अब तक बचते रहे रजनीकांत राजनीतिक मैदान में कूदे

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आख़िरकार जिसका इंतज़ार किया जा रहा था, उसकी घोषणा रजनीकांत ने साल के अंतिम दिन कर दी.
चेन्नई में अपने फैंस के सामने उन्होंने कहा है कि वे कायर नहीं हैं, लिहाजा राजनीति के मैदान में उतरेंगे. उन्होंने नई राजनीतिक पार्टी बनाने की घोषणा कर दी.
पिछले कुछ समय से उनके राजनीति में आने को लेकर चर्चाओं का दौर तेज़ हुआ था. अब देखना है कि वो राजनीति में क्या करिश्मा दिखा पाते हैं.
तमिलनाडु के लोग उन्हें दीवानगी में 'थलाइवा' कहते हैं. यह 'थलाइवर' से बना है, जिसका अर्थ है, 'लीडर या बॉस.'
लेकिन ऐसा नहीं है कि दक्षिण भारत का सबसे लोकप्रिय फिल्मी सितारा पहली बार राजनीतिक बातें कर रहा है. यह सही है कि रजनीकांत ने कभी चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन वह कभी सियासत से दूर भी नहीं रहे. जब भी चुनाव आते हैं, उनके लाखों दीवाने फैन इंतज़ार करते हैं कि वे किसको समर्थन देने का ऐलान करेंगे.
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रजनीकांत सियासत, उसकी गुटबाज़ियों और समर्थन-विरोध के खेल से अछूते नहीं रहे हैं. उनके राजनीतिक कनेक्शन की कुछ मिसालें देखिए-
1. जयललिता को चुनाव हरवा दिया?
नब्बे के दशक में रजनीकांत को मेगा-कामयाबी दो फ़िल्मों से मिली थी, 'अन्नामलाई' और 'बाशा'. 1995 में जब 'बाशा' फ़िल्म ब्लॉकबस्टर हो गई तो सार्वजनिक जीवन में उनकी हैसियत और लोकप्रियता तेज़ी से बढ़ी. इसी दौर में जयललिता सरकार (1991-96) से उनकी तनातनी की कहानियां भी चलीं.
पहला बड़ा राजनीतिक रुझान दिखाते हुए रजनीकांत ने 1996 के विधानसभा चुनावों में तमिल मनीला कांग्रेस (TMC) के नेता जीके मूपनार का समर्थन कर दिया. एक टीवी इंटरव्यू में उन्होंने कहा, 'अगर जयललिता दोबारा जीतकर आईं तो तमिलनाडु को भगवान भी नहीं बचा पाएंगे.'
नतीजे आए तो डीएमके-टीएमसी गठबंधन को ज़बरदस्त बहुमत मिला. जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके चार सीटों पर सिमट गई और जयललिता ख़ुद अपनी सीट नहीं बचा पाईं.
2. कावेरी जल विवाद पर अनशन
2002 में रजनीकांत ने कावेरी जल मुद्दे पर राजनीतिक बयान दिए, विरोध प्रदर्शन किया. कर्नाटक सरकार से सुप्रीम कोर्ट का आदेश मानने की मांग करते हुए उन्होंने 9 घंटे अनशन रखा. इस अनशन में विपक्ष के कई नेता और तमिल फिल्म इंडस्ट्री के बड़े लोग उनके पीछे खड़े हुए.
इसके बाद रजनीकांत ने उस वक़्त के राज्यपाल पीएस राममोहन राव को एक ज्ञापन दिया. 'द हिंदू' में छपी एक ख़बर के मुताबिक, इसमें लिखा था, 'यह कर्नाटक सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह सुप्रीम कोर्ट का आदेश माने. और यह केंद्र सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह देखे कि कर्नाटक सरकार इसका पालन कर रही है या नहीं.'
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रजनीकांत ने रिपोर्टरों से कहा कि ज़रूरत पड़ी तो वह प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और कन्नड़ फिल्म इंडस्ट्री के लोगों से भी बात करेंगे. पूरे अनशन के दौरान रजनीकांत समर्थक फिल्म डायरेक्टर भट्टीराजा के ख़िलाफ़ नारे लगाते रहे, जिन्होंने एक दिन पहले 'बाहरी' रजनीकांत पर तमिल एकता को खंडित करने की कोशिशें करने का आरोप लगाया था.
