#HerChoice: अकेले होने का मतलब यह नहीं कि मैं चरित्रहीन हूं

जब एक लड़की ने शादी न करने का फ़ैसला किया, क्या वह खुश रह पायी या उसे इसका अफ़सोस है.
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जब एक लड़की ने शादी न करने का फ़ैसला किया, क्या वह खुश रह पायी या उसे इसका अफ़सोस है.

मैं अखबार के मैट्रिमोनियल पेज पर अपने छोटे भाई के लिए दुल्हन ढूंढने के लिए एक विज्ञापन देख रही थी.

तभी एक रिश्तेदार ने एक लाइन को लाल रंग से हाईलाइट किया, उस लाइन के शब्द थे 'उसकी एक बिनब्याही बड़ी बहन है'.

उन्होंने तंज कसा, ''बड़ी बहन का अभी तक शादी न करना हमारे लड़के के लिए बेहतर लड़की तलाशने में बहुत मुश्किलें पैदा करेगा.''

उनके ये शब्द किसी तीर की तरह मेरे सीने पर लगे. मैं दर्द से भर गई और बहुत मुश्किल से मैंने अपने आंसुओं को रोका.

मेरे अंदर गुस्से की आग भड़क रही थी. वे कैसे इस तरह की बातें कर सकते हैं?

उनकी बातें सुनने के बाद मुझे लगा कि मेरा दम घुट रहा है, मुझे ऐसा लगा कि जैसे कोई अपने हाथों से मेरा गला दबा रहा हो.

मैं ज़ोर से चिल्लाना चाहती थी कि आखिर मेरा शादी ना करने का फ़ैसला मेरे भाई को बेहतर लड़की मिलने की राह में रोड़ा कैसे बन सकता है.

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हालांकि उन हालातों में मेरा चुप रहना ही बेहतर था, और मैंने ऐसा ही किया.

मैं उम्मीद कर रही थी कि मेरा भाई या मेरे पिता उस रिश्तेदार की बात का विरोध करेंगे, लेकिन उन्होंने भी बाकी रिश्तेदारों की तरह मेरे दुख से किनारा करना ही बेहतर समझा.

मेरी मां मेरे दिल की बात समझती थीं और कई बार वे इस तरह की दिल दुखाने वाली बातों को खत्म करनी नाकमयाब कोशिशें भी किया करती थी.

हालांकि वे खुश थीं कि उनके बेटे की शादी होने जा रही है. एक वक्त था जब मेरे माता-पिता मेरी शादी के सपने भी देखा करते थे.

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बीबीसी की विशेष सिरीज़ #HerChoice 12 भारतीय महिलाओं की वास्तविक जीवन की कहानियां हैं. ये कहानियां 'आधुनिक भारतीय महिला' के विचार और उसके सामने मौजूद विकल्प, उसकी आकांक्षाओं, उसकी प्राथमिकताओं और उसकी इच्छाओं को पेश करती हैं.

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दो भाई-बहनों में मैं बड़ी थी, इसलिए यह पहले से ही तय था कि मेरी शादी पहले होगी. लेकिन मैंने ऐसा नहीं किया.

यह ऐसा था, जैसे मैंने अपने माता-पिता को उस खुशी से वंछित कर दिया हो जिसका सपना वो हमेशा से देखते आए थे. इस वजह से पिछले कुछ सालों तक हमारे बीच बहुत ज़्यादा तनाव हो गया था.

कुछ इसी तरह की चिंताएं और सवाल मेरे रिश्तेदारों और दोस्तों के बीच भी पैदा हो गई थीं.

कुछ दोस्तों की चिंताएं तो समझी जा सकती थीं लेकिन कुछ तो बिलकुल ही बिना सिर-पैर की थीं.

जैसे, एक दिन मेरे स्कूल के दिनों के एक पुराने दोस्त ने मुझसे कहा, ''मैं जानता हूं कि तुम शादी नहीं करना चाहती लेकिन फिर भी तुम्हारी कुछ इच्छाएं तो ज़रूर होंगी, अगर तुम चाहो तो तुम्हारी उन इच्छाओं को पूरा करने में मैं मदद कर सकता हूं.''

उसने कहा कि उसे ऐसा करके खुशी होगी बशर्ते उसकी पत्नी और बच्चों को इस बारे में कुछ भी मालूम न पड़े.

