#BadTouch: ऐसे छूने वालों से रहें हमेशा सतर्क
- भूमिका राय
- बीबीसी संवाददाता

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बुरी यादें मौक़ा मिलते ही लपक पड़ती हैं. पूरे दिमाग़ में नाचने लगती हैं. फिर दिल भी पीछे नहीं रहता और दहाड़ें मारने लग जाता है. ख़ासकर तब जब याद बचपन की हो.
कैसे कोई शख़्स भूल सकता है कि जब वो चाचा को 'ताता' कहा करता था, जिससे टॉफ़ी-चॉकलेट की उम्मीद बांध लेता था, उसी ने उसके भरोसे को रौंदा है.
बीबीसी की सिरीज़ #Badtouch के दौरान कई लोगों ने अपनी कहानी हमसे शेयर की लेकिन दीपा, रचिता या अतुल सिर्फ़ कुछ नाम हैं. चाइल्ड अब्यूज़ के ज्यादातर मामले सामने ही नहीं आते हैं. ज़्यादातर मामलों में तो बच्चों को पता ही नहीं होता है कि जो उनके साथ हो रहा है वो चाइल्ड अब्यूज़ है.
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कुछ मामलों में घरवाले ही इन बातों पर पर्दा डाल देते है. इसकी सबसे बड़ी वजह ये होती है कि अपराधी कोई अपना ही होता है. कोई रिश्तेदार या फिर पड़ोसी. ऐसे में उसे कटघरे में खड़ा करना मुश्किल लगता है. साथ ही बदनामी के डर से भी ऐसे मामलों को दफ़्न कर दिया जाता है.
मुश्किल हो जाता है भरोसा करना
महिला एवं बाल कल्याण विकास विभाग उत्तर प्रदेश की चाइल्ड प्रोटेक्शन ऑफिसर विभा का कहना है कि बीते कुछ सालों में इस तरह के मामले बहुत बढ़े हैं.
उनके अनुसार, ज़्यादातर मामले उन बच्चों के होते हैं जिनके माता-पिता नहीं होते और वो किसी मजबूरी के चलते रिश्तेदारों के पास रहने को मजबूर होते हैं. ऐसे मामले में बच्चा कभी अपनी बात किसी से कह ही नहीं पाता है. कुछ मामलों में मां के नहीं होने पर बच्चे को पिता से ही ख़तरा होता है.
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विभा बताती हैं कि ऐसे-ऐसे मामले आते हैं जिन्हें देखने के बाद रिश्तों पर भरोसा करना मुश्किल हो जाता है. लेकिन इन्हें रोका जा सकता है, बस थोड़ा ध्यान देने की ज़रूरत है।
विभा मानती हैं कि यह एक सामाजिक ज़िम्मेदारी है. अगर किसी को लगे कि कोई बच्चा सामान्य नहीं है या फिर उसे पता चले कि किसी घर में बच्चे के साथ ग़लत व्यवहार हो रहा तो सूचित करना उसकी ज़िम्मेदारी होनी चाहिए. हेल्प लाइन 1098 पर फ़ोन करना चाहिए.
क्या है चाइल्ड अब्यूज़
बच्चों एवं महिलाओं की सुरक्षा के लिए काम करने वाले एक एनजीओ एफएक्सबी इंडिया सुरक्षा के प्रोग्राम मैनेजर सत्य प्रकाश का कहना है कि सबसे पहले तो यह समझने की ज़रूरत है कि चाइल्ड अब्यूज़ है क्या?
अमूमन लोग सिर्फ़ पेनिट्रेशन को ही इससे जोड़कर देखते हैं लेकिन ऐसा नहीं है. भारत में मौजूदा क़ानूनी प्रावधान पॉक्सो के अनुसार, बच्चे को ग़लत तरीक़े से छूना, उसके सामने ग़लत हरकतें करना, उसे अश्लील चीज़ें दिखाना-सुनाना भी इसी दायरे में आता है.
बच्चे के साथ ये कहीं भी हो सकता है. अगर आप घर को बच्चे के लिए सुरक्षित मानते हैं तो ऐसा नहीं है. एक बच्चा कहीं भी इन चीज़ों का शिकार हो सकता है. वो चाहे घर हो, पास-पड़ोस हो या फिर स्कूल.
सत्यप्रकाश बताते हैं कि इन चीज़ों को रोकने का सबसे अच्छा तरीक़ा है कि बच्चों को उनकी ख़ुद की सुरक्षा के बारे में बताया जाए. उन्हें बताया जाए कि गुड टच और बैड टच क्या होता है? अगर कोई उनके साथ ऐसा कर रहा है तो उन्हें क्या करना चाहिए?