3. जयललिता से दोस्ती की कोशिश
हालांकि 2004 में रजनीकांत ने जयललिता से रिश्ते सामान्य करने की कोशिश की. जयललिता तब तक एक स्थायी ताक़त बन चुकी थीं और उनकी अनदेखी करना संभव नहीं था. नवंबर 2004 में रजनीकांत ने अपनी बेटी ऐश्वर्या की शादी में जयललिता को बुलाया. जयललिता पहुंचीं भी, लेकिन दोस्ती इससे आगे नहीं बढ़ी.
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2016 में जयललिता की मौत के बाद रजनीकांत ने कहा, 'मुझे लगा था कि न्योता सिर्फ औपचारिकता है और वह नहीं आएंगी. लेकिन उन्होंने कहा कि इसी दिन उनकी पार्टी के एक कार्यकर्ता के परिवार में भी शादी है, लेकिन उसे छोड़कर वह ऐश्वर्या की शादी में ज़रूर आएंगी. सुनहरे दिल वाली वह महिला अब हमारे बीच नहीं है.'
4. 'किसे वोट दे रहे थे' का विवाद
2011 विधानसभा चुनाव में जब रजनीकांत वोट डालने पहुंचे तो वहां टीवी कैमरे भी मौजूद थे. वीडियो में दिखा कि EVM पर उनकी उंगलियां एआईएडीएमके के चुनाव निशान दो पत्तियों के इर्द-गिर्द थीं.
इसके कुछ घंटे बाद रजनीकांत डीएमके चीफ करुणानिधि के साथ एक फिल्म की स्क्रीनिंग के मौके पर बैठे थे.
बाद में करुणानिधि की तरफ से सफाई आई कि रजनीकांत कैमरे के लिए पोज कर रहे थे और इस दौरान उनकी उंगली जहां थी, उससे ये साबित नहीं होता कि उन्होंने जयललिता को ही वोट किया है.
5. ख़ुद को बताया मोदी का शुभचिंतक
नरेंद्र मोदी जब 2014 चुनाव से पहले प्रचार पर निकले तो चेन्नई में रजनीकांत से भी मिले. मोदी ने उन्हें अपना अच्छा दोस्त और रजनी ने ख़ुद को मोदी का शुभचिंतक बताया.
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रजनीकांत ने कहा, 'सब जानते हैं कि मिस्टर मोदी एक मजबूत नेता और क़ाबिल एडमिनिस्ट्रेटर हैं. वो जो हासिल करना चाहते हैं, मैं उन्हें कामयाबी की शुभकामनाएं देता हूं.' रजनीकांत जिस इकलौते नेता को ट्विटर पर फॉलो करते हैं वे मोदी ही हैं.
6. जयललिता का स्वागत
अक्टूबर 2014 में जब जयललिता जेल से छूटकर आईं तो रजनीकांत ने एक चिट्ठी भेजकर उनका स्वागत किया.
इसमें लिखा था, 'पोएस गार्डन में आपकी वापसी से मैं बहुत खुश हूं. आपके अच्छे वक़्त की दुआ करता हूं और आपको अच्छी सेहत और शांति की शुभकामनाएं देता हूं.'
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7. समर्थन की सुगबुगाहट
मार्च 2017 में आरके नगर में उपचुनाव था. ट्विटर पर तस्वीरें चलीं जिसमें रजनीकांत अपने दोस्त और भाजपा प्रत्याशी गंगई अमारन से मिले थे.
गंगई अमारन के बेटे वेंकट प्रभु ने ट्वीट करके लिखा कि थलाइवा ने मेरे पिताजी को आशीर्वाद दिया है.
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उधर एआएडीएमके के शशिकला और पनीरसेल्वम गुटों में भी चुनाव निशान के चक्कर में तनातनी चल रही थी. सबको इंतज़ार था कि रजनीकांत किसे समर्थन दे रहे हैं.
फिर 23 मार्च को उन्होंने ट्वीट किया, 'आने वाले चुनाव में मेरा समर्थन किसी को नहीं है.'
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