अपने दोस्त की इस बात को सुनकर मैं हैरान थी.

हां, यह सच था कि मैं अपनी ज़रूरतों या इच्छाओं से अनजान नहीं थी, और उसके लिए मुझे एक पार्टनर की जरूरत भी थी. लेकिन इसका यह मतलब निकालना कि मैं किसी के लिए भी 'उपलब्ध' हूं, यह तो मैं कभी स्वीकार नहीं कर सकती थी.

इससे ज़्यादा हैरानी की बात यह थी कि इस तरह का प्रस्ताव मेरे पुराने दोस्त ने मुझे दिया, जिसके बारे में मैंने कभी ऐसा सोचा भी नहीं था.

मुझे लगता है कि उसके प्रस्ताव से मुझे उतना गुस्सा नहीं आया, लेकिन उसके मन में मेरे बारे में ऐसा ख्याल आया यह सोचकर मैं तनाव में ज़रूर चली गई.

ऊपर से उसका इसे एक 'मदद' और 'सेवा' कहना तो बहुत ज़्यादा ही बेहूदा था.

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मेरा शादी न करने का यह मतलब नहीं कि मैं किसी के लिए भी उपलब्द्ध हूं

उसकी इस बात ने हमारी दोस्ती में जो मासूमियत थी उसे पूरी तरह खत्म कर दिया. उससे मिलने के बारे में सोचकर ही मैं डरने लगी और आज भी मैं उससे बात करने से बचती हूं.

जब लोगों को मेरे सिंगल होने के बारे में मालूम चलता, तो मेरे बारे में उनके विचार बदल जाते. मुझसे बात करने का उनका अंदाज़ पहले जैसा नहीं रहता.

लेकिन इन बातों से मैं परेशान नहीं होती, यह सबकुछ मेरे लिए आम सी बात हो गई. मैं अपने फ़ैसले खुद लेती हूं. अपनी 'पसंद' और 'नापसंद' का खुद ख्याल रखती हूं.

आज मैं 37 साल की हूं और अकेले रहने के अपने फ़ैसले पर मुझे कोई पछतावा नहीं है.

मैं उस समय 25 साल की थी जब मैंने शादी न करने के अपने फ़ैसले के बारे में सबसे पहले मां को बताया था.

मैंने पैसा कमाना शुरू ही किया था और मैं चाहती थी कि मैं अपने सपनों को पूरा करूं, नई ऊचाइंयों को छुऊं.

मुझे लगता है कि मेरी मां ने मेरे दिल की बात समझ ली थी लेकिन बाकी लोगों की तरफ से उठने वाले सवालों के आगे वो भी मजबूर थीं.

'तुम कब अपनी बेटी की शादी करने वाले हो?'

'अगर तुम्हें को अच्छा लड़का नहीं मिल रहा तो हमें बताओं, हम कुछ मदद करेंगे.'

जैसे-जैसे मेरा करियर ऊपर उठने लगा वैसे-वैसे ही मेरे लिए लड़के की तलाश तेज़ होने लगी.

लोग मेरे माता-पिता को कहते थे कि शादी करने से सुरक्षा मिलती है. लेकिन उनकी बातों के उलट मैं सुरक्षा के लिए किसी से शादी नहीं करना चाहती थी.

मुझे पता था कि मेरे माता-पिता के दिलो-दिमाग में क्या चल रहा है, उनकी बेटी शादी की उपेक्षित उम्र को पार करने वाली है और अभी भी उन्ही के घर में रह रही है.

मेरे पिता चाहते थे कि मैं जल्दी से जल्दी 'सेटल' हो जाऊं, और इसीलिए मैंने एक-दो नहीं बल्की पूरे 15 लड़के देखे.

मैं अपने पिता की चिंताओं को समझती थी और उनकी कद्र भी करती थी, इसलिए मैं उन लड़कों से मिलने के लिए तैयार हो गई, लेकिन मुझे एक भी पसंद नहीं आया.

वैसे एक तरह से इस अनुभव के बाद मेरे लिए यह बात समझानी आसानी हो गई कि आखिर मैं शादी क्यों नहीं करना चाहती.

मेरे माता-पिता भी इस बात को समझ गए लेकिन बाकी लोग मेरे बारे में अलग-अलग राय बनाते रहे.