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इसके लिए कई तरह के क़दम उठाए भी गए हैं. सरकारी संस्थाएं और कई ग़ैर सरकारी संस्थान, स्कूलों में और अवेयरनेस कैंप के ज़रिए बच्चों को उनकी सुरक्षा के बारे में जागरूक करने का प्रयास कर रहे हैं.
सत्यप्रकाश बताते हैं कि बच्चों को 1098 के बारे में बताया जाता है ताकि उन्हें जब भी लगे वो ख़तरे में हैं, मदद मांग लें. उनका कहना है कि जब उनके पास कोई पीड़ित बच्चा आता है तो सबसे पहले कोशिश की जाती है कि उस बच्चे को साइकॉलजिकल ट्रीटमेंट और हर वो मेडिकल ट्रीटमेंट दिया जाए, जिसकी उसे ज़रूरत है.
उसके बाद उसकी काउंसलिंग की जाती है. इसके बाद बाल कल्याण समिति से उसे शेल्टर हाउस भेज दिया जाता है ताकि उसे भविष्य में ऐसी किसी स्थिति का सामना न करना पड़े.
क़ानूनी मदद भी है
उसके बाद पीड़ित पक्ष को कानूनी सलाह भी दी जाती है लेकिन बहुत से मामलों में लोग कानूनी कार्रवाई से मुकर जाते हैं. अगर केस दर्ज होता है तो क़ानूनी रूप से बच्चे की हर मदद की जाती है. चाइल्ड अब्यूज़ के केस में पीड़ित पर आरोप साबित करने का दबाव नहीं होता है बल्कि आरोपी पर इस बात का दबाव होता है कि वो ख़ुद के बचाव में सबूत पेश करे.
कैसे पहचानें बच्चे की तकलीफ़
पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस बात की पहचान कैसे हो कि कोई बच्चा इस तरह के ख़राब अनुभव से जूझ रहा है?
साइकॉलजिस्ट नीतू राणा कहती हैं कि अगर कोई बच्चा इस तरह के अनुभव से गुज़र रहा है तो वो लोगों से बचने लगता है. कई बार वो कुछ ख़ास लोगों के पास जाने से साफ़ इनकार कर देगा. पास की दुकान तक जाना उसके लिए डरावना हो जाता है.
इसके अलावा अगर बच्चा प्राइवेट पार्ट्स में दर्द की शिकायत करे तो इसे अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए. कई बार ऐसा भी होता है कि बच्चे ख़ुद के शरीर को छिपाना शुरू कर देते हैं. मां अगर बोले की मैं नहला दूं या शरीर पर तेल लगा दूं तो वो मना कर देते हैं। या कपड़े पहनकर नहाने की ज़िद करते हैं।
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डॉक्टर नीतू राणा के अनुसार, अगर आपको पता चल जाए कि कोई बच्चा पीड़ित है तो सबसे पहले उसे यह भरोसा दिलाने की कोशिश कीजिए कि आप उसके साथ और उसके लिए हैं. उसे रीलैक्स कराना सबसे ज़रूरी है.
जब उसे यह भरोसा हो जाएगा तो हो सकता है कि वो ख़ुद ही आपसे अपनी बातें शेयर करे. इसके अलावा आप भी उसे लेकर सतर्क रहें. अगर बच्चा ख़ुद आकर आपको यह सबकुछ बताता है तो सबसे पहले उसके डर को ख़त्म कीजिए. उसे उस जगह और शख्स से दूर रखिए.
चाइल्ड अब्यूज़ न सिर्फ़ बचपन को एक बुरी याद बना देता है बल्कि इसका असर पूरी ज़िंदगी बना रहता है. नीतू राणा के अनुसार, कई बार ऐसे बच्चे बड़े होने पर डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं.
कुछ को पर्सनैलिटी डिस्ऑर्डर की शिकायत हो जाती है. ऐसे बच्चे जल्दी किसी पर भरोसा नहीं कर पाते हैं और अक्सर रिलेशनशिप में परेशानी का सामना करते हैं. कुछ मामलों में उनकी सेक्सुअल लाइफ भी सामान्य नहीं रह जाती है.
चाइल्ड अब्यूज़ के अलग-अलग मामलों के लिए देश में अलग-अलग क़ानून हैं लेकिन इस मामले को लेकर अब भी जागरूकता की ज़रूरत है ताकि बचपन की यादें कड़वी न हों और ज़िंदगी सलामत रहे।
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