पूर्वोत्तर भारत में जापान के निवेश से चीन क्यों चिंतित?
- हरिता कांडपाल
- बीबीसी संवाददाता

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जापान के प्रधानमंत्री शिंज़ो अबे के भारत दौरे में दोनों देशों के बीच कई महत्वपूर्ण समझौते हुए. इनमें भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के विकास के लिए इंडिया-जापान एक्ट ईस्ट फ़ोरम बनाने और पूर्वोत्तर राज्यों में जापान का निवेश बढ़ाने की भी घोषणा की गई.
जब इस बारे में चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग से सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि भारत के पूर्वी हिस्से में चीन के साथ अब भी सीमांकन बाक़ी है. भारत के साथ सीमा के मोर्चे पर चीन का रुख स्पष्ट है. अभी चीन और भारत दोनों इस मुद्दे को सुलझाने में लगे हैं. ऐसी स्थिति में जब भारत और चीन सीमा विवाद को बातचीत के ज़रिए सुलझाने में लगे हैं तो किसी तीसरे देश को बीच में नहीं आना चाहिए.
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चीनी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग
चीन का विरोध
चीन में मौजूद वरिष्ठ पत्रकार सैबल दास गुप्ता मानते हैं, "चीन का विरोध अपने आप में बड़ी बात इसलिए है कि पूर्वोत्तर राज्यों में भारत कुछ 30 हज़ार करोड़ रुपए का निवेश करने जा रहा है जिसमें सड़कें और बांध हैं, इसमें ब्रह्मपुत्र नदी पर भी प्रोजेक्ट बनाने की योजनाएं हैं. चीन को उम्मीद थी कि इनमें उसे भागीदारी मिलेगी, लेकिन डोकलाम का विवाद होने के बाद भारत का चीन पर विश्वास कम हो गया है. ख़ासतौर पर पूर्वोत्तर राज्यों में विकास को लेकर इसलिए चीन तीसरे देश को लेकर विरोध कर रहा है."
सैबल दासगुप्ता कहते हैं कि ये बहाना सिर्फ़ अरुणाचल तक जायज़ हो सकता है, लेकिन अन्य पूर्वोत्तर राज्यों जैसे कि असम और मिज़ोरम में चीन का विरोध करने का औचित्य नहीं है.
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जापान से पुरानी दुश्मनी
दिल्ली स्थित जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय की प्रोफ़ेसर अनुराधा चुनॉय कहती हैं, "चीन की आपत्ति बेबुनियाद दिखती है क्योंकि पूर्वोत्तर राज्यों में कुछ ही हिस्से की सीमा विवादित है. भारत की लुक-ईस्ट नीति काफ़ी पुरानी है. पहले भी ये समझौता हुआ है कि मिज़ोरम, बांग्लादेश और म्यांमार के बीच संपर्क स्थापित हो सके. चीन इसलिए ये चाहता है कि इस क्षेत्र में जो कुछ हो उसमें उसका दावा रहे, जो हर बार संभव नहीं है."
नरेंद्र मोदी ने शिंज़ो अबे की अगवानी अपने गृह राज्य गुजरात में की साथ ही दोनों नेताओं ने आठ किलोमीटर लंबा रोड शो भी किया. इस गर्मजोशी से भारत और जापान की बढ़ती नज़दीकी साफ़ झलकी. इस पर चीन ने ये भी कहा था कि दक्षिण एशियाई क्षेत्र में साझेदारी होनी चाहिए, होड़ नहीं होनी चाहिए.
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डोकलाम विवाद
जापान के साथ सेनकाकू द्वीप को लेकर तनातनी भी पुरानी है और अब भारत के साथ डोकलाम विवाद के बाद भारत-जापान की नज़दीकी चीन को खल रही है क्योंकि डोकलाम विवाद को लेकर जापान ने भारत का समर्थन किया था.
सैबल दास गुप्ता का कहना है, "जहां तक उचित प्रतियोगिता का सवाल है चीन जिस कीमत पर भारत को रेल देगा उससे दोगुने दाम पर जापान से रेल भारत को मिलने जा रही है. सिर्फ़ राजनीतिक कारण ही नहीं है कि चीन असहज हो रहा है. जापान के साथ भारत के आने पर चीन का ये कहना है कि उचित प्रतियोगिता होनी चाहिए, इसके पीछे कारण ये है कि चीन सस्ता माल बेचता है इसलिए पूरी दुनिया उससे खरीदती है."
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समुद्र में भी जापान और चीन के बीच तनातनी है
जापान के साथ रिश्ते
दक्षिण चीन सागर में प्रभुत्व को लेकर चीन कई दक्षिण एशियाई देशों के साथ भिड़ता रहा है. हालांकि, भारत ने महासागरों में स्वतंत्र आवाजाही का समर्थन किया है, जापान दक्षिण चीन सागर भारत के समर्थन की उम्मीद करता रहा है.
सैबल दास गुप्ता के मुताबिक, "चीन और जापान के बीच सौ साल से भी ज़्यादा पुरानी दुश्मनी है. इसमें सेन्काकू द्वीप के अलावा नानजिंग नरसंहार को लेकर भी तनातनी है. चीन का मानना है कि उसका एकमात्र मुक़ाबला अमरीका के करीबी जापान से है. चीन को जापान के साथ भारत की नज़दीकी पर ज़्यादा तकलीफ़ हो सकती है."
लग जा गले....
आसियान देश
दो देश,दो शख़्सियतें और ढेर सारी बातें. आज़ादी और बँटवारे के 75 साल. सीमा पार संवाद.
बात सरहद पार
समाप्त
प्रोफेसर अनुराधा चिनॉय कहती हैं, "चीन जापान के रिश्तों के विस्तार को पसंद नहीं करता है. आसियान देशों में जापान किसी से दोस्ती करने की कोशिश करता है तो चीन की आपत्ति साफ़ नज़र आती है."
दक्षिण चीन सागर में नौवाहनों की स्वतंत्र आवाजाही और विवादों का निपटारा शांतिपूर्ण ढंग से करने की बात भी सामने आई.
सैबल दास गुप्ता कहते हैं, "भारत की विदेशी नीति हमेशा सिद्धांतों पर निर्भर रही है लेकिन मोदी सरकार ने तीन साल में पहली बार ज़मीनी सच्चाई को देखकर विदेश नीति बनाई है. भारत ने एक तरह से चीन का ही तरीका अपनाया है. क्योंकि भारत का दक्षिण चीन सागर में स्वतंत्र आवाजाही की बात करना चीन पर दबाव बनाता है."
वो कहते हैं कि चीन के 70 प्रतिशत जहाज़ दक्षिण चीन सागर से गुज़रते हैं. वहीं, भारत के बहुत कम नौवाहन वहां से आते-जाते हैं. ये एक तरह का शतरंज है.
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