नज़रिया- सवाल बंद करने का नुस्ख़ा है JNU में टैंक
- राजेश प्रियदर्शी
- डिजिटल एडिटर, बीबीसी हिंदी

इमेज स्रोत, facebook
टैंक पूरी दुनिया में दमन के प्रतीक हैं, टैंक से विद्रोह कुचला जाता है, टैंक के गोलों से दुश्मनों को तबाह किया जाता है, टैंक से जीती गई धरती रौंदी जाती है.
टैंक युद्ध क्षेत्रों में तैनात किए जाते हैं, दुनिया के सभ्य देशों में जब टैंक सड़कों पर दिखाई देते हैं तो उस स्थिति को 'गृहयुद्ध' कहा जाता है.
1989 की तिएन आन मन चौराहे की वो तस्वीर आप कैसे भूल सकते हैं जब टैंक के सामने एक छात्र खड़ा था, ज्यादातर लोगों ने टैंक के सामने खड़े बहादुर लड़के को देशभक्त समझा था न कि टैंक पर सवार सैनिक को.
विचारों के क्षेत्र में योगदान करने वाली अग्रणी संस्थानों को थिंक टैंक कहा जाता है, देशभक्ति में विचार का कोई काम नहीं है, वह भावना है. 'थिंकिंग' से सवाल पैदा होते हैं, भक्ति में सवाल की गुंजाइश नहीं है, सवाल बंद करने के लिए टैंक कामयाब नुस्ख़ा है.
ये लेख उन लोगों के लिए नहीं है जो व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट कर चुके हैं, वो तो सोशल मीडिया पर इस प्रस्ताव का ज़ोरदार समर्थन कर ही रहे हैं.
इमेज स्रोत, Getty Images
जेएनयू के वाइस चांसलर एम जगदीश कुमार
कश्मीर में टैंक नहीं था...
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर ने पूरी गंभीरता से कैम्पस में टैंक खड़ा करने का प्रस्ताव रखा है.
उन्होंने करगिल विजय दिवस के मौक़े पर आयोजित कार्यक्रम में दो केंद्रीय मंत्रियों से कहा, "मैं जनरल वीके सिंह और धर्मेंद्र प्रधान जी से अनुरोध करता हूँ कि वे हमें एक टैंक दिलाने में मदद करें जिसे कैम्पस में खड़ा किया जा सके ताकि छात्रों में देशभक्ति की भावना जगे."
कश्मीर में टैंक नहीं था, बख़्तरबंद गाड़ी थी जिस पर एक बेकसूर कश्मीरी नौजवान को बांधा गया था, इसके लिए ज़िम्मेदार मेजर गोगोई की तारीफ़ करने वालों में क्रिकेटर गौतम गंभीर भी थे, वे भी करगिल विजय दिवस के समारोह में जेएनयू में मौजूद थे.
गंभीर ने कहा कि "कुछ चीज़ें ऐसी हैं जिनसे कोई समझौता नहीं हो सकता, उनमें से एक है तिरंगे का सम्मान."
इमेज स्रोत, Twitter
जेएनयू के छात्र
जेएनयू में अब तक तिरंगे के अपमान की कोई घटना नहीं हुई है, लेकिन आभास दिलाया जाता है मानो तिरंगे का अपमान करने वाले ढेर सारे लोग जेएनयू में पढ़ते हैं.
इसी कार्यक्रम में लेखक राजीव मल्होत्रा ने कहा कि ये बहुत ख़ुशी की बात है कि "भारतीय सेना ने जेएनयू को कैप्चर कर लिया है."
लेकिन टीवी बहसों में बड़ी-सी मूँछ के साथ वीर रस का संचार करने वाले रिटायर्ड मेजर जनरल बख्शी ने आगाह किया कि अभी जादवपुर और हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी को 'कैप्चर' किया जाना बाक़ी है.
जेएनयू में लंबी जाँच के बाद आज तक तक पता नहीं चल सका कि भारत विरोधी नारे किसने लगाए, नारे लगाने वाले जेएनयू के छात्र थे भी या नहीं. दिल्ली पुलिस की फोरेंसिक पड़ताल बता चुकी है कि कथित भारत विरोधी नारेबाज़ी के कई वीडियो जो कुछ टीवी चैनलों ने दिखाए गए, वे फर्ज़ी थे.
इमेज स्रोत, Pti
देशभक्ति की राजनीति...
