1962 के युद्ध में चीन के साथ क्यों नहीं खड़ा था पाकिस्तान?
- रजनीश कुमार
- बीबीसी संवाददाता

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हाल ही में भारत के सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने कहा था कि भारतीय सेना ढाई मोर्चों पर युद्ध लड़ने के लिए तैयार है. बिपिन रावत के इस बयान को भारत समेत पड़ोसी देश चीन और पाकिस्तान की मीडिया में भी काफ़ी तवज्जो मिली थी.
चीन के सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने लिखा था कि बिपिन रावत ने चीन, पाकिस्तान और भारत में सक्रिय विद्रोही समूहों से युद्ध जीतने की बात कही थी. पाकिस्तान की मीडिया में भी बिपिन रावत की इस टिप्पणी ने काफ़ी सुर्खियां बटोरी थीं.
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हाल ही में चीन और भारत के बीच डोकलाम सीमा पर काफ़ी तनातनी रही थी. चीनी मीडिया में युद्ध की धमकी लगातार दी जा रही थी. वहां की सरकारी मीडिया का कहना था कि भारत ने डोकलाम सीमा पर दुःसाहस किया है.
चीन भी कह रहा था कि भारत अपने सैनिकों को वापस बुला ले. दूसरी तरफ़ भारत का कहना था कि चीन वहां सड़क निर्माण का काम बंद करे.
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चीनी मीडिया में भारत को 1962 के युद्ध की भी याद दिलाई जा रही है. इस युद्ध में भारत को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था. क्या भारत को लगता है कि अगर चीन के साथ युद्ध हुआ तो उसे पाकिस्तान से भी लड़ना पड़ेगा?
1962 के भारत-चीन युद्ध में पाकिस्तान की क्या भूमिका थी? क्या तब भी पाकिस्तान ने चीन का ही साथ दिया था? अगर अभी भारत और चीन के बीच की तनातनी युद्ध में तब्दील हुई होती तो पाकिस्तान क्या करता?
1962 के भारत-चीन युद्ध में किसके साथ था पाकिस्तान
आज़ादी के बाद भारत के सभी युद्धों के गवाह रहे पत्रकार कुलदीप नैयर कहते हैं, ''मैं लालबहादुर शास्त्री जी के साथ काम करता था. उन्होंने मुझसे कहा था कि अगर चीन के साथ 1962 के युद्ध में पाकिस्तान हमारे साथ आ जाता तो हम लड़ाई जीत जाते. ऐसे में वो हमसे कश्मीर भी मांगते तो ना कहना मुश्किल होता. भारत ने पाकिस्तान से मदद नहीं मांगी थी, लेकिन मदद की उम्मीद की जा रही थी.''
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उन्होंने आगे बताया, ''इस संदर्भ में मैंने अयूब ख़ान से पूछा था तो उन्होंने कहा था कि वो भारत को मदद देने के लिए तैयार नहीं थे. उस युद्ध में पाकिस्तान भारत के साथ नहीं था. इससे पहले मैंने जिन्ना से सवाल पूछा था कि अगर भारत पर कोई तीसरी ताक़त हमला करती है तो पाकिस्तान का रुख़ क्या होगा? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था कि हम भारत के साथ होंगे. हम ड्रैगन को साथ मिलकर भगा देंगे. वह इस मामले में बिल्कुल स्पष्ट थे. वो कहते थे कि हम दोनों बेहतरीन दोस्त होंगे. जिन्ना कहते थे कि जर्मनी और फ़्रांस में इतनी लड़ाई हुई तो क्या वो दोस्त नहीं हुए.''
अमरीका के दबाव में था पाकिस्तान
तो क्या चीन-भारत युद्ध में पाकिस्तान तटस्थ रहा था? जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में दक्षिण एशियाई अध्ययन केंद्र की प्रोफ़ेसर सविता पांडे कहती हैं, ''उस वक़्त पाकिस्तान पर मोहम्मद अयूब ख़ान का शासन था. पाकिस्तान अमरीका के काफ़ी दबाव में था. अमरीका ने पाकिस्तान पर काफ़ी दबाव डाला था कि वह भारत-चीन के फ़्रंट पर कुछ ना करे.''
प्रोफ़ेसर पांडे बताती हैं कि उस समय पाकिस्तान ने इस बात को ख़ारिज किया था कि उस पर अमरीका का दवाब था. 1962 में शीत युद्ध की धमक दक्षिण एशिया आ चुकी थी. सविता पांडे कहती हैं, ''पाकिस्तान और अमरीका में डिफ़ेंस अग्रीमेंट हो चुका था और वह वेस्टर्न अलायंस सिस्टम का भी हिस्सा बन गया था. अमरीका ने 1962 की लड़ाई में भारत की मदद की थी इसलिए पूरा संभव है कि उसने पाकिस्तान को रोका.''
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1962 की लड़ाई के बाद 55 साल हो गए हैं. क्या इतने साल बाद भी भारत और चीन की तनातनी में पाकिस्तान पर अमरीका का दबाव काम करेगा?
कुलदीप नैयर कहते हैं, ''उस वक़्त भी पाकिस्तान में यही भावना थी कि चलो भारत को चीन अच्छी तरह से हरा रहा है. उस वक़्त पाकिस्तान में फ़्राइडे टाइम्स के मालिक बीआर शेट्टी भारत का खुलकर समर्थन करते थे. उनका कहना था कि इस क्षेत्र में भारत और पाकिस्तान बिना दोस्ती के नहीं रह सकते.''
क्या अब भारत के ख़िलाफ़ खुलकर सामने आएगा पाकिस्तान?