उन्हें लगता कि मैं बहुत ज़्यादा ही नखरे दिखा रही हूं. मुझे घमंडी, आवारा, अपने माता-पिता की इच्छाओं की कद्र नहीं करने वाली, बेवकूफ़, असभ्य और किसी तरह के भ्रम की शिकार लड़की की संज्ञाएं दी जाने लगीं.

मुझे समझ नहीं आता था कि लोगों को मेरे बारे में इस तरह की बातें करके क्या आनंद मिलता था?

और जब इन सबसे भी उनका जी नहीं भरता तो वे मेरे चरित्र पर बातें करने लगते.

लेकिन मेरे विचार बिलकुल स्पष्ट थे. किसी तरह का प्रेम संबंध रखना या लिव-इन रिलेशनशिप में रहना कोई बुराई नहीं होती. दुनिया इस तरह के विचारों से कई कदम आगे बढ़ चुकी है.

जिन चीजों को करने से मुझे आनंद मिलता है, वो मैं जब चाहूं कर सकती हूं. महिलाएं अब किसी पिंजरें में कैद होकर नहीं रह सकतीं.

मैं बस आज़ाद होकर जीना चाहती हूं, शादी मुझे एक तरह का बंधन लगती है.

मैं आसमान में उड़ने वाले पंछी की तरह बनना चाहती हूं, जैसा मेरा दिल करे वैसी ज़िंदगी जीना चाहती हूं.

मन करे तो पूरा दिन घर पर रहूं या मन करे तो पूरी रात बाहर गुज़ार दूं.

क्लब, डिस्को, मंदिर, पार्क जहां मन करे वहां चली जाऊं. जब मन करे घर के तमाम काम करूं ना मन करे तो खाना भी न बनाऊं.

मैं ऐसी ज़िंदगी नहीं चाहती जहां मुझे सुबह-सुबह अपनी सास के लिए चाय बनाने, पति के लिए नाश्ता तैयार करने या बच्चों को स्कूल भेजने की चिंता सताती रहे.

मुझे अकेले रहना पसंद है. मुझे अपनी आज़ादी से प्यार है और यह बात मैं उतनी बार दोहरा सकती हूं जितनी बार किसी को समझाने के लिए दोहरानी पड़े.

मैंने ऐसी बहुत सी शादीशुदा महिलाओं को देखा है जिनके बड़े परिवार हैं, बच्चे हैं लेकिन फिर भी वे अकेलापन महसूस करती हैं.

जबकि मैं वो अकेलापन महसूस नहीं करती, मेरा परिवार और दोस्त दोनों हैं. मैं उन्ही रिश्तों को तरजीह देती हूं जिसमें मुझे आनंद मिलता है.

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मैं आज अपने पैरों पर खड़ी हूं, आज़ाद हूं, अपने अकेले रहने के फ़ैसले से खुश हूं

हमारे समाज में एक बिनब्याही लड़की को किसी बोझ की तरह देखा जाता है. लेकिन मैं कभी भी बोझ नहीं बनी.

मैंने दुनिया भर की सैर की, मैं खुद पैसे कमाती हूं और उन्हें किस तरह खर्च करना है यह फ़ैसला भी पूरी तरह मेरा ही होता है.

मैंने अपने काम से अपनी पहचान बनाई है और मेरी तारीफ़ों में कई लेख भी लिखे जा चुके हैं.

वे अख़बार जो शुरुआत में मेरे शादी न करने के फ़ैसले का मज़ाक बनाया करते थे आज मेरे सिंगल वुमेन होने पर तारीफ़ें करते हैं.

मेरे माता-पिता को आज मुझ पर गर्व है और उनके दोस्त अपनी बेटियों को मुझ जैसा कामयाब बनने का उदाहरण देते हैं.

अंत में इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई मेरी पंसद के बारे में क्या सोचता है.

मैंने यह फ़ैसला खुद के लिए लिया है और उसे सही साबित भी किया.

(ये भारत के उत्तर-पश्चिमी हिस्से में रहने वाली एक महिला की वास्तविक कहानी है जो बीबीसी संवाददाता अर्चना सिंह से बातचीत पर आधारित है. महिला के आग्रह पर नाम बदल दिए गए हैं. इस सिरीज़ की प्रोड्यूसर दिव्या आर्य हैं.)

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