#BadTouch: 'पता नहीं बच्ची ने कब तक सहा होगा...'

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हम पर जो गुजरती है, वो हमें हमेशा याद रह जाता है. लेकिन कई बार ऐसा भी होता है जब हम दूसरों के साथ हुए हादसों को ताउम्र नहीं भुला पाते हैं.
ऐसी ही एक वाकये का जिक्र कर रही हैं अनामिका (बदला हुआ नाम)
बात करीब 6 साल पहले की है. मैं इलाहाबाद के एक घनी आबादी वाले मुहल्ले में अपनी बहन के खाली मकान में दो सहेलियों के साथ पढ़ाई के लिए रहती थी.
मकान क्या था, एक बड़े घर में बंटवारे के बाद मिले एक कमरे के ऊपर तीन कमरे बनवाकर रहने लायक बनाया गया था. मेरी दोनों सहेलियों की परीक्षाएं खत्म हो चुकी थीं और दोनों गांव जा चुकी थीं.
मैंने सिविल सर्विस की कोचिंग ज्वाइन की थी इसलिए गर्मी की छुट्टियों में भी घर नहीं जा पाई थी. घर के बगल में कई झुग्गी-झोपड़ियां थीं जिनमें मजदूरों के परिवार रहते थे.
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एक शाम मैं अकेली छत पर टहल रही थी. बगल वाली छत पर एक डेढ़-दो साल की बच्ची के साथ एक 25-30 साल का आदमी खेल रहा था.
बच्ची जिस तरह उसके साथ घुल-मिल कर खेल रही थी, देखकर ऐसा लगा जैसे वह उस आदमी को अच्छे से जानती थी. मैं कुछ इस तरह खड़ी थी कि मैं उन्हें देख सकती थी लेकिन वे मुझे नहीं.
मैंने देखा, अचानक उस आदमी ने बच्ची को गोद में उठाया, पहले कुछ देर उसके गालों को चूमता रहा फिर बच्ची को किनारे ले जाकर अपना लिंग उसके शरीर पर रगड़ने लगा.
मेरा ऐसा लिखना अटपटा लग सकता है, लेकिन यह जरूरी है. शायद मेरे लिखने से कुछ लोग अपने बच्चों को लेकर ज्यादा सतर्क हो जाएं. शायद अपनी बच्चों को हर किसी के हाथों में सौंपने से माता-पिता एक बार सोचने लगें.
वह छोटी सी बच्ची 'मम्मी-मम्मी' चिल्लाती रही, लेकिन आदमी ने उसे काफी देर बाद छोड़ा. उससे छूटने के थोड़ी देर बाद बच्ची फिर से खेलने लगी.
यह सब देखकर उस समय मैं बहुत डर गई और मैंने किसी से कुछ नहीं बताया. मुझे डर था कि अगर मैं किसी से शिकायत करूं तो वह शख्स मुझे ही कोई नुकसान न पहुंचा दे. मैं स्वार्थी हो गयी थी. लेकिन उस पर वक्त स्वार्थी हो जाना मुझे ज़िंदगी भर के लिए पछतावा दे गया.
मैं आज भी सोचती हूं कि काश मैंने बच्ची के लिए कुछ किया होता. पता नहीं कब तक उसे ये सब बर्दाश्त करना पड़ा होगा...
सरगम की कहानी
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सरगम (बदला हुआ नाम) ने भी बीबीसी हिंदी को अपनी ज़िंदगी से जुड़ा एक वाकया लिखकर भेजा है. वो लिखती हैं:
"मैंने भी ये सब सहा है. मेरा यौन शोषण करने वाला मेरे दूर के रिश्ते का चाचा था. मेरे साथ ये सब तब हुआ जब मैं सिर्फ 12 साल की थी और इसका शिकार मैं एक नही, कई बार हुई.''
''मुझे हमेशा यह बात कचोटती है कि मेरा यौन शोषण करने वाला आज दुनिया को धर्मगुरु बन कर उपदेश दे रहा है. दुःख इसी बात का भी है कि मेरी बात का भरोसा मेरे अपने माता-पिता ने भी नहीं किया. जब मैंने कहा कि मैं ये बातें सबको बताऊंगी तो मेरी मां ने कहा क्यों हमको बदनाम करवाना चाहती हो?''
''बाद में जब मुझे प्यार हुआ तो मेरे प्रेमी (जो अब मेरे पति हैं) ने मेरा पूरा-पूरा साथ दिया. मैं इससे सहमत हूं कि यौन अपराधियों में ज्यादातर लोग अपने ही होते हैं.''
''मैं अंदर तक छील देने इस वाले दर्द को ओपरा विनफ्रे जी के आदर्श रख कर आगे बढ़ जाती हूं. हमेशा यही सोचती हूं कि जो हुआ उसमें मेरी कोई ग़लती नहीं थी. तो खुद को सजा क्यों दूं? आशा है माहौल बदलेगा और हर ग़लती के लिए लड़कियों को दोषी नहीं माना जाएगा.''
(बीबीसी संवाददाता सिंधुवासिनी से बातचीत पर आधारित)
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