात...'
ये तो सीधे-सीधे यौन हिंसा की धमकी है. मानो कहा जा रहा हो कि अगर कोई लड़की दिलचस्पी ना ले तो उसके साथ गंदी बात यानी यौन संबंध बनाना चाहिए.
पर अगर उस लड़की के दिलचस्पी ना लेने यानी मना करने के बावजूद, संबंध बनाने की बात हो तो फिर वो बलात्कार ही कहलाएगा.
...तो नपुंसकता की असली वजह कुछ और है!
किराए पर घर लेकर वेश्यालय बना दिया
तो औरतों के अधिकारों के लिए काम कर रही संस्था 'अक्षरा' की मुहिम - #GaanaRewrite - के तहत इसे भी दोबारा लिखा गया.
ज़रा पढ़िए तो. अच्छा है. शब्द अलग हैं, पर धुन वही. आप फिर थिरक उठेंगे.
'बीड़ी पीके नुक्कड़ पे वेट क्यों किया रे
खाली पीली अट्ठारह कप चाय भी क्यों पिया रे
ए बी सी डी पढ़ो ना पढ़ो, अच्छी बातें करो ना करो
ख़बरदार जो करी कोई, गंदी बात, गंदी बात...'
ऐसे क्यों नहीं लिखते? बॉलीवुड बदले या ना बदले, ऐसे लिखे या ना लिखे, आप लिख डालिए. ऐसे गानों की कमी नहीं, बस व़क्त कीमती है. तो व़क्त निकालिए और हमारे फ़ेसबुक पन्ने पर लिख भेजिए.
क्योंकि क्या है न कि साल 2013 में जब औरतों के ख़िलाफ़ हिंसा से जुड़े क़ानून कड़े किए गए, तो उसके बाद अक़्सर सुनने को मिल जाता है कि, "अब तो औरतों के मज़े हैं, क्योंकि अपराधों की परिभाषा बढ़ाकर सज़ा बेहद कड़ी कर दी गई है".
पर औरतों के मज़े यानी ज़िंदगी बेहतर हो कैसे जब क़ानून एक बात कहे और हम, बेध्यानी में सही, शायद अनजाने में ही, एकदम उलट? तो कोशिश कर कह दीजिए अच्छी बात.
(ये लेखिका के निजी विचार हैं)
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