नैयर आगे कहते हैं, ''अभी भारत और चीन के बीच युद्ध की स्थिति बनती है तो पाकिस्तान खुलकर भारत के ख़िलाफ़ आएगा. अब पाकिस्तान डटकर सामने आएगा. वो जो भी कर सकता है करेगा. पाकिस्तान दूसरे मोर्चे से सामने आए इस पर तो मुझे शक है, लेकिन वो चीन की मदद करेगा. भारत को समझ लेना चाहिए कि चीन के साथ युद्ध होता है तो पाकिस्तान उसकी तरफ़ नहीं होगा. हो सकता है कि अमरीका पाकिस्तान पर इतना दबाव बनाए कि वह तटस्थ रहे.''
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वहीं सविता पांडे कहती हैं, ''55 साल में बहुत कुछ बदला है. पाकिस्तान में कई सरकारें आईं और गईं. पूरी दुनिया की राजनीति बदल गई है. पहले जो शक्ति का समीकरण था वो आज की तारीख़ में नहीं है. भारत और अमरीका के संबंधों में काफ़ी बदलाव आया है. भारत और पाकिस्तान के बीच अलग मुद्दा और चीन के साथ भारत की अलग समस्या है.''
पाकिस्तान-चीन की दोस्ती भारत के लिए चिंता?
प्रोफ़ेसर पांडे ने कहा, ''हालांकि पूरी दुनिया इस बात को समझती है कि पाकिस्तान और चीन के बीच की दोस्ती भारत को लेकर ही है. किसी भी देश के लिए दो सरहदों पर लड़ाई लड़ना काफ़ी मुश्किल काम है. इस मुश्किल को अंतरराष्ट्रीय रणनीति में हर कोई समझता है. पाकिस्तान के संबंध तीन मोर्चों पर ख़राब हैं. वह भारत के साथ ईरान और अफ़गानिस्तान से भी जूझ रहा है. सेना प्रमुख ने भले बयान दिया है, लेकिन दो मोर्चों पर लड़ाई लड़ना आसान नहीं है.''
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अब पाकिस्तान ख़ुद को परमाणु शक्ति संपन्न देश कहता है. पाकिस्तान और चीन के बीच संबध भी काफ़ी गहरे हुए हैं. दूसरी तरफ़ इस वक़्त अमरीका और चीन के बीच संबंध कथित तौर पर ख़राब हैं. ऐसे में क्या 1962 की तरह 2017 में भी पाकिस्तान पर अमरीका का दबाव काम करेगा?
सविता पांडे कहती हैं, ''हम जब भी युद्ध या तनाव की बात करते हैं तो बाहरी ताक़त की उपेक्षा नहीं करते. बाहरी ताक़त का बहुत ज़्यादा असर होता है. इसलिए ये कहना मुश्किल है कि पाकिस्तान अमरीका के दवाब में आकर कुछ नहीं करेगा. फिर भी इसमें कोई शक नहीं है कि पाकिस्तान पर अमरीका का प्रभाव है.''
दो मोर्चों पर लड़ाई कितनी मुश्किल?
भारत ने 1962 के बाद 1965 की लड़ाई लड़ी थी. मात्र तीन साल बाद पाकिस्तान ने भारत पर हमला किया. सविता पांडे कहती हैं कि पाकिस्तान ने ये सोचा था कि भारतीय सेना का मनोबल नीचे है और ऐसे वक़्त में हमला किया तो भारत को फिर हार का सामना करना होगा. हालांकि पाकिस्तान का यह आकलन औंधे मुंह गिरा था और उसे हार का सामना करना पड़ा था.
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प्रोफ़ेसर पांडे कहती हैं कि 1965 की लड़ाई पाकिस्तान के लिए आंख खोलने वाली थी. उन्होंने कहा कि अब पाकिस्तान कोई भी खुली लड़ाई लड़ने के मुक़ाबले छद्म युद्ध (प्रॉक्सी वॉर) को तरजीह देता है. तो क्या 1962 की लड़ाई से ही पाकिस्तान को प्रेरणा मिली थी कि वह भारत को हरा सकता है?
1965 में पाकिस्तान के हमले की प्रेरणा 1962?
प्रोफ़ेसर पांडे कहती हैं कि इस तर्क में दम है और पाकिस्तान ने ऐसा सोचा था. उन्होंने कहा, ''पाकिस्तान को लगा था कि यह अच्छा मौक़ा है और वह कश्मीर में उथल-पुथल कर सकता है. 1962 में पाकिस्तान और चीन के संबंध वैसे नहीं थे जैसे आज हैं. 1962 की लड़ाई के बाद ही पाकिस्तान और चीन के संबंध मज़बूत हुए. 1963 में पाकिस्तान ने भारत के क्षेत्र का चीन को सौंप दिया था. 1962 के युद्ध के बाद ही पाकिस्तान और चीन की यारी बढ़ी.''
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पाकिस्तान में चीन की जिस तरह से मौजूदगी है ऐसे में क्या दोनों देश युद्ध की स्थिति में साथ नहीं आएंगे? जेएनयू के दक्षिण एशिया अध्ययन केंद्र में ही प्रोफ़ेसर पी लामा कहते हैं, ''पाकिस्तान और चीन के बीच सीपीईसी और काराकोरम हाइवे का जो संबंध है उसमें भारत का विरोध है. भारत का विरोध इसलिए है कि चीन ने बिना भारत की अनुमति के पीओके से रास्ता निकाल दिया.''
प्रोफ़ेसर लामा कहते हैं कि चीन और पाकिस्तान की दोस्ती को भारत समझता है, लेकिन दूसरे मोर्चे से पाकिस्तान भारत के ख़िलाफ़ आए यह आसान नहीं होगा.
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