'मानव ढाल' वाले वीडियो पर कश्मीरी मीडिया में ग़ुस्सा
- शाइस्ता फ़ारुक़ी और श्रुति अरोड़ा
- बीबीसी मॉनिटरिंग
भारत प्रशासित कश्मीर में सेना की ओर से कथित रूप से एक कश्मीरी नौजवान को मानव ढाल की तरह इस्तेमाल करने का वीडियो सामने आने पर भारत प्रशासित कश्मीर के अख़बारों ने गुस्सा ज़ाहिर किया है.
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कुछ अख़बारों ने छात्रों और पुलिस के बीच हुई भिड़ंत पर सरकार के रुख़ की भी आलोचना की है.
मानव ढाल का वीडियो एक अन्य वीडियो के बाद आया, जिसमें एक भारतीय सेना के जवान को स्थानीय लोग कथित तौर पर पीटते हुए दिख रहे हैं.
अख़बारों ने लिखा है कि भारत की मुख्य धारा की मीडिया ने सेना और अर्द्धसैनिक बलों द्वारा कश्मीरी नौजवान को कथित रूप से पिटाई करते हुए वीडियो की तुलना में इस जवान के वीडियो को राष्ट्रीय स्तर पर प्रमुखता दी.
घाटी में नौ अप्रैल को हुए उपचुनावों में आठ कश्मीरियों के मारे जाने के बाद स्थिति और तनावपूर्ण बनी हुई है.
18 अप्रैल को भारत प्रशासित कश्मीर के उर्दू और अंग्रेज़ी दैनिकों ने अपने संपादकीय में सरकारी रवैए की खासी आलोचना की है.
सोशल मीडिया पर लीक हुआ वीडियो
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मानव ढाल के रूप में इस्तेमाल किया गए फ़ारुक़ डार
कश्मीर ऑब्जर्वर ने लिखा है, "पिछले कई दिनों से सोशल मीडिया पर कई वीडियो वायरल हुए हैं. सेना के जवान की पिटाई ने एक तरफ बाकी भारत में काफी आक्रोश पैदा किया लेकिन सेना द्वारा ज़रूरत से ज़्यादा ताक़त इस्तेमाल करने वाले वीडियो ने कश्मीर में गुस्सा पैदा किया है. इन वीडियोज़ के आने के बाद घाटी में सुरक्षा व्यवस्था के सामने नई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं."
इस अंग्रेज़ी अख़बार ने लिखा है, "कैमरा और वीडियो से लैस एंड्रायड फ़ोन ने सुरक्षा अभियानों को रिकॉर्ड करने और सोशल मीडिया पर अपलोड करने की लोगों को नई ताक़त दी है. ये वीडियो कश्मीर की चिंताजनक सच्चाई को सामने लाते हैं."
कश्मीर उज़्मा ने इन वीडियोज़ पर चुप्पी की निंदा की है और इसे मानवाधिकार का सीधा सीधा उल्लंघन कहा है.
'मानव ढाल' के पहले भी मामले
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इस उर्दू अख़बार ने लिखा है, "कश्मीर के हालात बताते हैं कि संबंधित अधिकारी और सरकार उन सिफ़ारिशों को अमल करने के मूड में नहीं है जो हालात को सुधारने के लिए राजनीतिज्ञों ने सुझाए थे."
एक अन्य उर्दू अख़बार रोशनी ने इस बात का ज़िक्र किया है कि 'मानव ढाल' के मामले पहले भी हुए हैं.
अख़बार ने लिखा है, "1990 के बाद से सैन्य उत्पीड़न की कई घटनाएं घटी हैं लेकिन अभी तक किसी भी मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई है. सेना द्वारा क़ानून के उल्लंघन और अधिकार के ग़लत इस्तेमाल की स्थिति में सबकुछ संभव होता है."
अंग्रेज़ी दैनिक कश्मीर टाइम्स ने लिखा है, "जम्मू कश्मीर की सत्तारूढ़ पीडीपी और बीजेपी गठबंधन सरकार इस ज़िम्मेदारी से बच नहीं सकती क्योंकि उसने भी कश्मीरी लोगों में अलगाव और गुस्से के बढ़े हुए स्तर में बड़ी भूमिका निभाई है."
हिंसा की नई लहर
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उर्दू दैनिक छत्तां ने लिखा है, "कश्मीर में हालात गंभीर हैं और इसने दिल्ली के राजनीतिक और सैन्य गलियारों में चिंता की लहर पैदा की है. ऐसे हालात को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. मुख्यमंत्री ने स्वीकार किया है कि बिना कारण कई लोग मारे गए हैं. लेकिन इसे लेकर कुछ नहीं किया गया. इसकी वजह से घाटी में हिंसा की नई लहर उठ रही है."
अंग्रेज़ी अख़बार राइजिंग कश्मीर ने लिखा है, "घाटी में बदले माहौल के मद्देनज़र ऐसा नहीं लगता कि प्रदर्शन कोई अलग थलग घटना हैं. अलगाव की भावना इस समय सबसे अधिक है. बातचीत के मौके बहुत सिकुड़ चुके हैं और ऐसे वक़्त में असंतोष विरोध प्रदर्शनों की ओर मुड़ गया है. ऐसी स्थिति में हिंसा से नहीं बचा जा सकता."
कार्रवाई क्यों नहीं हुई
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अंग्रेज़ी अख़बार कश्मीर मॉनिटर ने लिखा है, "पहले एक वीडियो आया जिसमें बडगाम के स्थानीय नौजवान सीआरपीएफ़ के नौजवान को पीटते दिख रहे हैं, इसने बाकी भारत में काफ़ी हंगामा पैदा किया. टीवी पर इसे प्रमुखता से दिखाया गया. हालांकि उन जवानों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई जो पीटने और लोगों को मानव ढाल की तरह इस्तेमाल करने में शामिल थे."
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