'इस रॉकेट से अंतरिक्ष में यात्री भेजेगा भारत'

  • पल्लव बागला
  • विज्ञान पत्रकार
जीएसएलवी मार्क - 3 डी 1

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भारत के GSLV मार्क-III-D1 रॉकेट का श्रीहरिकोटा से सफल प्रक्षेपण किया गया.

इससे ये साफ़ हो गया है कि निकट भविष्य में भारत अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने में सक्षम होगा.

इसलिए क्योंकि यही रॉकेट भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर जाएगा. भारत के भविष्य के अंतरिक्ष यात्री को 'गैगानॉट्स या व्योमैनॉट्स' का नाम भी दिया गया है.

भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों स्पेस में भेजने के कार्यक्रम के लिए इसरो ने भारत सरकार से 15000 करोड़ रुपये के आवंटन की मांग की है.

फिलहाल भविष्य के अंतरिक्ष यात्रियों के 'स्पेस सूट' तैयार कर लिए गए हैं.

'लिक्विड ऑक्सीजन'

इस रॉकेट की लंबाई 140 फ़ीट है और वज़न 200 हाथियों जितना. यानी 640 टन. इसी लिए इसे 'दानवाकार रॉकेट' की संज्ञा दी गई है.

भारत को अभी तक 2300 किलोग्राम से ज़्यादा के वजन वाले संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण लिए दूसरे देशों पर निर्भर रहना पड़ता था.

इस सैटेलाइट को तैयार करने में 'इंडियन स्पेस रिसर्च आर्गेनाईजेशन' यानी इसरो के अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को 15 साल लगे जिसमे भारत में ही विकसित किया गया क्रायोजेनिक इंजन लगाया गया है.

इस इंजन के लिए 'लिक्विड ऑक्सीजन' और 'हाइड्रोजन' को ईंधन के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है.

इस विशालकाय रॉकेट का यात्री भी एक विशालकाय संचार उपग्रह 'जीसैट-19' है. इस संचार उपग्रह का वज़न भी 3136 किलोग्राम है.

इस उपग्रह को अहमदाबाद स्थित 'स्पेस एप्लीकेशन सेंटर' यानी एसएसी में निर्मित किया गया है. यानी भारी भरकम टैक्सी का भारी भरकम पैसेंजर.

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डिजिटल इंडिया

स्पेस ऐप्लिकेशन सेंटर के निदेशक तपन मिश्रा का कहना है, 'सही मायने में यह 'मेड इन इंडिया' उपग्रह डिजिटल इंडिया को सशक्त करेगा.'

इस रॉकेट का निर्माण भी विदेशों की तुलना में काफ़ी किफायती रहा है.

'GSLV मार्क-III-D1', 4000 किलोग्राम तक के पेलोड को लेकर जियोसिंक्रोनस ट्रांसफर ऑर्बिट (भूतुल्यकालिक अंतरण कक्षा) तक ले जाने और 10 हजार किलो तक के 'पेलोड' को पृथ्वी की निचली कक्षा में पहुंचाने की ताक़त रखता है.

(बीबीसी संवाददाता सलमान रावी से बातचीत पर आधारित)

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