वैसे ही, जैसे इराक़ में 'वेपन ऑफ़ मास डिस्ट्रक्शन' नहीं मिला लेकिन अमरीकी टैंक घुस आए. जेएनयू 'कैप्चर' कर लिया गया है, जीती गई ज़मीन पर टैंक खड़ा करना सही क़दम है, 'दुश्मन' को उसकी हार की याद दिलाते रहने के लिए, अपना दबदबा बनाए रखने के लिए.
हैदराबाद वो यूनिवर्सिटी है जहाँ रोहित वेमुला ने विवश होकर आत्महत्या कर ली, ये वो यूनिर्विसटी है जहाँ के दलित और मुसलमान छात्र अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की देशभक्ति की राजनीति से सहमत नहीं हैं, जादवपुर यूनिवर्सिटी में भी संघ से जुड़े छात्र संगठन को चुनौती मिल रही है.
आरएसएस आज़ादी की लड़ाई में कभी शामिल नहीं रहा, ये बात हर बार उठाई जाती है. उस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े लोगों ने ख़ुद को देशभक्त और अपने सभी विरोधियों को देशद्रोही घोषित करने की लड़ाई का मुख्य मोर्चा जेएनयू में ही खोला था.
बीफ़ केरल में खा सकते हैं यूपी में नहीं
संघ की देशभक्ति
संघ और उससे जुड़े संगठनों को चुनौती देने वाले सभी लोगों को मोटे तौर पर 'देशद्रोही' की श्रेणी में रखा जाता है, फिर इन लोगों को मुसलमान, मुसलमान-परस्त, वामपंथी, बुद्धिजीवी, मानवाधिकारवादी, लिबरल और हिंदू-विरोधी जैसी उप-श्रेणियों में बाँटा जाता है.
जेएनयू को देशद्रोहियों का गढ़ बताते हुए संघ के मुखपत्र पांचजन्य ने कवर स्टोरी लिखी. जेएनयू की सबसे बड़ी ख़ासियत यही है कि वहाँ देश की किसी भी यूनिवर्सिटी के मुक़ाबले, विशेष एडमिशन पॉलिसी की वजह से बड़ी तादाद में दलित, आदिवासी, पिछड़े और लड़कियाँ पढ़ती हैं.
देश के उच्चवर्गीय और उच्चवर्णीय शहरी सवर्ण पुरुषों के एक तबके को संघ की देशभक्ति पसंद आ सकती है लेकिन दलित, आदिवासी, मुसलमान, पिछड़े और हाशिए पर संघर्ष कर रही लड़कियों का एक बड़ा हिस्सा इससे असहमत दिखता है.
इमेज स्रोत, Getty Images
देश की बेहतरीन यूनिवर्सिटी
जेएनयू वही यूनिवर्सिटी है जिसे कुछ ही समय पहले देश की बेहतरीन यूनिवर्सिटी माना गया, उसके बेहतरीन होने के केंद्र में असहमति की संस्कृति है, परस्पर विरोधी विचार हैं, लगातार सवाल करने वाले छात्र और उनके जवाब देने वाले प्रोफ़ेसर हैं.
राजनीति विज्ञान या समाजशास्त्र में डॉक्ट्रेट कर रहे व्यक्ति से उम्मीद की जा रही है कि वह देशभक्ति की राजनीति करने वाली सरकार और उसका समर्थन करने वाले संगठनों के हर क़दम से पूरी तरह सहमत हो, वरना देशभक्तों की सेना के क्रोध का सामना करे.
इस तरह पढ़ाई करने वाले देश के ज्ञान-विज्ञान में जयकारे के अलावा क्या जोड़ेंगे?
'बीजेपी और आरएसस को जेएनयू से समस्या'
किसी भी उच्च शिक्षण संस्थान को देशभक्ति की सैनिक विचार प्रणाली के अनुरूप चलाना देशघाती होगा, दुनिया भर के उच्च शिक्षण संस्थानों में भारतीय विद्वानों की धाक है, लेकिन भारत की यूनिवर्सिटियों की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कोई प्रतिष्ठा नहीं है, ऐसी हालत में गिने-चुने संस्थानों में टैंक खड़ा करना कितना मददगार होगा, ये गंभीरता से सोचने की बात है.
असहमति और भक्ति का सह-अस्तित्व संभव नहीं है. यूनिवर्सिटियाँ या तो ज्ञानवादी हो सकती हैं या देशभक्त. जेएनयू में देशभक्ति के अभियान का राजनीतिक अर्थ यही है कि संघ से असहमत विचारों को देशद्रोही घोषित करना और उसके बाद दमन के प्रतीक टैंक की नुमाइश करना.
इमेज स्रोत, AFP/Getty Images
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)